प्राचीन मंदिर संगला शिवालय में कराया रुद्राभिषेक

श्रावण के अंतिम सोमवार को शहर के शिव मंदिरों में शिव भक्तों ने रुद्राभिषेक महाआरती व पूजा अर्चना कर कोरोना से मुक्ति के लिए प्रार्थना की।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 06:51 AM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 06:51 AM (IST)
प्राचीन मंदिर संगला शिवालय में कराया रुद्राभिषेक
प्राचीन मंदिर संगला शिवालय में कराया रुद्राभिषेक

संस, लुधियाना वि : श्रावण के अंतिम सोमवार को शहर के शिव मंदिरों में शिव भक्तों ने रुद्राभिषेक, महाआरती व पूजा अर्चना कर कोरोना से मुक्ति के लिए प्रार्थना की। इसी क्रम में प्राचीन मंदिर संगला शिवालय में सोमवार को शिव वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष बिट्टू गुंबर व महंत दिनेश पूरी के नेत्रत्व में रुद्राभिषेक कराया गया।

गुंबर ने कहा कि श्रावण महीना भगवान शिव को समर्पित है। हिदू धर्म में सावन महत्वपूर्ण माह है। श्रावण मास में ही भगवान भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में समाहित कर किया था। इसीसे उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। यही वजह है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ की अराधना करने से सभी प्रकार के दुखों और चिंताओं से मुक्ति मिलती है। इस अवसर पर बिट्टू गुंबर, राजू गुंबर, कमल शर्मा, रामचंद्र बंगाली, रोहित गुंबर, अश्वनी त्रेहन, वरुण गुंबर, ईशान गुबंर, टीनू सलारिया आदि उपस्थित थे। धन की तीन गति हैं दान, भोग और नाश : राजेंद्र मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक किचलू नगर में विराजमान संत डॉ. राजेंद्र मुनि, साहित्य दिवाकर सुरेंद्र मुनि की अगुआई में प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ. राजेंद्र मुनि ने कहा धर्म ही एक ऐसा माध्यम है जो जीव का हर परिस्थिति में साथ देता है। धर्म के अलावा संसार की कोई भी चीज इस आत्मा को दुख से बचाने में समर्थ नहीं है।

उन्होंने कहा कि दुनियां में चार बातें दुर्लभ बताई गई हैं। द्ररिद्रता के समय दान देना, सत्ता आने पर क्षमा के भाव का आना, अपनी इच्छाओं का निग्रह करना और इंद्रियों को वश में रखना। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में इन चारों बातों को अपना लेता है तो समझो उसने अपने जीवन को सार्थक कर दिया है। उन्होंने कहा कि इस धन की तीन गति हैं दान, भोग और नाश। दान भी नहीं दिया, उसका उपभोग भी नहीं किया तो समझो उसका नाश अवश्य होने वाला है। सुरेंद्र मुनि ने कहा कि पुरुषार्थ का परित्याग कर नियति के सहारे बैठे रहना अकर्मण्यता है, अज्ञानता है। भगवान महावीर के इस चितन ने भाग्यवाद की धारणा का निराकरण किया है।

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