पालतू कुत्तों के प्यार से मानसिक रोगी हुए चंगे, शोध में सामने आए हैरतअंगेज परिणाम

डा. संदीप अग्रवाल ने वर्ष 2018 में अपनी बेटी रूपशी का अकेलापन दूर करने के लिए एक पेट खरीदा। उन्होंने महसूस किया कि बेटी खुश रहने लगी। उसका तनाव कम हुआ। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती थी।

By Nitin DhimanEdited By: Publish:Fri, 30 Sep 2022 10:45 AM (IST) Updated:Fri, 30 Sep 2022 10:45 AM (IST)
पालतू कुत्तों के प्यार से मानसिक रोगी हुए चंगे, शोध में सामने आए हैरतअंगेज परिणाम
पालतू कुत्तों के साथ रहने वाले सेरेब्रल पालिसी व आटिज्म जैसे रोगों से पीड़ित बच्चों का काफी फायदा पहुंचा है।

नितिन धीमान, अमृतसर। वफादार माने जाने वाले कुत्ते घर की सुरक्षा तो करते हैं, साथ ही मानसिक बीमारियों के उपचार में भी सहायक सिद्ध हुए हैं। पालतू कुत्तों के साथ रहने वाले सेरेब्रल पालिसी व आटिज्म जैसे रोगों से पीड़ित बच्चों भी धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं। यह बात मानसिक रोगों से ग्रसित 52 बच्चों पर किए गए सर्वे में सामने आए हैं।

पेट के आने से खुश रहने लगी बेटी

दरअसल, सरकारी मेडिकल कालेज स्थित शिशु रोग विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. संदीप अग्रवाल ने यह सर्वे किया है। उनका शोध अमेरिकन जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है। डा. संदीप अग्रवाल के अनुसार वर्ष 2018 में मैंने अपनी बेटी रूपशी अग्रवाल का अकेलापन दूर करने के लिए एक पेट खरीदा था। मैंने महसूस किया कि बेटी खुश रहने लगी। उसका तनाव कम हुआ। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती थी।

52 परिवारों ने पाले कुत्ते

यहीं से मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ। हमने 15 आयु वर्ग से अधिक के 112 बच्चे तलाश किए थे। इनमें से अधिकतर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वे कुत्ता खरीदने में असमर्थ थे, जबकि कुछ परिवार कुत्तों को पसंद नहीं करते थे। ऐसे में उनके साथ 52 स्वजन तैयार हुए। इस काम में मेडिकल कालेज स्थित पीडियाट्रिक विभाग की प्रोफेसर डा. मनमीत सोढी ने मेरी मदद की। हमने सभी बच्चों की छह माह बाद हेमिल्टन एंजाइटी स्केल से जांच की। यह एक प्रकार की प्रश्नतालिका होती है।

बेहद कम निकला मानसिक तनाव का स्तर

इस जांच में आशातीत परिणाम मिले। सभी बच्चों के मानसिक तनाव का स्तर बेहद कम था। डा. संदीप के अनुसार कुत्ते एक वफादार साथी तो हैं ही साथ ही उनमें किसी तरह का छल-कपट नहीं होता। वे सभी को एक ही तरह से देखते हैं। वे नान जजमेंटल यानी आलोचनात्मक नहीं होते। बच्चे उनके साथ अपनेपन का अहसास करते हैं। उन्हें छूते हैं, पकड़ते हैं। इससे उन्हें मानसिक एवं भावनात्मक बल मिलता है। इन परिवारों ने देसी व विदेशी नस्ल के कुत्ते रखे थे।

दोनों के परिणाम तुलनात्मक एक जैसे हैं। उनका यह शोध अमेरिका द्वारा संचालित पबमेड डाटाबेस में प्रकाशित हुआ है। डा. संदीप के अनुसार पबमेड अमेरिका का एक ऐसा डाटाबेस है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में हो रही खोजों का विश्लेषण कर उन्हें संरक्षित करता है। पबमेड को यूएस नेशनल लाइब्रेरी आफ मेडिसिन में नेशनल सेंटर फार बायोटेक्नोलोजी द्वारा संचालित किया जाता है।

शोध के परिणाम

सरकारी मेडिकल कालेज के शिशु रोग विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. संदीप अग्रवाल ने 52 बच्चों पर किया शोध l कुत्तों ने कम किया मानसिक तनाव का पैमाना, छह माह बाद बच्चों में पाया गया काफी सुधारl सेरेब्रल पालसी, आटिज्म और अन्य मानसिक बीमारियों से ग्रसित बच्चों पर किया गया शोध

केस-1

15 साल का किशोर कोट खालसा का रहने वाला है। साधारण परिवार से संबंधित किशोर सेरेब्रल पालिसी से ग्रसित है। मेडिकल कालेज से उपचार करवाया गया। यहां डाक्टर के कहने पर देसी कुत्ता घर में पाला। छह माह में ही किशोर के शरीर एवं मस्तिष्क में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिले।

स्वजनों के अनुसार वह वह चल नहीं सकता था। किसी वस्तु को पकड़ नहीं पाता था, लेकिन कुत्ते के साथ खेलकर एवं उसे पकड़ने व छोड़ने के क्रम में बच्चे के हाथ मजबूर हुए। वह बिना सहारे के उठने लगा और बैठ भी जाता है। धीरे-धीरे चल भी पा रहा है।

केस- 2 

गांव तरसिक्का की रहने वाली मनप्रीत कौर बेहद गुस्सैल प्रवृत्ति की थी। असल में वह आटिज्म का शिकार थी। इसमें वह कभी गुस्सैल तो कभी शांत होकर एक जगह पर बैठी रहती थी। पढ़ाई-लिखाई में जीरो थी और उसका व्यवहार बेहद आक्रामक हो जाता था।

इस बच्ची के लिए भी विदेशी नस्ल पालतू कुत्ता रखा गया। चार माह बाद यह बच्ची कुत्ते से घुल मिल गई। आस पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने लगी। स्कूल में उसकी परफारमेंस बढ़िया हो गई। असल में वह जिम्मेदारानापूर्ण व्यवहार करने लगी।

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