इतिहास बने तालाब, भविष्य में दिख रहा जल संकट
मुनीष शर्मा, आदमपुर समय के साथ-साथ वातावरण में आ रहे बदलाव व कुदरती स्त्रोत खत्म होते जा रहे हैं।
मुनीष शर्मा, आदमपुर
समय के साथ-साथ वातावरण में आ रहे बदलाव व कुदरती स्त्रोत खत्म होते जा रहे हैं। आदमपुर क्षेत्र में कभी प्राकृतिक स्त्रोत के रूप में तालाब व कुएं हर गांव में पाए जाते थे, पर अब इनका वजूद ही खत्म हो गया है। हालात यह है कि या तो जल के पौराणिक स्त्रोत गांवों में नाजायज कब्जों की भेंट चढ़ चुके हैं या फिर पानी नहीं होने से सूखे पड़े हैं।
आदमपुर हलके की बात करें तो बिस्त दोआब नहर के अलावा नसराला चौ व इनके किनारे सटे गांवों में कभी हाथ से मिट्टी खोदने से ही जल बाहर आने लगता था। इस इलाके को इसी कारण सीरोवाल कहा जाता था, लेकिन यहां भी अब हालत बदतर होने लगे हैं। गांव कालरा के रहने वाले पूर्व सरपंच गुरमीत राम की मानें तो गांवों के हर हिस्से में पीने के पानी के लिए कुएं तथा कपडे़ धोने के साथ-साथ जानवरों को पानी पिलाने व अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए तीन-तीन तालाब हुआ करते थे। जलस्तर 20 से 30 फीट पर था, जो अब 300 फीट तक जा पहुंचा है। इलाके के ज्यादातर कुएं सूख चुके हैं। पानी का प्रयोग नहीं होने से कुओं को ढक दिया गया है। तालाबों का वजूद खत्म हो चुका है। गांवों में लोगों ने तालाबों की जगह पर कब्जे कर लिए हैं। अगर कहीं है तो वहां गंदा पानी जमा हो रहा है। गांवों में अब नलकूप भी नाम के रह गए हैं। घरों में वाटर सप्लाई व सबमर्सिबल बोर से पानी की आपूर्ति होने के कारण कुएं व तालाब अब इतिहास के पन्नों में दफन नजर आने लगे हैं।
गांव डरोली कलां के नंबरदार जसबीर ¨सह बताते हैं कि उनके गांवों में आठ से दस कुएं व तालाब होते थे। कुएं में हल्टी लगा पानी निकाला जाता था। गांवों में यह स्थान भी एक तरह से आपसी मेलजोल का बड़ा केंद्र हुआ करते थे। समय के साथ- साथ ये ग्रामीण जल स्त्रोत आलोप हो गए। वहीं एक ऐसा ठिकाना भी पूर्णत: समाप्त हो गया, जहां हल्टी चलाते चलाते लोग आपसी मेलजोल कायम रखते थे। उनकी मानें तो जलस्तर उनके गांवों में भी ढाई सौ फीट नीचे चला गया है। जसबीर ¨सह बताते हैं कि कुओं का बंद होना और तालाबों का वजूद खत्म होना आने वाले समय के लिए खतरनाक साबित होगा। 226
नसराला चौ नाला बनकर रह गया है : गुरमीत राम
नसराला गांव की बात करें तो गुरमीत राम बताते हैं कि करीब 1960 में नसराला चौ में पूरे साल पानी रहता था। इससे इलाके में पानी की भूमिगत कमी पूरी हो जाती थी। लोग इस पानी का लंबे समय तक प्रयोग करते थे, खेतों को यही पानी दिया जाता था। चौ पर बांध बनने के बाद अब जहां इसकी चौड़ाई कम हुई है, वहीं मौजूदा समय में अब यह नाला बनकर रह गया है।