भंगड़े और गिद्दे से ज्यादा कथक का क्रेज, Training के लिए युवा दिखा रहे दिलचस्पी

पंजाबी गानों के साथ बॉलीवुड हरियाणवी और इंग्लिश गानों पर भी लोग भंगड़ा ही डालते हैं लेकिन भंगड़े-गिद्दे की इस दुनिया में कथक अपना जादू बिखेर रहा है।

By Sat PaulEdited By: Publish:Tue, 26 Mar 2019 07:41 PM (IST) Updated:Tue, 26 Mar 2019 07:41 PM (IST)
भंगड़े और गिद्दे से ज्यादा कथक का क्रेज, Training के लिए युवा दिखा रहे दिलचस्पी
भंगड़े और गिद्दे से ज्यादा कथक का क्रेज, Training के लिए युवा दिखा रहे दिलचस्पी

जालंधर, [भावना पुरी]। मक्की की रोटी और सरसों के साग के साथ भंगड़ा और गिद्दा पंजाब की पहचान है। पंजाब का कल्चर इतना विशाल है कि दूसरे राज्यों और विदेशी लोगों को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। पंजाबी गानों के साथ बॉलीवुड, हरियाणवी और इंग्लिश गानों पर भी लोग भंगड़ा ही डालते हैं, लेकिन भंगड़े-गिद्दे की इस दुनिया में कथक अपना जादू बिखेर रहा है। जालंधर की नई जेनरेशन को कथक भी खूब भा रहा है। हिप-हॉप, फ्यूजन, बॉलीवुड डांस को छोड़कर कथक की ओर आकर्षण काफी बढ़ गया है। विभिन्न डांस स्कूल और एकेडमी में बच्चों और युवाओं की कथक की खासतौर पर क्लासेस लगाई जा रही हैं। इसके अलावा एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स में एमए क्लासिकल डांस में भी बच्चे कथक की तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर ख्याति पा रहे हैं। इस नृत्य का मुख्य आकर्षण इसके नियम हैं। उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य कहानियों को जाहिर करने का साधन है। इस नृत्य के तीन प्रमुख घराने हैं। जयपुर घराना, लखनऊ घराना और वाराणसी घराना। ये एक ऐसा नृत्य है जिसमें फ्यूजन, इनोवेशन को मुद्राओं से खूबसूरत तरीके से जाहिर किया जाता है। इसका पहरावा भी आकर्षक होता है।

बच्चों में क्लासिकल का दीवानगी

नई जेनरेशन पहले बॉलीवुड गाने सुनकर उन्हें फॉलो करना पसंद करती थी। ग्रुप डांस होने की वजह से भंगड़े और गिद्दे का आकर्षण स्कूलों और कॉलेजों तक सीमित रह जाता था। वहीं क्लासिकल डांस को बच्चे उबाउ समझते थे, लेकिन फ्यूजन म्यूजिक की वजह से कथक की ओर बच्चों का झुकाव काफी बढ़ गया। गुरसहज ने बताया कि उसे घुंघरू पहनकर डांस करना बेहद अच्छा लगता है। क्लासिकल म्यूजिक को पूरी तरह नहीं समझ पाती हूं। इसलिए बॉलीवुड के गीतों पर कथक करती हूं। सुखमणि ने बताया कि उसे हर डांस बेहद अच्छा लगता है। कई डांस फॉर्म सीख रही हैं, लेकिन कथक के लिए सजना संवरना और हाव-भाव बनाने में ज्यादा मजा आता है। ये नृत्य स्लो बीट के साथ फास्ट बीट पर भी किया जा सकता है। कैरबी ने बताया कि मैं बड़ी होकर कोरियोग्राफर बनना चाहती हूं। क्लासिकल डांस के बेसिक क्लीयर हो जाएं तो हर डांस सीखना आसान लगने लगता है।

मॉडर्न फॉर्म में भी किया जा सकता है कथक

मॉडल टाउन के रहने वाली डांस एक्सपर्ट प्रिंसी सेठ का कहना है कि मेरे गुरु संतोष ब्यास हैं। इनसे प्रशिक्षण पाने के बाद बच्चों को इस नृत्य की अहमियत समझाई है। कथक एक ऐसा नृत्य है जिसे मॉडर्न फार्म में भी पेश किया जा सकता है। हाव-भाव और मुद्राओं को बेहतर तरीके से समझ लेने वाला विद्यार्थी जल्द ये नृत्य सीख जाता है। इस नृत्य में इनोवेशन कर सकते हैं लेकिन इसके बेसिक नहीं बदलने चाहिए।

नई जेनरेशन में बढ़ा कथक का आकर्षण

बच्चों के साथ युवाओं में भी कथक का क्रेज काफी बढ़ गया है। नृत्य कला से प्यार करने वाले युवक भी कथक को पसंद करते हैं। कथक में अब काफी इनोवेशन हो गई है। बॉलीवुड के गानों, फ्यूजन म्यूजिक, श्लोकों पर कथक किया जा रहा है। इस कारण नई जेनरेशन कथक की तरफ खीचीं चली आ रही है। ये एक ऐसी डांस फार्म है जो परमात्मा के साथ जोड़ती है। इस नृत्य की जितनी ज्यादा प्रेक्टिस की जाएगी उतना ही नृत्य में निखार आएगा। स्टूडेंट्स जब ऐसी मुश्किल डांस फॉर्म सीखकर प्रतियोगिता जीतते हैं तो गर्व होता है।

-निधि बेरी, डांस एक्सपर्ट, मिलाप चौक, जालंधर

नृत्य से मेरा दिल का रिश्ता

मैं एक सिख फैमिली से संबंधित हूं। डांस, थिएटर को फैमिली मेंबर स्पोर्ट नहीं करते लेकिन नृत्य से मेरा दिल का रिश्ता है। किस्से-कहानियों को व्यक्त करने के लिए कथक सबसे बेहतर है। वेस्टर्न डांस फॉर्म का बेसिक भी क्लासिकल डांस ही है। कथक इसलिए यहां प्रचलित हो गया क्योंकि इसे हर तरह के गाने, भक्ति गीत, श्लोक और सिर्फ म्यूजिक पर भी परफॉर्म किया जा सकता है। कथक में इनोवेशन और ग्रोथ के मौके बेहद ज्यादा हैं।

-मनप्रीत सिंह, डांस स्टूडेंट, एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स

कथक की तरफ बढ़ गया झुकाव

मैंने कथक परफॉर्म करके नेशनल यूथ फेस्टिवल जीता है। मैंने डॉ. संतोष ब्यास, डॉ. मिक्की वर्मा और डॉ. रंजना से कथक का प्रशिक्षण लिया है। डांस से मुझे बेहद लगाव था लेकिन कथक सीखने के बाद मेरा इसकी तरफ ज्यादा झुकाव हो गया। शिव तांडव तथा क्लासिकल म्यूजिक पर कई बार परफॉर्म कर चुकी हूं। जितना कथक करती हूं उतना ही कथक की ओर खींची चली जाती हूं।

-ज्योतिका वर्मा, डांस स्टूडेंट, एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स 

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