यह है जालंधरः शहर को बारिश के पानी से डूबने से बचाता था उत्तरी सरोवर Jalandhar News

आज की पीढ़ी यह अनुमान लगाने में कठिनाई अनुभव करेगी कि जालंधर नगर मात्र 5.5 किलोमीटर के घेरे की चारदीवारी के भीतर था।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Mon, 30 Sep 2019 03:47 PM (IST) Updated:Tue, 01 Oct 2019 09:41 AM (IST)
यह है जालंधरः शहर को बारिश के पानी से डूबने से बचाता था उत्तरी सरोवर Jalandhar News
यह है जालंधरः शहर को बारिश के पानी से डूबने से बचाता था उत्तरी सरोवर Jalandhar News

जालंधर, जेएनएन। जालंधर का यह सरोवर उस स्थान पर था, जहां आज प्रताप बाग और मंदिर लाल द्वार हैं। कुछ इतिहासकार इस सरोवर को महर्षि अत्रि के नाम से मानते थे। आज की पीढ़ी यह अनुमान लगाने में कठिनाई अनुभव करेगी कि जालंधर नगर मात्र 5.5 किलोमीटर के घेरे की चारदीवारी के भीतर था। इसके पश्चिम और दक्षिण क्षेत्र में बस्तियों का जाल फैला तो उस ओर के लगभग सभी सरोवर समाप्त हो गए। केवल उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र में वे सरोवर जो आज से डेढ़-दो सौ वर्ष पूर्व तक दिखाई देते थे, उनमें से ही अधिकतर जोहड़ों में तब्दील हो गए हैं।

उत्तरी सरोवर सन 1960 तक किसी न किसी रूप में नजर आता रहा। पानी की लहरें उठती थीं, जिन्हें देखने के लिए शहर के बड़े-बूढ़े अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों को लेकर आते और कागज की किश्तियां पानी में छोड़ कर आनंद लिया करते थे। उस समय इसके चारों तरफ कोई आबादी भी नहीं थीं। धीरे-धीरे धरती की ज़रूरत पड़ी तो ऐतिहासिक सरोवर कब समाप्त हो गए, किसी को पता नहीं चला। सरोवरों को आवास लील गए। अब भी जब वर्षा होती है, इस  क्षेत्र में उत्तरी सरोवर की याद ताजा करने के लिए जल-थल हो जाता है।

वर्ष 1963 में सरदार प्रताप सिंह कैरों ने इसी सरोवर के किनारे पूर्व सैनिकों का एक सम्मेलन किया था। वहीं, यहां एक बाग बनाने की घोषणा की गई, जिसे नगर सुधार न्यास ने प्रताप बाग का नाम दिया। बस यहीं से इस सरोवर की समाप्ति हो गई। जब शोर उठा तो न्यास ने इसके समीप एक तरणताल बना दिया गया, जो दो दशक से बदहाल है।

(प्रस्तुतिः दीपक जालंधरी - लेखक शहर की जानी-मानी शख्सियत और जानकार हैं)

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