भाजपा मनाने में जुटी पर सिद्धू की जल्‍द 'आप' की 'तैयारी'

पंजाब में राजनीति गर्मी लगातार बढ़ रही है। इन सबके बीच, नवजोत सिंह सिद्धू भाजपा के लिए बड़ी चिंता बन गए हैं। पार्टी उन्‍हें सक्रिय करना चाहती है, लेकिन वह शिअद से अलग होनेपर अड़े हैं। ऐसे साफ संकेत मिल रहे हैं 'सिद्धू आप में जाने की तैयारी में हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Wed, 10 Feb 2016 01:48 PM (IST) Updated:Thu, 11 Feb 2016 12:19 PM (IST)
भाजपा मनाने में जुटी पर सिद्धू की जल्‍द 'आप' की 'तैयारी'

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए अभी से राजनीतिक जोड़तोड़ चरम पर है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी नए खिलाडि़यों को जुटाने में लगी हैं। दूसरी ओर, भाजपा और अकाली दल अपने गठबंधन के पेंच सुलझाने में जुटी हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू बने हुए हैं। पार्टी नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने में लगी है, लेकिन सिद्धू हैं कि मान ही नहीं रहे। बताया जाता है कि सिद्धू को कई आॅफर दिए गए, लेकिन वह अकाली दल से गठबंधन तोड़ने पर अड़े हुए हैं। इधर, ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सिद्धू दंपती आम आदमी पार्टी में जल्द ही शामिल हो सकता है।

अमृतसर से तीन बार सांसद रह चुके सिद्धू लंबे समय से भाजपा में राजनीतिक वनवास भोग रहे हैं, लेकिन एेसे संकेत मिल रहे हैं कि वह जल्द ही आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। सिद्धू इस बारे में चुप्पी धारण किए हैं, लेकिन उनकी पत्नी डा. नवजोत कौर सिद्धू के रुख व बयान यह साफ इशारा कर रहे हैं कि उनकी राजनीतिक राह 'आप' की ओर मुड़ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने 'आप' के खूब कसीदे गढ़े हैं।

शिअद से गठबंधन नहीं टूटा तो चुनाव तो लड़ें पर भाजपा की ओर से नहीं : डा. नवजोत

डा. नवजोत कौर सिद्धू बादल सरकार में मुख्य संसदीय सचिव हैं। इसके बावजूद वह अकाली दल के खिलाफ मोर्चा खोले रही हैं आैर पार्टी का अकाली दल से गठबंधन तोड़ने की मांग करती रही हैं। बुधवार को उन्होंने फिर कहा कि यदि भाजपा का शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन जारी रहा तो वे और उनके पति 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से न तो चुनाव लड़ेंगे और न ही पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करेंगे।

कहा, चुनाव लड़ेंगे, लेकिन निर्दलीय या किस पार्टी से अभी नहीं बता सकती

सीपीएस सिद्धू खुले तौर पर आप में जाने की बात नहीं कह रहीं, लेकिन भाजपा नेतृत्व द्वारा अकाली दल के साथ गठजोड़ में ही चुनाव लडऩे के फैसले के बाद उन्होंने कहा है कि वह अपने पुराने एेलान पर कायम हैं कि अकालियों से मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगी। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि वह 2017 का चुनाव लड़ेंगी। वह निर्दलीय लड़ेंगी या किसी दल की टिकट पर, इस सवाल को फिलहाल टाल गईं। उन्होंने कहा कि इसका खुलासा वह समय आने पर करेंगी कि किस पार्टी से चुनाव लडऩा है।

सिद्धू नहीं खाेना चाहती है भाजपा, जेटली मनाने की जिम्मेदारी

भाजपा पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को नहीं खाेना चाहती। सिद्धू लंबे अरसे से अकाली दल से गठबंधन तोड़ने की मांग कर रहे हैं। वह इसी कारण राज्य की राजनीति में फिलहाल सक्रिय नहीं हैं। पार्टी उन्हें राज्य में सक्रिय करना चाहती है, लेकिन सिद्धू अकाली दल से अलग हुए बिना इसके लिए तैयार नहीं हैं। बताया ताे यह भी गया है कि सिद्धू को मनाने के लिए उनके राजनीतिक गुरु अरुण जेटली को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

अकाली-भाजपा की दरार खाई बनी

अकालियों के साथ मिलकर चुनाव लडऩे के भाजपा नेतृत्व के फैसले पर वह कहती हैं कि पार्टी ने बड़े स्तर पर गठबंधन की संभावना देखकर ही फैसला लिया होगा। हो सकता है कि पार्टी को यह सही लगा हो लेकिन उन्हें यह फैसला सही नहीं लगता। उन्होंने कहा कि पिछले चार साल के दौरान दोनों दलों में दरार अब खाई बन चुकी है। इस फैसले से आम कार्यकर्ता का मनोबल टूटा है, जमीनी स्तर पर अकाली-भाजपा में कोई गठबंधन नजर नहीं आता।

...तो क्या मजीठिया के खिलाफ लड़ेंगे सिद्धू !

इस बीच, आम आदमी पार्टी के सूत्रों की मानें तो सिद्धू दंपती को जल्द पार्टी में शामिल किया जा सकता है। पार्टी नवजोत सिंह सिद्धू को कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ प्रत्याशी बनाने पर मंथन कर रही है। बुधवार को यहां प्रेस कान्फ्रेंस में 'आप' के स्टेट कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर ने जब यह कहा कि मजीठिया के खिलाफ तगड़ा उम्मीदवार उतारा जाएगा तो जानकार इसके अपने तरीके से मतलब निकालने लगे और इस सिद्धू से जोड़ रहे हैं।

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भाजपा गठबंधन में अधिक सीटें पाने की जुगत में

अकाली दल से गठबंधन के मुद्दे पर भाजपा की कोर ग्रुप की दो बैठकें हो चुकी हैं। पहले अमृतसर और फिर दिल्ली में पंजाब भाजपा कोर ग्रुप की घंटों चली बैठकें हुईं, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। पहली फरवरी को अमृतसर में किरण रिजिजू की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसके बाद करीब दो घंटे दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ कोर ग्रुप की बैठक हुई थी। इन बैठकों में कोई ऐसी नई बात नहीं हुई थी जो पहले से केंद्रीय नेतृत्व तक न पहुंच सकी हो।

इन बैठकों में चाहे अकाली दल से अलग होने की बात पंजाब के वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने कही हो लेकिन केंद्रीय नेतृत्व का असल मकसद प्रदेश इकाई की अकाली दल से नाराजगी के नाम पर सूबे में पार्टी का प्रतिनिधित्व बढ़ाना ही रहा।

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अमृतसर में हुई कोर ग्रुप की बैठक से पहले ही एक वरिष्ठ मंत्री को प्रदेश भाजपा में फेरबदल के तहत पद छोडऩे के लिए तैयार रहने के संकेत दिए गए थे। हालांकि, पहले वह मंत्री पद छोडऩे को तैयार हो गए थे ताकि दूसरे गुट से प्रधान पद के दावेदार को मंत्री बना दिया जाए पर ऐन मौके पर उस मंत्री ने पैंतरा बदल दिया। उन्होंने रिजिजू के समक्ष अकाली दल द्वारा भाजपा मंत्रियों के विभागों में दखलअंदाजी और भाजपा कार्यकर्ताओं की सरकार में कोई सुनवाई न होने की बात कर अकाली दल से अलग होने का झंडा बुलंद किया था।

इसके बाद दिल्ली में भी वही शिकायतें पंजाब भाजपा के कोर ग्रुप ने अमित शाह, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री राम लाल के समक्ष उठाई। केंद्रीय नेतृत्व ने यह कह कर कोर सदस्यों को वापस भेज दिया कि वह जल्द ही इस बारे में फैसला करेंगे लेकिन वे पंजाब जाकर इस विषय पर कोई बात न करें।

1997 से 23 सीट पर लड़ रही है भाजपा

सूत्रों की मानें तो अकाली-भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच अब अगले दौर की बैठकों का दौर शुरू होने वाला है। इनका मुख्य एजेंडा भाजपा का पंजाब में प्रतिनिधित्व बढ़ाना है। इस समय 117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में अकाली दल 94 और भाजपा 23 सीटों पर चुनाव लड़ती है। 1997 में यह समझौता हुआ था और हर चुनाव में भाजपा अपना कोटा बढ़ाने की मांग करती रही है।

वाजपेयी-आडवाणी को मना लेते थे बादल, लेकिन अब बदल गए हैं हालात

अब केंद्र व पंजाब के स्तर पर काफी कुछ बदल चुका है। पंजाब भाजपा सीटें बढ़ाने की मांग करती थी मगर मुख्यमंत्री बादल केंद्र में वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी को सीटें न बढ़ाने के लिए मना लेते थे। अब दिल्ली में मोदी-शाह की जोड़ी कुछ ज्यादा आक्रामक है।

लंबे समय से पंजाब भाजपा को नजदीक से देख रहे अरुण जेटली भी सूबे में भाजपा का आधार बढ़ाने के मूड में हैं। इस कारण पार्टी की मांग शुरुआती तौर पर 70 और 47 सीटों की है। भाजपा का कहना है कि उसे 47 सीटें मिलें, लेकिन माना जा रहा है कि वह 35 से 40 सीटाें पर मान सकती है।

हिंदू वोट बैंक वाली सीटें मांगेंगी

अकाली दल से भाजपा उन सीटों को अपने कोटे में जोडऩे को कहने की तैयारी में है जिन पर अकाली दल पिछले 15 साल में कभी नहीं जीता या जहां हिंदू वोट बैंक का खासा है। राज्य में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए यदि गठबंधन में यह तालमेल होता है तो भाजपा मालवा में करीब 12 सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर सकती है।

सुखबीर ने कहा, भाजपा को 23 से ज्यादा सीटें देना संभव नहीं

इस बीच, अकाली दल के प्रधान आैर पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा काे 23 से ज्यादा सीटें देना संभव नहीं है। अकाली दल पूर्व में समझौते के अनुरूप ही भाजपा से गठबंधन जारी रखेेगी।
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बताया जाता है कि भाजपा नवजोत सिंह सिद्धू को राज्य में अहम जिम्मेदारी सौंपना चाहती हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चा भी जोरशोर से चली थी, लेकिन सिद्धू अपने रुख पर कायम हैं। सिद्धू के आम अादमी पार्टी में शामिल हाेने की चर्चा ने भी भाजपा नेतृत्व को चिंता में डाला है, हालांकि सिद्धू आैर आप की ओर से इसका खंडन किया है।

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