पंजाब की सियासत को जेटली ने दी दिशा, जानें कैसे कायम किया था नाखून-मांस जैसा यह रिश्‍ता

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का पंजाब की राजनीति से बेहद खास नाता था। उन्‍होंने पंजाब में शिअद व भाजपा के बीच नाखून और मांस जैसो रिश्‍ता कायम करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sun, 25 Aug 2019 09:23 AM (IST) Updated:Sun, 25 Aug 2019 10:12 AM (IST)
पंजाब की सियासत को जेटली ने दी दिशा, जानें कैसे कायम किया था नाखून-मांस जैसा यह रिश्‍ता
पंजाब की सियासत को जेटली ने दी दिशा, जानें कैसे कायम किया था नाखून-मांस जैसा यह रिश्‍ता

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल व भाजपा के रिश्तों को लेकर मौजूदा समय में जब भी बात होती है तो दोनों पार्टियों के दिग्गज नेता यही कहते हैैं यह नाखून-मांस का रिश्ता है। यह सिर्फ सियासी गठबंधन नहीं है। दरअसल दोनों पार्टियों के बीच नाखून-मांस जैसा रिश्ता बनाने वाले अरुण जेटली ही थे। वह अंतिम सांस तक इस रिश्ते को रक्त से सींचने का काम करते रहे।

अकाली दल व भाजपा के बीच संबंधों को हमेशा मजबूत करते रहे अरुण जेटली

बात 2007-12 की शिअद-भाजपा सरकार के कार्यकाल की है। पंजाब में अपने हिस्से की 21 में से 19 सीटें जीतकर अकाली दल को सत्ता में लाने वाली भारतीय जनता पार्टी चाहती थी कि उसका उप मुख्यमंत्री बनाया जाए। चूंकि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल थे, इसलिए भाजपा ने खुले रूप में यह इच्छा जता दी थी कि उपमुख्यमंत्री का पद उसे मिले। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल इसके लिए तैयार नहीं थे। बिजली की बढ़ाई गई दरों को वापस लेने का बहाना बनाकर भाजपा के सभी पांचों मंत्री इस्तीफा देने पर उतारू हो गए।

कहा था- हम यह न भूलें कि शिअद ने भाजपा को तब समर्थन दिया जब कोई पार्टी तैयार नहीं थी

बात मुख्यमंत्री बादल के हाथ से भी निकलती जा रही थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता बलराम जी दास टंडन, मदन मोहन मित्तल व अन्य नेता इस मुद्दे को लेकर केंद्रीय लीडरशिप के पास पहुंचे। बात यहां तक पहुंच गई कि भाजपा अकाली दल से समर्थन वापस लेने या सरकार को बाहर से समर्थन देने पर विचार करने लगी, लेकिन हाईकमान में अरुण जेटली की दलीलों के आगे किसी की नहीं चली।

जेटली ने सभी भाजपा नेताओं को दो टूक कहा कि वे यह बात न भूलें कि अकाली दल ने भाजपा को उस समय समर्थन दिया था जब देश की कोई भी पार्टी भाजपा के साथ आने को तैयार नहीं थी। भाजपा और अकाली दल का नाता सत्ता के लिए नहीं, सामाजिक सौहार्द के लिए है। प्रदेश के भाजपा नेताओं की कोई दलील नहीं चली। सभी नेता मुंह लटकाकर वापस आ गए।

भारतीय जनता पार्टी ने अकाली दल से कई बार अलग होने की कोशिश की है। अकाली दल में प्रकाश सिंह बादल और भाजपा में अरुण जेटली ऐसे नेता रहे हैं जो इस तरह के किसी भी कदम के बिल्कुल खिलाफ थे। 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार सत्ता में आई तो पंजाब में भाजपा ने अपना विस्तार करने का प्रयास किया। प्रदेश में 21 लाख से ज्यादा सदस्य बनाने के बाद भाजपा ने एक बार फिर से 23 से ज्यादा सीटों की मांग करनी शुरू कर दी, लेकिन इस बार भी जेटली ही अड़ गए।

भाजपा के प्रदेश नेताओं को अक्सर हाईकमान से नाराजगी रही है, लेकिन खुलकर बोलने को कोई भी तैयार नहीं था। दरअसल 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने की ओर अग्रसर थे और देश की अन्य पार्टियों से समर्थन के लिए हाथ बढ़ा रहे थे तो अकाली दल ऐसा पहला दल था जिसने वाजपेयी को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया। पार्टी के तब के प्रधान प्रकाश सिंह बादल ने ऐलान किया कि अकाली दल यह समर्थन पंजाब में सामाजिक सौहार्द बनाने के लिए दे रहा है।

दरअसल यह वह समय था जब पंजाब आतंकवाद के काले दौर से बाहर आया था और एक साल पहले 1995 में बेअंत सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए आतंकी हमले का शिकार हुए थे। राज्य में माहौल काफी तनावपूर्ण था। हिंदू-सिख एकता तार-तार हो चुकी थी। ऐसे में अकाली दल और भाजपा का तालमेल माहौल में सौहार्द लाने के लिए उभरा। प्रकाश सिंह बादल और अटल बिहारी वाजपेयी ने सौहार्द का जो बीज बोया, उसे अरुण जेटली अपनी अंतिम सांस तक सींचते रहे। वह हमेशा दोनों दलों के बीच सेतु का काम करते रहे।

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 जब जेटली ने खुद को बताया कैप्टन से ज्यादा पंजाबी

अरुण जेटली पंजाब की राजनीति में किसी न किसी रूप में हमेशा सक्रिय रहते थे। उनका अकसर यहां आना लगा रहता था। लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव जेटली हमेशा भाजपा-शिअद गठबंधन के लिए प्रचार करने पहुंचते थे। यहां की सियासत उनके किस्सों से भरी पड़ी है।

-1980 में अरुण जेटली की शादी तत्कालीन कांग्रेस नेता व जेएंडके के मंत्री गिरधारी लाल डोगरा की बेटी संगीता जेटली से हुई। उनका सबंध भी अमृतसर से था।

-2007 में पंजाब भाजपा के प्रभारी बने। उनके प्रभारी रहते 2007 के चुनाव में भाजपा ने सबसे बड़ी जीत प्राप्त की और 19 विस सीटें जीतीं।

-2014 में पहली बार अमृतसर की संसदीय सीट से चुनावी रण में उतरे थे, लेकिन 1,02,770 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा।

-2014 में जब कैप्टन ने उन्हें बाहरी उम्मीदवार बताया तो जेटली ने कहा था- मैं कैप्टन से ज्यादा पंजाबी हूं। मेरी जड़ें पंजाब में बहुत गहरी हैं।

-2017 में अमृतसर में विजय संकल्प रैली में जेटली ने कहा था कि कैप्टन साहब कहते थे कि बादल साहब के पास विदेश में बहुत संपत्ति है, वो तो उनको मिली नहीं, लेकिन उनके खुद के विदेश में खाते जरूर मिले।

-2014 में एनडीए की सरकार बनने पर जेटली ने अमृतसर के नेताओं से दूरी बनाई।

-300 करोड़ का जीएसटी वापस करवाया था श्री हरिमंदिर साहिब के लंगर पर।

-पंजाब में बने भाजपा के शानदार कार्यालयों के निर्माण का सेहरा भी जेटली के सिर ही बंधता रहा है।

-जेटली के चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी भी अमृतसर आए थे।

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ट्रक भर कर नोट

जेटली के वित्त मंत्री बनने पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने एक रैली में कहा था कि अब पंजाब को ट्रक भर-भर नोट मिलेंगे। जेटली ने अपने कार्यकाल में पंजाब को कई वित्तीय सौगातें दीं।

अमृतसरी कुलचे पहली पसंद

जेटली जब भी पंजाब आते तो अमृतसरी कुलचे और चने खाना नहीं भूलते। वे विशेष ऑर्डर देकर कुलचे मंगवाया करते थे। वे पंजाबी खाने के बहुत शौकीन थे। वे दिल्ली के एक रेस्टोरेंट में भी कुलचे-छोले खाया करते थे।

गुरु के सियासी गुरु

2004 में नवजोत सिंह सिद्धू की भाजपा में एंट्री के साथ ही उन्हें जेटली का सियासी संरक्षण मिला। सिद्धू छाती ठोकर उन्हें अपना गुरु कहते रहे हैं। 2007 में लोकसभा उपचुनाव में सिद्धू की जीत में जेटली की बड़ी भूमिका थी।

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