बेटियां ही होंगी फरीदकोट के राजा की 20 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी की मालिक

फरीदकोट के राजा हरिंदर सिंह बराड़ की 20 हजार करोड़ की जायदाद की हकदार उनकी दोनों बेटियां होंगी। दोनों को इसका आधा-आधा हिस्सा मिलेगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Tue, 06 Feb 2018 03:13 PM (IST) Updated:Wed, 07 Feb 2018 10:50 AM (IST)
बेटियां ही होंगी फरीदकोट के राजा की 20 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी की मालिक
बेटियां ही होंगी फरीदकोट के राजा की 20 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी की मालिक

जेएनएन, चंडीगढ़। फरीदकोट के राजा हरिंदर सिंह बराड़ की 20 हजार करोड़ की जायदाद और संपत्ति की हकदार उनकी बेटियां महारानी अमृत कौर और महारानी दीपिंदर कौर (अब कोलकाता के राजघराने की महारानी) ही रहेंगी। दोनों को राजा की प्रॉपर्टी का आधा-आधा हिस्सा मिलेगा। चंडीगढ़ जिला अदालत ने निचली अदालत के 25 जुलाई 2013 को सुनाए आदेश को सही ठहराते हुए महरावल खेवाजी ट्रस्ट समेत चार की अपील को खारिज कर दिया।

निचली अदालत ने 2013 में राजा की प्रॉपर्टी में दोनों बेटियों को 50-50 प्रतिशत का हिस्सेदार बताया था। कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ महरावल खेवाजी ट्रस्ट ने सेशन कोर्ट में अपील की थी। वहीं, महारानी अमृत कौर ने भी 100 फीसद प्रॉपर्टी के लिए कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील कर दी थी। उधर, महारानी दीपिंदर कौर ने ट्रस्ट को सही ठहराते हुए अपील की थी।

वहीं, राजा के छोटे भाई के बेटे भरत इंदर सिंह ने भी कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की थी। निचली अदालत ने अपने फैसले में राजा हरिंदर सिंह बराड़ द्वारा कथित रूप से बनाई गई उस वसीयत को ही अमान्य माना था, जिसमें बराड़ ने अपनी पूरी जायदाद को महरावल खेवाजी ट्रस्ट बनाकर उसके हवाले कर दिया था। कोर्ट ने ट्रस्ट को भी अमान्य बताया था।

निचली अदालत के फैसले को ठहराया सही

अब सेशन कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए ट्रस्ट को अमान्य बताया। राजा की फरीदकोट में काफी प्रॉपर्टी है। इसके अलावा चंडीगढ़ में मनीमाजरा का किला, एक होटल साइट समेत दिल्ली और हिमाचल में काफी प्रॉपर्टी है। राजा की कुल प्रॉपर्टी 20 हजार करोड़ रुपये बताई जा रही है।

राजा की 1982 की वसीयत भी अवैध

25 जुलाई 2013 को सीजेएम की अदालत ने राजा की 20 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी का मालिकाना हक उनकी बड़ी बेटी राजकुमारी अमृत कौर और दूसरी बेटी महारानी दीपिंदर कौर को दिया था। निचली अदालत ने राजा की 1982 की वसीयत को अवैध ठहराया था। इस वसीयत में राजा ने महरावल खेवाजी ट्रस्ट बनाकर प्रॉपर्टी इसके नाम कर दी थी। इस ट्रस्ट की चेयरपर्सन महारानी दीपिंदर कौर हैं।

ट्रस्ट ने इस फैसले को चुनौती दी थी। ट्रस्ट ने कहा था कि अदालत ने 1952 की वसीयत पर गौर नहीं किया, जिसमें राजा ने बड़ी बेटी अमृत कौर को प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया था। इसके बाद राजा के छोटे भाई के बेटे भरत इंदर सिंह ने भी निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अदालत में अपील दायर कर कहा था कि राजा के घर के सबसे बड़े पुरुष सदस्य के नाते वे प्रॉपर्टी के हकदार हैं।

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