असम से तीन दशक बाद हटने जा रहा है अफस्‍पा, जानें विवादास्‍पद एक्‍ट के बारे में

अफस्पा देश की संसद द्वारा 1958 में पारित किया गया एक कानून है जिसके तहत हमारे सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई संबंधी विशेषाधिकार प्रदान किया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 17 May 2019 02:37 PM (IST) Updated:Sat, 18 May 2019 01:44 PM (IST)
असम से तीन दशक बाद हटने जा रहा है अफस्‍पा, जानें विवादास्‍पद एक्‍ट के बारे में
असम से तीन दशक बाद हटने जा रहा है अफस्‍पा, जानें विवादास्‍पद एक्‍ट के बारे में

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। केंद्र सरकार ने असम को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत विवादास्‍पद आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट (AFSPA) को राज्य से हटाने पर फैसला लिया गया है। यह कानून इसी साल अगस्त में पूरी तरह से हटा लिया जाएगा। इसके लिए असम से सेना को वापसी के लिए तैयारियां शुरू करने का निर्देश दिया गया है। विशेष बात ये है कि इस कानून को राज्य से तीन दशक बाद हटाया जाएगा।

क्या है अफस्पा
अफस्पा के समर्थन और विरोध को समझने के लिए आवश्यक होगा कि हम पहले यह जान लें कि आखिर अफस्पा है क्या? सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी अफस्पा देश की संसद द्वारा 1958 में पारित किया गया एक कानून है, जिसके तहत हमारे सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई संबंधी विशेषाधिकार प्रदान किए जाते हैं। इसके द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकारों में मुख्यत: सुरक्षाबलों को बिना अनुमति किसी भी स्थान की तलाशी लेने और खतरे की स्थिति में उसे नष्ट करने, बिना अनुमति किसी की गिरफ्तारी करने और यहां तक कि कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने जैसे अधिकार प्राप्त हैं।

लागू होने की प्रक्रिया

किसी भी क्षेत्र में यदि उग्रवादी तत्वों की अत्यधिक सक्रियता महसूस होने लगती है, तब संबंधित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र द्वारा उस क्षेत्र को ‘अशांत’ घोषित कर वहां अफस्पा लागू किया जाता है तथा केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती की जाती है।

क्यों है जरूरी
अफस्पा देश के जिन भी राज्यों में लागू है, वहां की परिस्थितियों को देखें तो इसकी जरूरत समझ में आ जाती है। मणिपुर, नगालैंड, असम, जम्मू-कश्मीर इन सब राज्यों में अलग-अलग प्रकार की उग्रवादी व अलगाववादी ताकतें सक्रिय हैं। मणिपुर और नगालैंड में मिले-जुले उग्रवादी संगठनों का प्रभाव है तो असम में उल्फा का प्रभाव व्याप्त है। जम्मू-कश्मीर की कहानी तो खैर देश में किसी से छिपी ही नहीं है कि कैसे वहां नापाक पड़ोसी द्वारा प्रेरित आतंकवाद दहशत फैलाए रहता है। इन सब जगहों के उग्रवाद में एक समानता यह है कि ये सब देश की अखंडता को क्षति पहुंचाने की मंशा रखते हैं। इन अराजक तत्वों की इस दुष्ट मंशा का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अफस्पा जरूरी है। यहां बीपी जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशों की तर्ज पर यह तर्क दिया जा सकता है कि इन तत्वों से निपटने के लिए बिना अफस्पा के भी तो सेना की तैनाती की जा सकती है? यह तर्क कागजों में तो मजबूत दिखाई देता है, लेकिन जब धरातल की कसौटियों पर इसे परखते हैं तो धराशायी हो जाता है।

विवाद और विरोध
अफस्पा का यदि मानवाधिकार संगठनों द्वारा विरोध किया जाता है तो इसका कारण अफस्पा लागू राज्यों में कुछ विवादास्पद मामलों का सामने आना भी है। मणिपुर में वर्ष 2000 के नवंबर में असम राइफल्स के जवानों पर दस निर्दोष लोगों को मारने का आरोप सामने आया, जिसके विरोध और अफस्पा खत्म करने की मांग के साथ मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गईं, जो सोलह वर्ष बाद 2015 में समाप्त हुआ। इस दौरान उन्हें नाक में नली लगाकर भोजन दिया जाता रहा। 

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