प्राइवेट अस्पतालों के हाथ में लुधियाना वालों की सेहत सुरक्षा, सरकारी को अपग्रेड करने की जरूरत

सरकारी अस्पतालों की बात करें तो यहां एक सिविल अस्पताल, 16 अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर, दो मदर एंड चाइल्ड हास्पिटल, 265 सब सेंटर, 11 कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर, 16 डिसपेंसरियां हैं, पर स्टाफ और सुविधाओं के मामले में निजी अस्पतालों से फिसड्डी है।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Sat, 14 Jul 2018 12:00 AM (IST) Updated:Sat, 14 Jul 2018 01:10 PM (IST)
प्राइवेट अस्पतालों के हाथ में लुधियाना वालों की सेहत सुरक्षा, सरकारी को अपग्रेड करने की जरूरत

आशा मेहता, जागरण संवाददाता

देश का मैनचेस्टर कहे जाने वाले लुधियाना की पहचान जहां हौजरी और साइकिल इंडस्ट्री का क्लस्टर के तौर पर बनी हुई है, वहीं दो मेडिकल कॉलेज होने की वजह से इसे मेडिकल हब का दर्जा भी प्राप्त हो चुका है। लेकिन ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल होने के कारण समृद्ध लोग इन अस्पतालों में इलाज करवा लेते हैं, जबकि गरीबों को सरकारी सिविल अस्पताल के सहारे ही रहना पड़ता है। लगभग 25 लाख की आबादी वाला लुधियाना शहर पंजाब की आर्थिक राजधानी है।

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होजरी और साइकिल के गढ़ के तौर पर प्रख्यात यह शहर नई दिल्ली-अमृतसर हाइवे पर स्थित है और राजधानी चंडीगढ़ से सिर्फ 100 किमी की दूरी पर है। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से भी यह औद्योगिक नगरी अब उत्तर भारत में मेडिकल सुविधाओं का हब बन चुकी है। देश के तमाम बड़े अस्पतालों की चेन यहां उपलब्ध है। विशेषकर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (सीएमसी), हीरो डीएमसी हार्ट इंस्टीट्यूट और डीएमसी अस्पताल में अन्य राज्यों के मरीजों की संख्या ज्यादा रहती है।

दूसरी ओर, सरकारी अस्पतालों की बात करें तो यहां एक सिविल अस्पताल, 16 अर्बन प्राइमरी हेल्थ सेंटर, दो मदर एंड चाइल्ड हास्पिटल, 265 सब सेंटर, 11 कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर, 16 डिसपेंसरियां हैं, पर स्टाफ और सुविधाओं के मामले में निजी अस्पतालों से फिसड्डी है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में सरकारी स्तर पर व्यवस्था बेहद कमजोर है। सरकार ने सेहत सुविधाएं देने के नाम पर बिल्डिंगें तो खड़ी कर दी हैं पर पर्याप्त स्टाफ और मशीनों की व्यवस्था ही नहीं की गई।

शहर की आबादी जब दस लाख थी, तब भी डॉक्टर्स, स्टाफ और क्लास फोर स्टाफ की उतनी ही स्ट्रेंथ थी, जितनी की आज 25 लाख आबादी होने के बाद है। सिविल अस्पताल में कुल 36 डॉक्टर है। इतने ही डॉक्टर आज से पंद्रह साल पहले भी थे। इमरजेंसी में 11 ईएमओ चाहिए, लेकिन केवल तीन हैं। इतने बड़े अस्पताल में कोई वेंटिलेटर नहीं है। आईसीयू में भी केवल सेंट्रल सप्लाई ऑक्सीजन के अलावा कुछ नहीं है। 12 नर्सिंग सिस्टर की जरूरत है, लेकिन हैं केवल तीन।

गाइडलाइन के मुताबिक आठ से दस मरीजों पर एक नर्सिंग स्टाफ चाहिए, जबकि सिविल अस्पताल और मदर एंड चाइल्ड अस्पताल में चालीस मरीजों पर एक नर्सिंग स्टाफ है। अस्पताल में ईसीजी टेक्नीशियन भी नहीं है। स्टाफ नर्स से टेक्नीशियन का काम लिया जा रहा है। एंबुलेंस भी केवल 11 हैं। मदर एंड चाइल्ड अस्पताल में सौ बेड की सेंक्शन है, लेकिन यहां पर 140 बेड लगाएं गए है। बेड के हिसाब से 60 नर्सिंग स्टाफ चाहिए, लेकिन केवल 35 हैं। सिविल अस्पताल में 170 बेड की मंजूरी है, लेकिन 285 बैड लगाएं गए है।

मदर एंड चाइल्ड अस्पताल में भी नर्सिंग स्टाफ की कमी है। जिला अस्पताल में केवल चार बेड का बर्न यूनिट है। लेकिन बर्न यूनिट में प्लास्टिक सर्जन को छोड़ दिया जाए तो मानकों के अनुसार कोई अन्य सुविधा नहीं है। नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत 23.75 करोड़ रुपये की लागत से शहर में पांच 30 बेडेड मदर चाइल्ड अस्पताल बनाए गए हैं। लेकिन शुरु नहीं हो पाए। 

आंकड़ों के लिहाज से शहर की तस्वीर

- डीएमसी अस्पताल 600 से ज्यादा बेड

- सीएमसी अस्पताल 800 से ज्यादा बेड

- डीएमसी हीरो हार्ट 200 से ज्यादा बेड

- फोर्टिस अस्पताल 250 से ज्यादा बेड

- एसपीएस अस्पताल 350 से ज्यादा बेड

- मोहन दई ओसवाल 300 से ज्यादा बेड

- पंचम अस्पताल 100 से ज्यादा बेड।

- जीटीबी अस्पताल 100 से ज्यादा बेड

- दीपक अस्पताल 100 से ज्यादा बेड।

- कृष्णा चैरिटेबल 100 से ज्यादा बेड

- ओरिसन अस्पताल 100 के करीब बेड

 शहर में मेडिकल कॉलेजः 3 (दयानंद मेडिकल कॉलेज, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, लॉर्ड महावीरा होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज)

- जिले में नर्सिंग कॉलेजः 24

- शहर में ड्रग डी-एडिक्शन सेंटरः 11

- जिले में ब्लड बैंकः 14

- किडनी डायलसिस सेंटरः 10

- आई बैंक: 5

शहर नहीं भूल पाया पांच बच्चों की मौत की घटना

लाखों की आबादी वाले इस शहर में सिविल हॉस्पिटल में जच्चा और बच्चा को सेहत सुविधाएं देने के लिए 17.60 करोड़ रुपये की लागत से 100 बेड वाला मदर चाइल्ड अस्पताल बनाया गया। लेकिन स्टाफ पूरा किए बिना 21 नवंबर 2014 को इसका उद्घाटन कर दिया गया। 23 नवंबर को यहां हुई ऐसी दिल दहला देने वाली घटना, जिसने लुधियानावासियों को हिलाकर रख दिया। उस एक ही दिन में 5 नवजात बच्चों की मौत इस नए अस्पताल पर बड़ा कलंक बनकर सामने आई।

घटना की प्राथमिक जांच में ही सामने आ गया कि उस दिन ऑन काल ड्यूटी पर रही डॉक्टर ड्यूटी पर तैनात स्टाफ नर्स द्वारा बार-बार फोन करने के बाद भी अस्पताल नहीं आई। इस घटना ने चंडीगढ़ में बैठी सरकार को भी हिलाकर रख दिया था और प्राथमिक जांच में ही डॉक्टर को निलंबित कर दिया गया। फिर पांचों बच्चों की मौत की गंभीरता से जांच करने के लिए 5 आईएएस अधिकारियों के नेतृत्व में पांच टीमें गठित की गई थीं। इन टीमों ने भी दो डॉक्टरों को लापरवाही का दोषी पाया था।

जांच टीमों ने अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में दवाइयां रखने, स्टाफ पूरा करने और हर समय एक सीनियर डॉक्टर को अस्पताल में रहने की व्यवस्था करने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार बजट के अभाव में न तो स्टाफ पूरा कर पा रही है और न ही पर्याप्त मात्रा में दवाई मौजूद है। अगर पूरी दवा और स्टाफ के खाली पड़े पद भर दिए जाएं तो यह अस्पताल गरीबों को और अधिक सुविधाएं दे सकता है तथा गरीब लोग प्राइवेट डॉक्टरों के हाथों होने वाली लूट का शिकार होने से बच सकते हैं।

आज भी सिहर जाते हैं अमृता के परिजन

सिविल अस्पताल के मदर-चाइल्ड अस्पताल की अव्यवस्था ने दिसंबर 2015 में अमृता की जान ले ली थी। उसके परिजन आज भी उस घटना का जिक्र होते ही सिहर जाते हैं। वह साल 2015 में 27 नवंबर के अंतिम सप्ताह प्रसव के लिए सिविल अस्पताल आई थी। गाइनीकोलॉजिस्ट ने उसका सिजेरियन किया। लेकिन ऑपरेशन के चंद घंटों बाद ही उसका ब्लड प्रेशर लो हो गया। पहले तो अस्पताल के डॉक्टर और स्टाफ उसका ब्लड प्रेशर ठीक करने की कोशिश करते रहे, लेकिन सिविल अस्पताल में वेंटिलेटर और जरूरी सुविधा नहीं होने के कारण उसे सीएमसीएच में रेफर कर दिया गया। जहां उसने दम तोड़ दिया।

सीएमसीएच के डॉक्टरों के मुताबिक अमृता की मौत सेप्टिक प्लस डीआईसी के कारण हुई थी। यह ऐसी इंफेक्शन है जो ऑपरेशन टेबल पर ही मरीज को होती है और इस इंफेक्शन की वजह से मरीज को मल्टी ऑर्गन फेलियर हो जाता है। यह इंफेक्शन होने के बाद किसी भी मरीज को बचाना संभव नहीं होता। 

क्या कहते हैं सिविल सर्जन

जिले के सिविल सर्जन डॉ. परविंदरपाल सिंह सिद्धू का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में हर सुविधा मुहैया कराने के प्रयास किए जाते हैं। कई बार दवा की कमी की बात सामने आती है, लेकिन जरूरत के अनुसार इंतजाम कर दिया जाता है। स्टाफ की कमी काफी लंबे समय से चल रही है। इसके लिए सरकार के स्तर पर डॉक्टरों और स्टाफ नर्सों की भर्ती प्रक्रिया चालू है। जैसे-जैसे भर्ती होती रहेगी, स्टाफ की कमी भी दूर हो जाएगी।

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