यूरोपीय संसद में वोटिंग से पहले पीएम मोदी जाएंगे ब्रसेल्स, मार्च में सीएए पर वोटिंग के हैं आसार
ब्रसेल्स में ही यूरोपीय संसद है और पीएम मोदी वहां भारत-यूरोपीय संघ की 15वीं बैठक में हिस्सा लेंगे।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत सरकार यूरोपीय संसद में बुधवार को सीएए पर सिर्फ बहस होने को अपनी एक बड़ी कूटनीतिक जीत मान रही है लेकिन अभी भारत अपने कूटनीति दांव को जरा भी मंद करने नहीं जा रहा है। यूरोपीय संसद में मार्च में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर वोटिंग करवाने का फैसला किया है। ऐसे में ठीक उसके पहले फरवरी में सिर्फ विदेश मंत्री एस जयशंकर यूरोपीय संघ के देशों की यात्रा पर जाएंगे बल्कि उसके तुरंत बाद मार्च के पहले पखवाड़े में पीएम नरेंद्र मोदी भी ब्रसेल्स जाएंगे।
ब्रसेल्स में ही यूरोपीय संसद है और पीएम मोदी वहां भारत-यूरोपीय संघ की 15वीं बैठक में हिस्सा लेंगे। इस बैठक में भारत व यूरोपीय संघ के आर्थिक व रणनीतिक रिश्तों को आगे बढ़ाना बड़ा मुद्दा होगा लेकिन कहने की जरुरत नहीं कि इस दौरान भारत की तरफ से सीएए पर अपना पक्ष मजबूती से रखने में कोई कोताही नहीं होगी।
पाक सांसद की खत्म हो जाएगी सदस्यता
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक बुधवार को सीएए पर बहस के बाद वोटिंग को टालना ही बताता है कि यूरोपीय संसद के सदस्यों (MEP) भारत के नजरिये को समझते हैं। यह निश्चित तौर पर भारत के मित्रों की पाकिस्तानी लॉबी पर जीत है। यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि यूरोपीय संसद में इस पर बहस कराने में पाकिस्तान मूल के ब्रिटिश सांसद शफाक मोहम्मद की सबसे बड़ी भूमिका थी। लेकिन चूंकि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से 31 जनवरी, 2020 को अलग हो रहा है इसलिए शफाक मोहम्मद की सदस्यता भी कल से खत्म हो जाएगी।
वैसे विदेश मंत्रालय इस बात से भी उत्साहित है कि बहस में भाग लेने वाले अधिकांश सदस्यों ने भारत को अपना सबसे मजबूत रणनीतिक साझेदार देश के तौर पर चिन्हित किया है। नीना गिल, थेरी मरियानी, दिनेश धमीजा, हेलेना दाली जैसे तमाम एमईपी ने सीएए पर बहस को भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया। कुछ सांसदों ने उल्टा पाकिस्तान को ही घेरा।
यूरोपीय संघ भारत पर बना रहा दबाव
जानकारों के मुताबिक मोदी जब भारत-ईयू की बैठक में हिस्सा लेंगे तब यह बेहतरीन मौका होगा जब हम सीएए पर अपना पक्ष और स्पष्ट कर सकें। सनद रहे कि यूरोपीय संघ लगातार भारत पर इस बात का दबाव बना रहा है कि वह उसके साथ एक कारोबारी समझौता करे। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ईयू के साथ होने वाले द्विपक्षीय कारोबारी समझौते को लेकर खास रुचि नहीं दिखाई थी जिसकी वजह से पांच वर्षो में इस समझौते को लेकर कोई बैठक नहीं हुई।
माना जा रहा है कि आगामी बैठक में कारोबारी समझौते को आगे बढ़ाने की सहमति बनेगी। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार क्षेत्र है। यूरोपीय संघ पूर्व में कई बार यह जता चुका है कि वह भारत के साथ कारोबारी समझौते के लिए बहुत तत्पर है। ऐसे में दोनो पक्षों के बीच होने वाली बातचीत काफी महत्वपूर्ण होगी।