चौराहों के नाम बदलने में सबसे आगे जालंधर! अब पीएपी चौक को किशन चौक बनाने की मांग

जालंधर के एंट्री प्वाइंट पीएपी चौक का नाम बदलने की भी मांग उठने लगी है। इसे लेकर प्रोफेशनल बिल्डिंग डिजाइनर एसोसिएशन (पीबीडीए) के प्रधान रिशि वर्मा ने डीसी घनश्याम थोरी को मांगपत्र दिया। उनकी मांग है कि पीएपी चौक को किशन चौक बोला जाए।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Wed, 06 Jan 2021 11:57 AM (IST) Updated:Wed, 06 Jan 2021 03:41 PM (IST)
चौराहों के नाम बदलने में सबसे आगे जालंधर! अब पीएपी चौक को किशन चौक बनाने की मांग
जालंधर में पीएपी चौक का नाम बदल कर किशन चौक रखने की मांग की गई है। (फाइल फोटो)

जालंधर, जेएनएन। पूरे पंजाब में शायद जालंधर ही ऐसा शहर होगा जहां लगभग हर दो-तीन साल किसी ना किसी चौक-चौक चौराहे नाम बदला जाता है। कुछ दिन पहले ही शहर के बीचोंबीच स्थिथ व्यस्त बीएमसी चौक का नाम बदलकर संविधान चौक रखा गया था। पहले कई मशहूर चौकों के नाम बदले जा चुके हैं। अब इसके बाद शहर के एंट्री प्वाइंट पीएपी चौक का नाम बदलने की भी मांग उठने लगी है।

इसे लेकर प्रोफेशनल बिल्डिंग डिजाइनर एसोसिएशन (पीबीडीए) के प्रधान रिशि वर्मा ने डीसी घनश्याम थोरी को मांगपत्र दिया। उनकी मांग है कि पीएपी चौक का नाम बदल कर किशन चौक रखा जाए। उन्होंने कहा कि इससे लिए पहले भी कई बार प्रशासन से आग्रह किया जा चुका है लेकिन हमेशा सिर्फ आश्वासन ही दिया गया।

इन बड़े चौक-चौराहों के नाम बदले

शहर में मशहूर चौक-चौराहों के नाम बदलने की शुरुआत वर्ष 2000 के बाद हुई थी। सामाजिक संगठनों की मांग पर वर्ष 2003 में नकोदर चौक का नाम बदलकर डा. बीआर आंबेडकर चौक कर दिया गया था। इसी साल मिलाप चौक का नाम बदलकर लव-कुश चौक रख दिया गया। इसके बाद, अगले ही साल 2004 में रैनक बाजार के पास स्थित ज्योति चौक का नाम बदलकर भगवान वाल्मीकि चौक रखा गया। इसके बाद शुरू हुई चौक-चौराहों के नाम बदलने प्रथा आगे भी जारी रही और लगातार नाम बदलने की मांग उठती रही। पिछले कुछ सालों में कंपनी बाग चौक का नाम बदलकर श्री राम चौक रख दिया गया है। ताजा उदाहरण में वर्ष 2020 बीएमसी चौक का नाम बदला गया है। अब इसे संविधान चौक का नया नाम दिया गया है।

सामाजिक-राजनीतिक कारणों से बदले जाते हैं नाम

जालंधर में चौक-चौराहों के नाम बदलने के पीछे सामाजिक राजनीतिक कारण हैं। विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग समय-समय पर नाम बदलने की मांग करते हैं। वोट बैंक की राजनीति के कारण सरकार और स्थानीय नेता उनकी मांग मानने को मजबूर हो जाते हैं और चौक-चौक चौराहों के प्रचलित और पसंदीदा नाम बदलकर नए रखे जाते हैं।

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