कोर्ट ने पहले भी दिये हैं सदन में बहुमत साबित करने के आदेश- जाने, कौन से हैं वो मामले

इससे पहले भी कई मामले सुप्रीम कोर्ट जा चुके हैं और कोर्ट सदन में बहुमत साबित करने का आदेश भी दे चुका है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Sun, 24 Nov 2019 09:50 PM (IST) Updated:Mon, 25 Nov 2019 08:59 AM (IST)
कोर्ट ने पहले भी दिये हैं सदन में बहुमत साबित करने के आदेश- जाने, कौन से हैं वो मामले
कोर्ट ने पहले भी दिये हैं सदन में बहुमत साबित करने के आदेश- जाने, कौन से हैं वो मामले

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। महाराष्ट्र का राजनैतिक घमासान सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने संयुक्त याचिका दाखिल कर कोर्ट से देवेंद्र फडणवीस को 24 घंटे में बहुमत साबित करने का आदेश देने की मांग की है। कोर्ट इस मामले को जांचने परखने मे जुट गया है और उसने केन्द्र सरकार से सरकार गठन के बारे में राज्यपाल और मुख्यमंत्री फडणवीस के पत्रों को पेश करने को कहा है।

यह पहला मौका नहीं है जबकि सरकार गठन का फंसा पेंच सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हो। इससे पहले भी कई मामले सुप्रीम कोर्ट जा चुके हैं और कोर्ट सदन में बहुमत साबित करने का आदेश भी दे चुका है।

कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सबसे पहले एसआर बोम्मई के केस में कहा था कि सदन में बहुमत साबित होना ही अल्टीमेट टेस्ट है। इसके बाद कोर्ट ने रामेश्वर दयाल के केस में इस बात को और स्पष्ट कर दिया। बाद में झारखंड का सरकार गठन का मामला जिसे अनिल झा केस के नाम से जाना गया कोर्ट पहुंचा। उत्तर प्रदेश का जगदंबिका पाल का केस हुआ जिसमें कोर्ट के आदेश पर फ्लोर टेस्ट हुआ था। 2016 को हरीश रावत सरकार के मामले मे भी कोर्ट ने सदन मे बहुमत साबित करने का न सिर्फ आदेश दिया था बल्कि यह भी बताया था कि कैसे सदन मे फ्लोर टेस्ट होगा। और अभी पिछले साल का ताजा मामला कर्नाटक है जब कोर्ट ने येदुरप्पा सरकार को बहुमत साबित करने का आदेश दिया था।

हरीश रावत को सदन मे बहुमत साबित करने का आदेश

6 मई 2016 को कोर्ट ने निर्वतमान मुख्यमंत्री हरीश रावत को सदन मे बहुमत साबित करने का आदेश दिया था। उस समय राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सदन में बहुमत पर मतदान के लिए कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन हटाया गया था। एक नजर में कोर्ट के उस आदेश को देखा जाए तो कोर्ट ने कहा था कि 10 मई को सुबह 11 बजे उत्तराखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए। इस विशेष सत्र का एकमात्र एजेंडा हरीश रावत के विश्वास मत पर मतदान का होगा। इस एजेंडे के अलावा विधानसभा में किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा नही होगी। विधानसभा की कार्यवाही शांतिपूर्ण और बिना किसी व्यवधान के संपन्न होनी चाहिए।

कोर्ट ने इस दौरान कहा कि उत्तराखंड के डीजीपी और मुख्य सचिव ये देखेंगे कि सभी योग्य सदस्य सुरक्षित और स्वतंत्र रूप से विधानसभा में जाएं और उन्हें कोई व्यवधान न पहुंचा पाए। फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा का सत्र सुबह 11 बजे शुरू होगा और 1 बजे दोपहर में खतम हो जाएगा। सत्र में विश्वास प्रस्ताव पेश किया जाएगा जिस पर मतविभाजन होगा। जो लोग प्रस्ताव के पक्ष में होंगे वे एक तरफ बैठेंगे और जो विरोध में होंगे दूसरी तरफ बैठेंगे। विधानसभा के प्रिंसिपल सिकरेट्री ये देखेंगे कि मतदान ठीक रीति से हो और उसे रिकार्ड करेंगे। प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वाले सदस्य एक एक करके हाथ खड़ा करके मत देंगे और प्रिंसिपल सिकरेट्री उनकी गिनती करेंगे। यही प्रक्रिया प्रस्ताव के विरोध में मतदान में अपनाई जाएगी।

कर्नाटक के राजनैतिक घमासान पर कोर्ट का फैसला

इसी तरह पिछले वर्ष कर्नाटक में हुए राजनैतिक घमासान के समय कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट की तय तिथि को पहले कर दिया था कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से बहुमत साबित करने के लिए दिये गये 15 दिन के समय में कटौती करके 30 घंटे कर दिया था। कोर्ट ने 18 मई को आदेश दिया था कि अगले दिन 19 मई को मुख्यमंत्री सदन मे बहुमत साबित करें।

इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा था कि बहुमत साबित होने तक न तो वह कोई बड़ा नीतिगत फैसला लेंगे और न ही एंग्लो इंडियन सदस्य को मनोनीत करने की सिफारिश करेंगे। कोर्ट ने आदेश दिया था कि सदन में शक्ति परीक्षण की प्रक्रिया पूरी करने और विधायकों को शपथ दिलाने के लिए तत्काल प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाए। सभी विधायक 19 मई को शपथ ले लेंगे और शपथ ग्रहण की प्रक्रिया शाम चार बजे तक पूरी कर ली जाएगी और उसी दिन शाम चार बजे प्रोटेम स्पीकर सदन में बहुमत परीक्षण की प्रक्रिया कराएंगे। साथ ही कोर्ट ने राज्य के डीजीपी को इस दौरान सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम करने के आदेश दिये थें ताकि कोई गड़बड़ी न हो।

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