हाथ नहीं हौसले से बनाई पेंटिग..

21 वर्षीय मनीष का जीवन केवल इस हॉस्टल के लिए ही नहीं बल्कि अपने कॉलेज और शहर के लिए भी प्रेरणा है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 17 Feb 2020 07:56 PM (IST) Updated:Tue, 18 Feb 2020 06:09 AM (IST)
हाथ नहीं हौसले से बनाई पेंटिग..
हाथ नहीं हौसले से बनाई पेंटिग..

शंकर सिंह, चंडीगढ़

सेक्टर -15 का इंटरनेशनल ब्यॉज हॉस्टल। कमरा नंबर 24। कमरे में घुसते ही रंगों से भरी एक दुनिया दिखती है। यहां रहते हैं मनीष तुशाम। छोटे से कमरे में अपनी ढेरों पेंटिग के बीच गायक मैथिली ठाकुर का पोट्रेट बनाने में व्यस्त मनीष ने अपने अब तक के संघर्ष पर बात की। अपने एक ही हाथ से जमीन पर पड़े रंगों को, फिर अपनी पोट्रेट बुक को एक तरफ रखते हुए उन्होंने कहा कि वह रात से पोट्रेट बना रहे हैं। अभी इसे पूरा करने में दो घंटे लगेंगे। मनीष की ये रोजाना की जिदगी है। वह अपने एक ही हाथ से कला और जीवन दोनों को संवार रहे हैं।

21 वर्षीय मनीष का जीवन केवल इस हॉस्टल के लिए ही नहीं, बल्कि अपने कॉलेज और शहर के लिए भी प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि मुझे कभी एहसास नहीं हुआ कि मेरा केवल एक ही हाथ है। लोग कला देखते हैं और इसी में खुशी मिल जाती है। मैंने भी कभी इस पर दुख व्यक्त नहीं किया। दरअसल, मैं ध्यान और तपस्या का आदी भी हूं। जीवन में एकांत और तपस्या दोनों को महत्व देता हूं। ऐसे में मुझे अपना जीवन पर्याप्त लगता है। इसमें कोई कमी नहीं दिखती, ये खुशहाल लगता है। इसी वजह से दूसरों को भी खुशियां बांट पाता हूं। डॉक्टर की लापरवाही से गंवाया हाथ..

हरियाणा के पानीपत में स्थित बोहली गांव में पैदा हुए मनीष ने कहा कि उन्हें बचपन से ही कला पसंद थी। पढ़ाई की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं गया। मगर आकृतियां और ऐसी ही कई चीजें उन्हें भाती थी। ऐसे में वह इन्हीं वस्तुओं को एकत्र करते थे। नौवीं कक्षा में उन्हें बुखार आया तो अस्पताल में दाखिल करवाया गया। वहां डॉक्टर ने गलत इंजेक्शन दिया, इसकी वजह से मेरा हाथ काटना पड़ा। मुझे वह पल काफी भयानक तो लगा, मगर मैंने हार नहीं मानी। मेरे अध्यापक मुझे हमेशा कला के लिए प्रेरित करते रहे। मैं एक ही हाथ से पेंटिग करता रहा। बाहरवीं के बाद किसी ने सुझाया कि मैं चंडीगढ़ में आकर गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज -10 में दाखिला लूं। ये करना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल था। चंडीगढ़ शहर आकर इसके लिए एक वर्ष तक मैंने तैयारी की। घर में आर्थिक तंगी थी, पिता किसानी करते हैं, फिर भी पेंटिग और पोट्रेट के जरिए अपना खर्चा निकाला। एक वर्ष के बाद पूरी तरह हाथ बैठा तो मैंने कॉलेज में एडमीशन ले पाया। ये मेरे लिए किसी सपने के सच होने जैसा था। खुशी है कि लोग मेरी कला से प्रेरित होते हैं.

मनीष ने कहा कि कला के लिए जरूरी है नजर। जो दिल की नजर से देखता है वही कैनवास पर खूबसूरती से उतर जाता है। इसमें आपका शरीर केवल एक माध्यम होता है। ऐसे में आपका प्यार जितना गहरा होगा, आपका लक्ष्य भी उतना ही जरूरी रहेगा। इसकी वजह से आप अपनी शारीरिक अक्षमता से आगे निकलकर कुछ भी प्राप्त कर सकते हो। मैंने यह कभी नहीं सोचा कि मेरे शरीर का कोई अंग कम है। मैं हमेशा हौसले से ही काम करता हूं। यही हौसला पेंटिग में और अपने जीवन में उतारता हूं। मैं चाहता हूं कि सब समझें की जीवन खूबसूरत है। हर किसी में कमी है, मगर हमारी नजर केवल हमारी खासियत पर होनी चाहिए।

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