गंगा नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए शहरों का सीवेज गिरने से रोकना होगा

गंगा को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों की हर साल समयबद्ध ढंग से जांच करायी जा रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 18 Oct 2018 09:34 PM (IST) Updated:Thu, 18 Oct 2018 09:35 PM (IST)
गंगा नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए शहरों का सीवेज गिरने से रोकना होगा
गंगा नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए शहरों का सीवेज गिरने से रोकना होगा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सरकार 10 शहरों पर फोकस कर रही है। इन शहरों से ही गंगा में लगभग दो तिहाई सीवेज प्रवाहित होता है। इन शहरों का सीवेज रुकने पर गंगा नदी की स्थिति में काफी सुधार आ जाएगा।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के सूत्रों ने कहा कि गंगा नदी में जितना घरेलू सीवेज गिरता है उसका 64 प्रतिशत से अधिक हरिद्वार, कानपुर, इलाहबाद, वाराणसी, पटना, भागलपुर और हावड़ा सहित दस शहरों से जनरेट होता है। इसलिए नमामि गंगे के तहत इन शहरों पर फोकस किया जा रहा है।

इन शहरों में सीवर लाइन बिछाने से लेकर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए आक्रामक रणनीति अपनायी जा रही है। यह काम विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से किया जा रहा है। इसके अलावा गंगा की सहायक नदियों जैसे यमुना, रामगंगा और गोमती के किनारे स्थित शहर भी इसमें शामिल हैं। यही वजह है कि मथुरा और दिल्ली में भी सीवेज की रोकथाम के इंतजाम किए जा रहे हैं।

सूत्रों ने कहा कि गंगा के किनारे स्थित शहरों में 'वन सिटी, वन ऑपरेटर' के आधार पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किए जा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि एक शहर में जितने भी एसटीपी होंगे उनके परिचालन की जिम्मेदारी किसी एक कंपनी की होगी। मसलन, कानपुर के लिए शपोरजी पलोंजी को चुना गया है।

सूत्रों ने कहा कि इन शहरों में स्थित सभी मौजूदा एसटीपी के प्रदर्शन का मूल्यांकन का काम भी पूरा हो चुका है। जो नए एसटीपी बनाए जा रहे हैं, उनके निर्माण की निकट से निगरानी की जा रही है।

सूत्रों ने बताया कि एनएमसीजी के अधिकारियों ने हाल में कैबिनेट सचिवालय ने सरकार की महत्वाकांक्षी 'नमामि गंगे' योजना की अब तक प्रगति का जायजा लिया जिसमें ये तथ्य सामने आए हैं।

बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि गंगा के प्रवाह क्षेत्र में आने वाले राज्यों के स्तर पर भी इन परियोजनाओं को पूरा होने तक लगातार निगरानी की आवश्यकता है। इसके अलावा गंगा को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों की हर साल समयबद्ध ढंग से जांच करायी जा रही है।

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