दागी नेताओं के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार और चुनाव आयोग आमने-सामने, फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखते हुए सरकार की तरफ से कहा गया कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका को दखल नहीं देना चाहिए।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Tue, 28 Aug 2018 07:40 PM (IST) Updated:Wed, 29 Aug 2018 07:16 AM (IST)
दागी नेताओं के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार और चुनाव आयोग आमने-सामने, फैसला सुरक्षित
दागी नेताओं के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार और चुनाव आयोग आमने-सामने, फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार से उलट नजरिया अपनाते हुए गंभीर अपराधों में आरोप तय होने पर व्यक्ति को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराए जाने की मांग का समर्थन किया है। चुनाव आयोग ने कहा कि उसने और विधि आयोग ने सरकार से इस बारे में कानून में संशोधन करने की सिफारिश की थी लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। संसदीय समिति की रिपोर्ट में सिफारिश नकार दी गई ऐसे में अगर सरकार और संसद कुछ नहीं करती तो कोर्ट को आदेश देना चाहिए।

चुनाव आयोग ने कहा कि स्वच्छ राजनीति का चुनाव करना मतदाता का हक है। वहीं कोर्ट ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उम्मीदवार के अपराधिक ब्योरे के बारे में जानना मतदाता का हक है। हालांकि सरकार ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में संसद को ही कुछ करने का अधिकार है कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई पूरी करके अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं जिनमें गंभीर अपराध में आरोप तय होने पर व्यक्ति को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराए जाने की मांग की गई है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने की।

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील मिनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि आयोग याचिका में की गई मांग का समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने 1997 में और विधि आयोग ने 1999 में सरकार को सिफारिश भेज कर जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कर गंभीर अपराध में आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने उस पर कुछ नहीं किया।

अरोड़ा ने कहा कि संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कह दिया है कि सिफारिश स्वीकार नहीं की जा सकती। इसका सीधा संदेश जाता है कि इनकी मंशा कानून मे संशोधन की नहीं है। लोगों का अधिकार है कि वे स्वच्छ राजनीति का चुनाव करें। अगर संसद कुछ नहीं करती तो कोर्ट जनहित में आदेश दे। इन दलीलों पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वे संसद पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे। जस्टिस मिश्रा ने अरोड़ा से कहा कि वे कानून में संशोधन या अयोग्यता बढ़ाने के बजाए ये बताएं कि उम्मीदवार के आपराधिक ब्योरे की घोषणा के लिए क्या किया जा सकता है।

अरोड़ा ने कहा कि कोर्ट के पूर्व आदेश के बाद उम्मीदवार हलफनामा दाखिल कर शिक्षा और संपत्ति के साथ आपराधिक मुकदमों का ब्योरा भी देता है। लेनिक ये सीमित है और ये प्रभावी भी नहीं है। ब्योरा आयोग की वेबसाइट और जहां हलफनामा दाखिल होता है वहां उपलब्ध होता है। ये ग्रामीण जनता को उपलब्ध नहीं होता। कोर्ट राजनैतिक दलों से कहे कि वे प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसका ब्योरा दें क्योंकि चुनाव आयोग की भूमिका नामांकन के बाद शुरू होती है। सिंबल आर्डर के जरिये राजनैतिक दलों को ऐसे दागी उम्मीदवार न खड़े करने की बात पर अरोड़ा ने कहा कि कोर्ट अगर आदेश दे तो आयोग ऐसा कर सकता है। इन दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि अयोग्यात बढ़ाने पर आदेश देना जरा मुश्किल होगा लेकिन उम्मीदवार के बारे में जानने के मतदाता के हक को देखते हुए उस पर आदेश दिया जा सकता है।

उधर केन्द्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट इस बारे में आदेश नहीं दे सकता। ये काम विधायिका का है। कोर्ट आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने के अयोग्य नहीं ठहरा सकता ये बात व्यक्ति को अदालत से दोषी करार दिये जाने तक निर्दोष माने जाने के सिद्धांत के भी खिलाफ है। जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कोर्ट इस बारे मे आदेश दे। सिंबल आर्डर के तहत चुनाव आयोग राजनैतिक दल ऐसे लोगों को उम्मीदवार बनाने से रोके।

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