जैविक खेती से मिलता है रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से छुटकारा, डीएवी की वेबिनार एक्सपर्ट्स ने बताए फायदे

डा. जेपी सैनी ने जैविक खेती के दायरे और लाभ के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने भारत में जैविक खेती की आवश्यकता पर जोर दिया और जैविक कृषि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि जैविक खेती मानव और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 01:57 PM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 01:57 PM (IST)
जैविक खेती से मिलता है रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से छुटकारा, डीएवी की वेबिनार एक्सपर्ट्स ने बताए फायदे
डीएवी विश्वविद्यालय में भारत में जैविक खेती के महत्व और जरूरत पर वेबिनार करवाई।

जालंधर, जेएनएन। डीएवी विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान विभाग ने भारत में जैविक खेती के महत्व और जरूरत विषय पर वेबिनार करवाई। इसमें डॉ. जेपी सैनी डिपार्टमेंट आफ आर्गेनिंक एग्रलीकल्चर एंड नेचुरल फार्मिंग एचपीकेवी, पालमपुर मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। कार्यक्रम की शुरुआत में सहायक प्रोफैसर डॉ. एएच रेड्डी ने विषय संबंधी जानकारी दी।

डॉ. जेपी सैनी ने जैविक खेती के दायरे और लाभ के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने भारत में जैविक खेती की आवश्यकता पर जोर दिया और जैविक कृषि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर चर्चा की। कृषि में रसायनों के उपयोग के निहितार्थ, जैविक खेती के सिद्धांत, जैविक खेती के घटक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से उपज की तुलना में वैज्ञानिक साक्ष्य संबंधी बताया। जैविक खेती में चुनौतियों और आगे बढ़ने की राह पर बात करते डॉ. जेपी सैनी ने जोर दिया कि जैविक खेती मानव स्वास्थ्य और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से हमारे प्राकृतिक संसाधन (मिट्टी, हवा और पानी) दूषित होते हैं और इन हानिकारक रसायनों के अवशेष खाद्य फसलों में मौजूद होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कैंसर, मधुमेह और कमजोर प्रतिरक्षा सहित कई स्वास्थ्य खतरे में हैं। उन्होंने जैविक खेती को अपनाने में चुनौतियों जैसे जागरूकता की कमी, खराब अनुसंधान निवेश, उचित नीति की कमी, जैविक खेती के लिए गरीब किसानों को वित्तीय सहायता आदि पर भी चर्चा की और सुझाव दिया कि कृषि मंत्रालय को अनुकूल सरकार का परिचय देना चाहिए औैर जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए नीतियां और रणनीतियाँ बनाई जानी चाहिए।

उन्होंने प्रतिभागियों को यह भी बताया कि विभिन्न फसलों की पैदावार लगभग बराबर है जो हमें पारंपरिक कृषि में मिलती है लेकिन जैविक उत्पादों की गुणवत्ता और कीमतें अधिक हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन किसानों को सहायता दी जानी चाहिए जो अपनी जमीन को जैविक खेती में बदलने के लिए तैयार हैं, जैविक कृषि में अनुसंधान पर निवेश बढ़ाते हैं और सरकार, निजी क्षेत्रों और गैर सरकारी संगठनों के बीच संबंधों को मजबूत करते हैं। मुख्य वक्ता ने छात्रों के साथ बातचीत की और उनके प्रश्नों को संबोधित किया। उपरांत विभागाध्यक्ष डॉ. अंजू पठानिया ने सभी का धन्यवाद किया। वैबिनार में लगभग 250 छात्रों और संकाय सदस्यों ने भाग लिया। डॉ. जसबीर ऋषि कुलपति कार्यकारिणी और डॉ. के एन कौल रजिस्ट्रार कार्यकारिणी ने कृषि विभाग द्वारा आयोजित इस वैबिनार की सराहना की और उन्हें भविष्य में भी इस तरह के वेबिनार आयोजित करने के लिए प्रेरित किया।

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