Maharashtra Politics: आगे-आगे देखिए होता है क्या, भाजपा ने दिया तीनों को जोर का झटका

शिवसेना ने मुंह की खाई और जो कुछ पास में था वह भी गवां दिया। पवार साहब को यह अहसास हो गया कि अब वह बूढ़े हो गए है लेकिन फजीहत कांग्रेस की हुई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 23 Nov 2019 08:34 PM (IST) Updated:Sun, 24 Nov 2019 07:33 AM (IST)
Maharashtra Politics: आगे-आगे देखिए होता है क्या, भाजपा ने दिया तीनों को जोर का झटका
Maharashtra Politics: आगे-आगे देखिए होता है क्या, भाजपा ने दिया तीनों को जोर का झटका

प्रशांत मिश्र [ त्वरित टिप्पणी ]। क्या वंशवाद का पराभव शुरू हो चुका है? पुत्र और पुत्री मोह में डूबे राजनीतिक दलों और नेताओं से जनता का मोह खत्म हो रहा है? शायद हां। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, एचडी देवेगौड़ा को जिस तरह नकारा गया वह यही बताता है। महाराष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में भी यह दिख रहा है। उद्धव ठाकरे अपने अनुभवहीन पुत्र आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाना चाहते थे। शरद पवार अपनी पुत्री सुप्रिया सुले को स्थापित करना चाहते थे और इस नाते भतीेजा आहत था। और कांग्रेस में तो खैर परिवारवाद और सोनिया गांधी का पुत्रमोह जगजाहिर है। यह पार्टी को इतना आहत करता है कि एक शीर्ष नेता का भी कहना है कि कांग्रेस में परिवार, सत्ता और पैसा के अलावा कुछ नहीं देखा जाता है।

फडणवीस ने बहुमत साबित कर दिया तो सिकंदर वरना फिर से पैवेलियन में

खैर अभी बात महाराष्ट्र की करते हैं। नतीजा आने के लगभग तीन हफ्ते बाद फिर से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। 30 नवंबर तक उन्हें बहुमत साबित करना है। साबित कर दिया तो सिकंदर वरना फिर से पैवेलियन में। वैसे चुनावी परिणाम में उन्हीं के नाम से सबसे ज्यादा 105 सीटें आई थीं। दूसरे नंबर पर शिवसेना थी जिसे लगभग आधा 56 सीटें और एनसीपी को 54 सीटें मिली थी। कांग्रेस यहां चौथे नंबर की पार्टी थी। चूंकि भाजपा और शिवसेना साथ लड़ी थी इसलिए जनादेश साफ था कि दोनों मिलकर सरकार बनाए।

उद्धव की शर्त से तय था नहीं बनेगी भाजपा-शिवसेना की सरकार

लेकिन अति महत्वाकांक्षा और पुत्रमोह में फंसे उद्धव ने जिस दिन 50:50 की शर्त रखी और उसपर अड़ गए, उसी दिन तय हो गया था कि यह सरकार नहीं बनेगी। दरअसल शिवसेना का चरित्र अजीब रहा। पांच साल तक नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को गाली देते रहे।

जनादेश का अपमान शिवसेना ने किया

लोकसभा चुनाव घोषित होने के पहले वह हिंदुत्व के नाम पर भाजपा के साथ जुड़ गए। केंद्र में मंत्री पद भी ले लिया। अब विधानसभा चुनाव के बाद फिर से वही बागी तेवर अपना लिया और अपने मुखपत्र सामना में केंद्र को घेरने लगे। जनादेश का अपमान शिवसेना ने किया। मर्यादा भंग करना शिवसेना की आदत बन गई है। और अब लोकतंत्र की दुहाई दे रही है।

विरासत को लेकर अजीत पवार और सुप्रिया के रिश्ते खराब

शरद पवार के घर में खटपट आज की नहीं है। खुद पवार 80 के हो चुके हैं। उनकी विरासत को लेकर अजीत पवार और सुप्रिया के रिश्ते खराब हैं। खींचतान चल रही है और चूंकि अजीत लंबे समय से प्रदेश की सक्रिय राजनीति में हैं इसलिए उनकी अपनी पकड़ भी है।

घर में भतीजे के हाथों ही परास्त होना पड़ा

ध्यान देने योग्य बात है कि पवार ने ही भाजपा के पूर्व नेता गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे के खिलाफ मुंडे के ही भतीजे धनंजय मुंडे को उतारा था और पंकजा हार गईं। घर में भतीजे के हाथों ही परास्त होना पड़ा है। बहुतों को याद होगा कि 1978 में उन्होंने कैसे बगावत कर तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल को हटा दिया था।

पवार ने विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर सोनिया के खिलाफ एनसीपी पार्टी बना ली थी

1999 में जब उन्हें लगा कि कांग्रेस के अंदर परिवारवाद के कारण वह आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं तो विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर सीधे सोनिया गांधी के खिलाफ अपनी एनसीपी पार्टी बना ली थी। क्या वर्षो से उनकी शागिर्दी में राजनीति सीख रहे अजीत पवार में कुछ भी झलक नहीं दिखेगी।

वंशवाद की राजनीति

वंशवाद की बात इसलिए की है क्योंकि देश में परिवार के समर्थन में भी वोट पड़े हैं, लेकिन अब इसके खिलाफ लहर देखी जा रही है। मुलायम सिंह, लालू यादव, देवेगौड़ा जैसे दिग्गजों को अब नकारा गया है।

शिवसेना ने मुंह की खाई ओर फजीहत कांग्रेस की हुई

शिवसेना ने मुंह की खाई और जो कुछ पास में था वह भी गवां दिया। पवार साहब को यह अहसास हो गया कि अब वह बूढ़े हो गए है, लेकिन फजीहत कांग्रेस की हुई है। कट्टर हिंदुत्व ही नहीं मराठी और बाहरी के मुद्दे पर जन्मी शिवसेना के साथ जाने को तैयार हो गई।

कांग्रेस अपनी विचारधारा को त्यागने के लिए तैयार

अब कांग्रेस लाख कोशिशों के बावजूद इसे नहीं झुठला पाएगी कि सत्ता के लिए कांग्रेस अपनी विचारधारा को त्यागने के लिए तैयार है। लेकिन इस लोलुपता में दोनों खो दिया। पार्टी को केरल से लेकर उत्तर प्रदेश तक अब सफाई देनी पड़ेगी कि अल्पसंख्यक उस पर भरोसा करे तो क्यों। यह बताना पड़ेगा कि धर्मनिरपेक्षता का चोला अवसर के अनुसार कभी उतारा जाता है कभी ओढ़ा जाता है। वैसे अभी महाराष्ट्र में बहुत कुछ होना बाकी है।

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