पर्यावरण प्रदूषण को कम कर पर्यावरण संरक्षण की उदाहरण बना
कस्बा हंडिआया कोठे दुलट के किसान गुरमेल सिंह ने गेहूं-धान की रिवायती फसली चक्कर को आधुनिक तकनीक से कृषि क्षेत्र में नया प्रयास शुरू किया है।
हेमंत राजू, बरनाला : कस्बा हंडिआया कोठे दुलट के किसान गुरमेल सिंह ने गेहूं-धान की रिवायती फसली चक्कर को आधुनिक तकनीक से कृषि क्षेत्र में नया प्रयास शुरू किया है। उसने किसान साथियों का ग्रुप बना पंजाब सरकार द्वारा 80 फीसद सब्सिडी का लाभ लेकर फसलों के अवशेष आग की भेंट करने की जगह प्रबंधन के लिए आधुनिक मशीनरी खरीद इस्तेमाल किया है। इसमें चौपर, रिवरसीबल एमबी, पलाओ, हैपीसीडर आदि शामिल हैं। गुरमेल सिंह दो वर्ष से अपनी 65 एकड़ धान की फसल काटने के बाद उसके अवशेष को मिट्टी में ही मिला कर अगली फसल की बिजाई कर रहा है। गुरमेल ने बताया कि पहले 65 एकड़ से निकलने वाली 25 एकड़ धान की पराली को आग लगाता था, लेकिन आग न लगा पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने का फैसला लेकर पराली का प्रबंधन किया।
पराली का टुकड़ा कर गेहूं की बिजाई
गुरमेल ने बताया कि खेत तैयार करने के लिए कुछ क्षेत्रफल पर वह चौपर के साथ पराली का टुकड़ा कर हैपीसीडर व रोटावेटर की मदद से गेहूं की बिजाई करते हैं, बाकी क्षेत्रफल पर उनकी तरफ से 'बेलर' (गांठ बांधने वाली मशीन) की मदद से खेत खाली कर रवायती तरीके से साथ फसल बीजते हैं।
डीसी ने किया सम्मानित
किसान गुरमेल सिंह द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों की प्रशंसा करते हुए डीसी बरनाला तेज प्रताप सिंह फूलका ने दूसरे किसानों को भी फसलों की अवशेष को आग लगाने के बुरे रुझान को त्याग करने की अपील की। उन्होंने कहा कि धान की जड़ों को आग लगाने से बहुत बड़ी
मात्रा में धुआं पैदा होता है जो कि मनुष्य के साथ-साथ जीव जंतुओं व पौधों व पेड़ों का भी बड़े स्तर पर नुकसान करता है। उन्होंने कहा कि आग लगाने से किसानों की अपनी सेहत के नुकसान के साथ-साथ उन की जमीन को उपजाऊ बनाने वाले सूक्ष्म व मित्र जीवों का भी खात्मा हो जाता है, जिस के लिए आग लगाना किसानों के लिए हर स्तर पर नुकसानदायक है।
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