श्रमिक ट्रेनों में यात्रा करने वाले नहीं कर सकते उपभोक्ता फोरम में शिकायत, भूख-प्यास से मौत पर केस संभव

वकीलों का मानना है कि चूंकि श्रमिक खुद टिकट नहीं खरीद रहे तो वो उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आएंगे। अगर भूख-प्यास से किसी की मौत होती है तो सिविल कोर्ट में केस दर्ज हो सकता है।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Wed, 27 May 2020 09:42 AM (IST) Updated:Wed, 27 May 2020 09:42 AM (IST)
श्रमिक ट्रेनों में यात्रा करने वाले नहीं कर सकते उपभोक्ता फोरम में शिकायत, भूख-प्यास से मौत पर केस संभव
श्रमिक ट्रेनों में यात्रा करने वाले नहीं कर सकते उपभोक्ता फोरम में शिकायत, भूख-प्यास से मौत पर केस संभव

जालंधर, जेएनएन। सरकार अपने खर्च पर श्रमिकों को उनके गृहराज्य तक भेज रही है लेकिन अक्सर ट्रेनों के घंटों देरी से पहुंचने की शिकायतें आ रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या श्रमिक इसके खिलाफ उपभोक्ता फोरम में अपील कर सकते हैं? हालांकि फोरम से जुड़े माहिर वकीलों का मानना है कि चूंकि श्रमिक खुद टिकट नहीं खरीद रहे तो वो उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आएंगे। फिर भी अगर भूख-प्यास या अन्य लापरवाही से किसी की मौत होती है तो सिविल कोर्ट में क्रिमिनल केस बन सकता है।

सीनियर एडवोकेट मनदीप सिंह सचदेवा कहते हैं कि श्रमिकों को सरकारी खर्च पर भेजा जा रहा है। इसके लिए पैसे सरकार ने दिए हैं। यह सामान्य हालात में चलने वाली ट्रेनें नहीं, सरकार ने अपने स्तर पर विशेष प्रबंध किए हैं। ऐसे में उन्हें उपभोक्ता नहीं माना जाएगा। अगर कोई उपभोक्ता फोरम में शिकायत करता भी है तो इसे सुनवाई के लिए स्वीकार किए जाने से पहले यह भी साबित करना होगा कि देरी से उन्हें क्या नुकसान हुआ? आम तौर पर आगे फ्लाइट मिस होने या जरूरी कार्य न हो पाने के कारण होते हैं, लेकिन इन हालातों में यह संभव नहीं होगा। फिर रेलवे के लिए भी अलग से तर्क होगा कि उन्हें कोरोना वायरस से बचाव के लिए शारीरिक दूरी समेत कई तरह की दूसरी सावधानियों का भी पालन करना है। ऐसे में शिकायत मंजूर कराना ही मुश्किल है।

जहां तक खाने की बात है तो इसमें सरकार ने पहले ही कहा था कि लोग खाना अपना लेकर आएं, ट्रेन में इंतजाम नहीं होगा तो वो तर्क भी नहीं माना जाएगा। हां, अगर रास्ते में भूख-प्यास या मेडिकल सुविधा न मिलने से किसी की मौत हो जाती है तो फिर यह आपराधिक केस बन सकता है। आइपीसी की धारा 304ए यानि लापरवाही से मौत के तहत सिविल कोर्ट में केस दायर किया जा सकता है।

सरकार ने टिकट दिलाई, इसलिए उपभोक्ता नहीं

जिला कंज्यूमर फोरम में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट एचएस सांपला कहते हैं कि श्रमिकों ने खुद ट्रेन की टिकट नहीं खरीदी बल्कि सरकार ने उन्हें उपलब्ध कराई है, ऐसे में वो उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आएंगे। दूसरा इसमें यह नहीं है कि उन्हें बीच में छोड़ दिया गया, बल्कि रेलवे चाहे देरी से ही सही लेकिन उन्हें उनके घर छोड़कर आ रही है तो इसे सेवा में कमी भी नहीं माना जा सकता। देरी के भी कई कारण हो सकते हैं। 

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