श्री लंका के बदले राजनीतिक हालात के पीछे कहीं चीन तो नहीं, भारत की बढ़ी चिंता

श्रीलंका में शुक्रवार को तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में भारत को चिंता में डाल दिया है। वहां के बदले हालात भारत के हितों के खिलाफ हो सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sat, 27 Oct 2018 02:12 PM (IST) Updated:Sun, 28 Oct 2018 08:16 AM (IST)
श्री लंका के बदले राजनीतिक हालात के पीछे कहीं चीन तो नहीं, भारत की बढ़ी चिंता
श्री लंका के बदले राजनीतिक हालात के पीछे कहीं चीन तो नहीं, भारत की बढ़ी चिंता

नई दिल्ली जागरण स्‍पेशल। श्रीलंका में शुक्रवार को तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में भारत को चिंता में डाल दिया है। वहां के बदले हालात भारत के हितों के खिलाफ हो सकते हैं। इसकी वजह भी बेहद साफ है। दरअसल, राजधानी कोलंबो में अचानक बदले सियासी घटनाक्रम में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने जिस तरह से पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के हाथों में देश की सत्‍ता सौंपी है वह काफी कुछ बयां करती है। राष्‍ट्रपति ने बेहद गुपचुप तरीके से यह सब किया। भारत की चिंता की एक वजह ये भी है कि राजपक्षे चीन समर्थक हैं। यहां पर एक बात और ध्‍यान में रखने वाली है और वो ये कि पिछले दिनों भारत की यात्रा पर आने से पहले ही रानिल विक्रमसिंघे ने चीन से हुए एक बड़े करार को रद कर इसको भारत को सौंप दिया था।

अगले वर्ष होने हैं राष्‍ट्रपति चुनाव
यह समझौता रद होने के बाद से ही चीन की धड़कनें बढ़ी हुई थी। राष्‍ट्रपति के ताजा निर्णय भी इसकी तरफ ही इशारा कर रहे हैं। हालांकि भारत के पक्षधर रहे रानिल विक्रमसिंघे ने बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के कुछ देर बाद ही इसे असंवैधानिक करार दे दिया। उनका कहना है कि वह संसद में अपनी सरकार का बहुमत साबित करेंगे। गौरतलब है कि श्री लंका में अगले वर्ष राष्‍ट्रपति चुनाव होने हैं और 2020 में वहां पर आम चुनाव होने हैं। नवंबर में वहां पर संसद सत्र शुरू होगा।

चीन के पक्षधर हैं विक्रमसिंघे
आपको यहां पर ये भी बता दें कि राजपक्षे ने पूर्व में राष्ट्रपति के तौर पर भारत के हितों के खिलाफ जाकर चीन की मदद की थी। उनके कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में तेजी से विस्तार किया। उनकी वजह से चीन को वहां एक एयरपोर्ट और बंदरगाह मिला। विक्रमसिंघे लगातार सार्वजनिक तौर पर चीन के बढ़ते कर्ज का जिक्र करते रहे हैं। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से इन दोनों के बीच विवाद चल रहा था। विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली संयुक्त सरकार से सिरिसेना के यूपीएफए गठबंधन ने समर्थन वापस ले लिया है। इसकी वजह से सरकार अल्पमत में आ गई थी। इसके पहले गठबंधन में शामिल एसएलएफपी पार्टी के सांसदों ने भी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। विक्रमसिंघे की राजनीतिक पार्टी यूएनपी ने सिरिसेना की पार्टी के साथ मिलकर वर्ष 2015 में सरकार बनाई थी। तब राजपक्षे को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।

चीन की साजिश
दरअसल, भारत की चिंता की वजह हिंद महासागर में बढ़ते चीन के कदम है। चीन लगातार भारत के पड़ोसी देशों पर विकास के नाम के डोरे डालकर अपने साथ मिला रहा है। चीन की यहां पर मौजूदगी भारत के लिए खासा चिंता का विषय है। वहीं श्रीलंका को बढ़ते कर्ज को चुकाने की वजह से ही चीन को एक बंदरगाह सौंपना पड़ा है। सिर्फ श्री लंका ही नहीं बल्कि पिछले दिनों हिंद महासागर के दूसरे देश मालद्वीप में भी चीन के कदमों की आहट ने भारत को काफी परेशान किया था। वहां भी वजह तत्‍कालीन सरकार का चीन के प्रति अधिक झुकाव था। यही हाल पाकिस्‍तान में भी देखने को मिला है, जहां चीन की पहुंच पाकिस्‍तान बंदरगाह तक हो चुकी है। इसके अलावा बांग्‍लादेश और म्‍यांमार में भी चीन की पहुंच का जरिया विकास के नाम पर‍ दिए जाने वाला कर्ज ही बना है। कुल मिलाकर चीन भारत की चिंता का सबसे बड़ा कारण है।

तो बढ़ जाएगी भारत की चिंता
श्री लंका की जहां तक बात की जाए तो राजपक्षे की तो यदि विक्रमसिंघे सदन में अपना बहुमत साबित करने में असमर्थ रहे तो चीन की आमद एक बार फिर से श्री लंका में बढ़ सकती है। भारत वहां के बदले राजनीतिक हालातों पर नजर जरूर रखे हुए है। इस बीच भाजपा नेता सुब्रहमण्‍यम स्‍वामी ने राजपक्षे को उनकी नई भूमिका के लिए बधाई दी है। उन्‍होंने कहा है कि वह तमिलों के मुद्दों को सुलझाने के लिए जल्‍द ही श्री लंका जाएंगे। श्री लंका के बदले राजनीतिक हालातों ने भारत को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को चौकाने का काम किया है। यूरापीयन यूनियन ने कहा है कि श्री लंका को संविधान के मुताबिक काम करना चाहिए।

फैसले के खिलाफ आक्रोश
ताजे बदलते घटनाक्रम के बाद विक्रमसिंघे के समर्थक एक मंदिर में एकत्रित हुए हैं। वहीं पुलिस समेत सेना के सभी आला अधिकारियों को सतर्क रहने के आदेश भी दे दिए गए हैं। उन्‍हें हटाने के खिलाफ लोगों में काफी रोष है। सरकार में हुए बदलाव की जानकारी के लिए आनन-फानन में एक गजट नॉटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है। राजनीतिक उफान को बढ़ते देख विक्रमसिंघे ने प्रेसवार्ता के दौरान कहा है कि सदन में यह तय हो जाएगा कि देश का पीएम कौन है। उन्‍होंने इस मुद्दे पर विवाद पैदा न करने को कहा है। वहीं स्‍वामी विक्रमसिंघे से भारत के साथ अच्‍छे सबंध बनाकर रखने की भी उम्‍मीद जताई है। विक्रमसिंघे इससे पहले वर्ष 2005 में देश के छठे राष्‍ट्रपति बने थे। इसके अलावा वर्ष 2004 में वह देश के पीएम भी रह चुके हैं। वह पेशे से वकील हैं और 1970 में पहली बार देश की संसद के लिए चुने गए थे।

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