पंजाब कला भवन में नाटक का मंचन, बताया- बहू ही नहीं सास में भी होती है कमी

आज परिवार बड़ी जल्दी टूट रहे हैं। उसका कारण हमेशा एक लड़की नहीं होती बल्कि घर की भी कई स्थितियां ऐसी होती हैं जोकि घर को तोड़ने का काम करती है।

By Edited By: Publish:Sat, 20 Apr 2019 09:04 PM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 04:33 PM (IST)
पंजाब कला भवन में नाटक का मंचन, बताया- बहू ही नहीं सास में भी होती है कमी
पंजाब कला भवन में नाटक का मंचन, बताया- बहू ही नहीं सास में भी होती है कमी
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। आज परिवार बड़ी जल्दी टूट रहे हैं। उसका कारण हमेशा एक लड़की नहीं होती, बल्कि घर की भी कई स्थितियां ऐसी होती हैं, जोकि घर को तोड़ने का काम करती है। उसको पेश किया नाटक नई बहू में। सिटी एंटरटेनमेंट नेटवर्क की तरफ से पंजाब कला भवन सेक्टर-16 में नाटक का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि शादी के बाद जैसे ही बहू घर में आती है, तो सास नौकरानी को हटा देती है और कहती है कि अब तुझे काम करने की जरूरत नहीं। बहू सारा काम कर लेगी। उसके बाद वह खुद कोई भी काम नहीं करती, बल्कि बैठे-बैठे हर वक्त हर काम के लिए बहू को ऑर्डर देती है।

इसके साथ ही हर समय बहू को ताने मारती है कि अपने साथ कुछ नहीं लाई। तेरे बाप ने शादी में दो लाख रुपये देने का वायदा किया था लेकिन बाद में मात्र 50 हजार देकर भेज दिया है। चाचा ससुर के झूठ को माना सच नाटक में दिखाया गया कि सास का देवर घर आता है और बताता है कि उसकी बहू पार्क में किसी दूसरे पुरुष के साथ बैठी थी। वह पुरुष कौन था और उसका बहू के साथ क्या रिश्ता है इस सब को जानने के बिना ही सास बहू की पिटाई करती है और उसे घर से निकाल देती है। वहीं पर उसका बेटा भी मां को समझाने के बजाय चुपचाप देखता रहता है। इसके बाद बहू वहां से परेशान होकर उठकर मायके चली जाती है और कुछ समय के बाद तलाक भी हो जाता है।

बलवंत गार्गी ने किया है लेखन
नाटक का लेखन बलवंत गार्गी ने किया है। जबकि निर्देशन बलविंदर सिंह ने। नाटक की स्टोरी पर उन्होंने बताया कि आज के समाज में ऐसा हो रहा है। जिस घर में बहू अच्छी है, वहां पर सास कभी उसे अपनी बेटी का दर्जा नहीं देती। उसे नौकरों के समान समझा जाता है और उसे हमेशा तिरस्कार की नजरों से देखा जाता है। उसे हमेशा यह अहसास दिलाया जाता है कि वह पराए घर से आई हुई है। वहीं पुरुष भी ऐसे हैं, जो अपने घर को संभालने में कामयाब नहीं हैं। वे मां और बाप के कहने पर ही हर फैसला लेते हैं, जोकि परिवार को चलाने में परेशानी पैदा करते है। समय बदल चुका है महिलाएं अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुकी हैं।
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