कृषि कानूनों को रद करवाने को लेकर शुरु किया धरना 254वें दिन में दाखिल

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानून को रद करवाने के लिए धरना जारी।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 10:53 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 10:53 PM (IST)
कृषि कानूनों को रद करवाने को लेकर शुरु किया धरना 254वें दिन में दाखिल
कृषि कानूनों को रद करवाने को लेकर शुरु किया धरना 254वें दिन में दाखिल

संवाद सहयोगी, बरनाला : केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानून को रद करवाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर रेलवे स्टेशन बरनाला के बाहर पार्किंग समक्ष लगाया गया संयुक्त किसानों का रोष धरना शुक्रवार को 254वें दिन भी जारी रहा। इसी तरह महलकलां टोल प्लाजा, बड़बर टोल प्लाजा, दो माल,दो पेट्रोल पंप संघेड़ा व पेट्रोल पंप धनौला,भाजपा जिला प्रधान यादविदर शैंटी के निवास समक्ष, भाजपा नेता अर्चना दत्त शर्मा के निवास समक्ष किसानों का धरना भी जारी है। शुक्रवार को वक्ताओं ने केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों की चर्चा करते कहा कि सरकार को किसानों की कोई फिक्र नहीं है। अपना हिदूवादी एजेंडा लागू करने की चिता है। जब देश कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। देश में आक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं। अस्पतालों में बेड नहीं हैं, डाक्टर नहीं हैं। इसका हल करने की बजाए प्रधानमंत्री को सेंट्रल विस्टा नामक सजावटी प्रोजेक्ट को पूरा करने को उतावले हैं। सरकार पटेल की मूर्ति, बुलेट ट्रेन आदि सजावटी प्रोजेक्ट भी लोगों की भलाई के लिए नहीं बल्कि प्रधानमंत्री की निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए पूरे किए गए हैं। इन प्रोजेक्टों का लोक हितों से कोई लेना-देना नहीं है। रियल एस्टेट कारोबारियों व देसी-विदेशी कंपनियों के हित व मुनाफे इन प्रोजेक्टों से जुड़े हुए हैं।

धरने को संबोधित करते बलवंत सिंह उप्पली, करनैल सिंह गांधी, मेला सिंह कट्टू, गुरमेल शर्मा, मनजीत राज, परमजीत कौर, सुखविदर सिंह, अमरजीत कौर, बलजीत सिंह, काका सिंह, बलवीर कौर ने कहा कि सरकार का रवैया लोगों की मांगों प्रति संवेदनशील होना चाहिए किंतु देश की मौजूदा सरकार का रवैया गैर संवैधानिक है। किसान आंदोलन में अब तक 500 किसान शहीद हो चुके हैं कितु प्रधानमंत्री के मुंह से किसानों के लिए हमदर्दी के दो शब्द नहीं निकले।

गुरमेल सिंह कालेके व जुगराज सिंह ठुल्लीवाल के कविश्री जत्थे ने कविश्री से जोश में पंडाल भरा। नरिदरपाल सिगला ने इंकलाबी कविता सुनाई।

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