¨हसक घटनाओं से जुड़ा है छात्र संघ चुनाव का अतीत

पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव का अतीत कई ¨हसक घटनाओं का गवाह रहा है। साल 1983 में वोटिंग से एक घंटा भर पहले पूर्व काउंसिल सेक्रेटरी विजिंदर पर फाय¨रग और 1985 में छात्र नेता मक्खन सिंह की हत्या जैसी घटनाएं इसका प्रमुख उदाहरण हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Aug 2018 03:40 PM (IST) Updated:Tue, 21 Aug 2018 03:40 PM (IST)
¨हसक घटनाओं से जुड़ा है छात्र संघ चुनाव का अतीत
¨हसक घटनाओं से जुड़ा है छात्र संघ चुनाव का अतीत

डॉ. रविंद्र मलिक, चंडीगढ़ : पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव का अतीत कई ¨हसक घटनाओं का गवाह रहा है। साल 1983 में वोटिंग से एक घंटा भर पहले पूर्व काउंसिल सेक्रेटरी विजिंदर पर फाय¨रग और 1985 में छात्र नेता मक्खन सिंह की हत्या जैसी घटनाएं इसका प्रमुख उदाहरण हैं। कैंपस की राजनीति में यहां खास तौर से पुसू और पीएसयू में लंबी तनातनी रही है। यही कारण रहा कि साल 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद से विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव पर करीब 13 वर्षो तक रोक लगी रही।

कैंपस में चुनाव के दौरान आज की युवा पीढ़ी के छात्र नेताओं पर भी अशांति फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन चुनाव के दौरान अशांति का सिलसिला काफी पुराना है। साल 1983 में चुनाव के लिए वोटिंग शुरू होने से थोड़ी देर पहले ही काउंसिल के तत्कालीन सेक्रेटरी रहे विजिंदर त्रिगाड़िया को गोली मार दी गई थी। तब मामूली कहासुनी से शुरू हुए विवाद ने ¨हसक रूप ले लिया था। छात्र नेताओं के बीच आपसी रंजिश का असर इस घटना के बाद भी बरकरार रहा। 1983 के बाद चुनाव का सिलसिला थमने के बावजूद हालात यह थे कि काउंसिल प्रेसिडेंट रहे राजिंदर दीपा की सुरक्षा के लिए यूटी प्रशासन को सरकार को लेटर लिखना पड़ा था। वर्ष 1987 में पुसू के ही जसकरण बराड़ पर फाय¨रग हुई। छात्रनेता की हत्या से दहल उठा था पीयू कैंपस

1982 में सबसे बड़ा मामला तब सामने आया जब साल फरवरी को आ‌र्ट्स ब्लॉक 3 के सामने पुसू के प्रेसिडेंट मक्खन सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस दौरान वहां किसी कल्चरल कार्यक्रम का आयोजन था। आरोप लगा कि पीएसयू के छात्र नेताओं ने उन पर गोली चला दी, जो छात्रनेता की जांघ में लगी। हमले में दो अन्य छात्र नेता भी जख्मी हुए। घटना में कोच बलकार भी घायल हुए थे।

पुसू और पीएसयू में विवाद से फिर भंग हुई शांति

बीते 18 अगस्त को पीएसयू नेता दिलावर के साथ मैस में मारपीट हुई। उन्होंने पुसू नेताओं पर आरोप लगाए। इसके बाद 19 अगस्त को पुसू नेता ह¨रदर बैंस अपने साथियों सहित स्टूडेंट सेंटर पर बैठे थे, आरोप लगे कि तभी उन पर विपक्षी खेमे के दिलावर व उसके साथियों ने तलवार और डंडों से हमला किया। हमले में वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इस बीच सिर और पैरों पर कृपाण से भी हमला किया गया था।

छात्रनेता मक्खन सिंह की हत्या से फैली सनसनी

चुनावी ¨हसा का सबसे दर्दनाक रूप 24 मार्च 1985 को सामने आया। पुसू के तत्कालीन प्रेसिडेंट रहे मक्खन सिंह को सेक्टर 16 में उनके घर में घुसकर गोली मार दी गई। उनको 28 गोलियां लगीं। हमले के करीब 35 मिनट बाद ही मक्खन सिंह की मौत हो गई। हालांकि उस समय कैंपस में चुनाव बंद हो चुके थे, लेकिन इस घटना से पीयू में सनसनी फैल गई। पुलिस ने तब घटना के पीछे चुनावी रंजिश को ही कारण माना था। छात्र संगठनों में रंजिश नई बात नहीं

पीयू में सबसे गहरी रंजिश पुसू और पीएसयू जैसे छात्र संगठनों के बीच रही है। 1980 से लेकर 1983 तक कई बार दोनों में ¨हसक झड़पें हुईं। पीएसयू के ज्यादातर छात्र नेताओं ने मिलकर एनएसयूआइ का गठन किया। इसके बाद पुसू और एनएसयूआइ में भी तनातनी शुरू हो गई। पुराने छात्र नेताओं को कचोट रही कमी

पुराने छात्रनेताओं को अब भी एक सवाल खटक रहा है कि पीयू में 1984 के बाद हुए अप्रत्यक्ष चुनाव की जानकारी पीयू के स्टूडेंट्स काउंसिल के अधिकारिक बोर्ड पर क्यों नहीं है। क्योंकि इनमें जो भी प्रेसिडेंट बना वो पीयू प्रशासन द्वारा अपनाई गई अधिकारिक प्रक्रिया के द्वारा ही बना था। 1983 के 1996 तक डायरेक्ट चुनाव नहीं हुए, लेकिन 1993 में अप्रत्यक्ष चुनाव से कुलजीत नागरा प्रेजिडेंट बने। इसकी डिटेल पीयू के स्टूडेंट्स सेंटर में काउंसिल कार्यालय के बोर्ड पर नहीं है।

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