प्राणदायिनी ऑक्सीजन कहीं छीन न ले सांस

। गुरु नानक देव अस्पताल (जीएनडीएच) में प्राणदायिनी ऑक्सीजन ही किसी वक्त मरीजों के लिए प्राणघातक साबित हो सकती है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 30 Jan 2020 01:34 AM (IST) Updated:Thu, 30 Jan 2020 01:34 AM (IST)
प्राणदायिनी ऑक्सीजन कहीं छीन न ले सांस
प्राणदायिनी ऑक्सीजन कहीं छीन न ले सांस

नितिन धीमान, अमृतसर

गुरु नानक देव अस्पताल (जीएनडीएच) में प्राणदायिनी ऑक्सीजन ही किसी वक्त मरीजों के लिए प्राणघातक साबित हो सकती है। पंजाब के इस प्रमुख चिकित्सा संस्थान में ऑक्सीजन की आपूर्ति कई बार ठप हो चुकी है। हर बार डॉक्टरों के हाथ पांव फूल जाते हैं। सेंट्रल ऑक्सीजन सिस्टम से अस्पताल की सभी वॉर्डों तक पाइपों के जरिए पहुंचने वाली ऑक्सीजन पर बीते बुधवार को ब्रेक लगी थी। इस ब्रेकेज को अस्पताल के एक दर्जा चार कर्मचारी ने जुगाड़ू तकनीक से खोल तो दिया, पर यह तय है कि यह जुगाड़ किसी भी समय मरीजों की सेहत से खिलवाड़ कर सकता है।

दरअसल, जीएनडीएच में एक निजी गैस कंपनी द्वारा ऑक्सीजन से भरे सिलेंडरों की आपूर्ति की जाती है। ये सिलेंडर अस्पताल में स्थित गैसेज यूनिट में रखे जाते हैं। यहां इन सिलेंडरों को पैनल से जोड़ा जाता है। यह पैनल सिलेंडरों से निकलने वाली ऑक्सीजन का प्रेशर नियंत्रित करता है और निर्धारित मापदंडों के अनुसार पाइपों में ऑक्सीजन का संचार करता है। दुखद पहलू यह है कि पिछले छह माह में यह पैनल तीन बार खराब हो चुका है। पहली बार तो अस्पताल प्रशासन ने निजी कंपनी के इंजीनियर को बुलाकर पैनल ठीक करवा लिया, पर भुगतान नहीं किया गया। चार माह पूर्व जब दूसरी बार पैनल खराब हुआ तो कंपनी के इंजीनियर को आने को कहा गया, पर उसने यह कहकर इंकार किया कि पहले पुराना साढ़े तीन लाख रुपये बकाया दिया जाए। ऐसी स्थिति में अस्पताल के एक दर्जा चार कर्मचारी ने गांठ-जोड़ कर इस पैनल को शुरू कर दिया और ऑक्सीजन की आपूर्ति हो गई। बीते मंगलवार को पैनल फिर से बिगड़ा। ऐसे में 22 मरीजों के ऑपरेशन स्थगित कर दिए गए। तब भी दर्जा चार कर्मचारी ने ही जुगाड़ लगाकर इसे शुरू किया था।

जुगाड़ू तकनीक से हुए ऑपरेशन

बुधवार को ऑपरेशन थिएटर में जुगाड़ू तकनीक से ऑक्सीजन का संचार हुआ। इसके बाद डॉक्टरों ने 25 मरीजों के ऑपरेशन किए। अनुमान कर सकते हैं कि यह जुगाड़ कितने दिन तक टिकेगा और यदि ऑपरेशन थिएटर में ऑपरेशन के वक्त किसी मरीज की सांसें अनियमित हो जाएं तो उसे ऑक्सीजन कैसे मिलेगी। जाहिर सी बात है कि मरीज की जान चली जाएगी। इसके बाद अस्पताल प्रशासन जांच कमेटियां बिठाकर कुछ माह तक जांच का नाटक करेगा और फिर बात रफा-दफा हो जाएगी। दवाओं के बगैर चल सकता है, पर ऑक्सीजन तो जरूरी है

जीएनडीएच में दवाओं की कमी हमेशा ही खलती रही है। खैर, दवाएं तो निजी मेडिकल स्टोर्स से खरीदी जा सकती हैं, पर ऑक्सीजन तो अस्पताल में ही मिलेगी। गैसेज यूनिट का जो पैनल खराब हुआ है, उससे ऑर्थो व मेन ऑपरेशन थिएटर में ऑक्सीजन की सप्लाई की जाती है। मेन ऑपरेशन थिएटर में 12 मिनी ऑपरेशन थिएटर हैं, जहां प्रतिदिन 25 से 30 मरीजों के ऑपरेशन किए जाते हैं। इनमें से 50 फीसद मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। गैस उत्पादन के लिए ऑक्सीजन प्लांट भी है

अस्पताल में गैस उत्पादन के लिए ऑक्सीजन प्लांट भी है। वर्ष 2012 में लगाए गए इस प्लांट को आज तक शुरू नहीं किया जा सका। वर्तमान में यह प्लांट घास फूस में दब चुका है। यदि यह प्लांट शुरू कर दिया जाता तो अस्पताल को निजी गैस कंपनी से ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने की जरूरत न पड़ती। मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग के मंत्री ओमप्रकाश सोनी ने कहा कि प्लांट शुरू करवाया जा रहा है। अस्पताल में ही गैस का उत्पादन जल्द शुरू होगा। बकाया राशि स्वीकृत हुई : डॉ. रमन शर्मा

निजी कंपनी का पुराना बकाया देने में असमर्थ रहा अस्पताल प्रशासन तर्क देता है कि बिल चंडीगढ़ भेजे गए थे, जो अब क्लीयर हुए हैं। अस्पताल के नवनियुक्त मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. रमन शर्मा ने कहा कि निजी कंपनी की बकाया राशि स्वीकृत हो चुकी है। यह राशि जल्द उसे दे दी जाएगी। इसके बाद पैनल ठीक करवाया जाएगा।

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