सुखना पर टूरिस्टों को खिला रहे जरूरतमंदों का खाना

कोई भूखा न रहे इसलिए जरूरतमंदों को मात्र दस रुपये में संतुलित भोजन मुहैया कराने के लिए रेडक्रॉस ने प्रधानमंत्री अन्नपूर्णा अक्षयपात्र योजना की शुरुआत की थी लेकिन अब इस योजना के तहत खाना जरूरतमंदों को नहीं बल्कि जो मिले उसे बांट कर काम निपटाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 01 Jan 2020 06:46 PM (IST) Updated:Wed, 01 Jan 2020 06:46 PM (IST)
सुखना पर टूरिस्टों को खिला रहे जरूरतमंदों का खाना
सुखना पर टूरिस्टों को खिला रहे जरूरतमंदों का खाना

बलवान करिवाल, चंडीगढ़

कोई भूखा न रहे इसलिए जरूरतमंदों को मात्र दस रुपये में संतुलित भोजन मुहैया कराने के लिए रेडक्रॉस ने प्रधानमंत्री अन्नपूर्णा अक्षयपात्र योजना की शुरुआत की थी, लेकिन अब इस योजना के तहत खाना जरूरतमंदों को नहीं, बल्कि जो मिले उसे बांट कर काम निपटाया जा रहा है। सुखना लेक पर गाड़ी खड़ी कर रेड क्रॉस की टीम दिनभर मात्र दस रुपये में प्रति पैकेट खाना बेच रही है। लेक पर घूमने आने वाले टूरिस्टों को बुला-बुलाकर यह खाना उपलब्ध कराया जा रहा है। साल के पहले दिन तो एक-एक टूरिस्ट ने इस खाने के कई-कई पैकेट खरीदे।

दरअसल शहर में तीन साल पहले इस योजना की शुरुआत सांसद किरण खेर ने की थी। इसका उद्देश्य लेबर चौक, सब्जी मंडी और पीजीआइ जैसी जगहों पर जरूरतमंदों को सब्सिडाइज्ड रेट यानी 10 रुपये में खाना बांटना था। इससे ऐसी जगहों पर लोगों को 10 रुपये में छह रोटी और सब्जी दी जाती है, जिससे इन लोगों महज दस रुपये में अच्छा खाना मिल सके। लेकिन अब रेडक्रॉस के कर्मचारी जिन्हें सही में जरूरत है, उन्हें खाना बांटने की बजाए जहां जल्दी बंट जाए वहां पहुंचकर इसे निपटाने में लगे हैं। सांसद ने इसके लिए दी कई गाड़ियां

चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर ने अपनी सांसद निधी से इस योजना के लिए कई गाड़ियां दी हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक खाना पहुंच सके। लेकिन अब इसका जमकर दुरुपयोग हो रहा है। रेडक्रॉस को मिलने वाले फंड का दुरुपयोग हो रहा है। शहर में अभी भी कई जगह ऐसी हैं, जहां लोगों को पेटभर खाना उपलब्ध नहीं होता। असल में इन लोगों तक यह खाना पहुंचाने की जरूरत है। जीएमसीएच-32 और जीएमएसएच-16 के सामने खाना खत्म हो जाता है। एक दिन में बनता है चार हजार पैकेट खाना

शुरुआत में सेक्टर-11 स्थित रेड क्रॉस की बिल्डिग में ही किचन बनाकर इस योजना की शुरुआत हुई थी। लेकिन खाने की डिमांड बढ़ने पर जगह कम पड़ी तो इस किचन को पीजीआई की सराय में शिफ्ट कर दिया गया। अब रोजाना 3500 से 4000 पैकेट खाना बनता है। जिसे गाड़ियां निर्धारित स्थानों पर बांटने निकलती हैं।

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