लवासा पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, टाला जा सकता था विवाद

सीईसी ने कहा कि वह किसी के भी नैतिक न्यायाधीश नहीं है और कम से कम अशोक लवासा जैसे वरिष्ठ लोगों का तो नहीं।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Wed, 29 May 2019 06:24 PM (IST) Updated:Wed, 29 May 2019 09:29 PM (IST)
लवासा पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, टाला जा सकता था विवाद
लवासा पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, टाला जा सकता था विवाद

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने चुनाव के दौरान उत्पन्न विवादों पर अपनी लंबी चुप्पी तोड़ी है। चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दी गई क्लीन चिट का बचाव करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि ये फैसले गुण-दोष और तथ्यों के आधार पर लिए गए थे।

आचार संहिता आदेशों में असहमति दर्ज कराने की चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की मांग से जुड़े विवाद पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने बुधवार को कहा कि किसी भी चीज पर बोलने और उस पर चुप रहने का एक समय होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने संकेत दिया कि इस मुद्दे को लोकसभा चुनाव के बाद उठाया जा सकता था। तीनों चुनाव आयुक्तों के मतभेदों पर अरोड़ा ने कहा कि कि चुनाव आयोग के सभी सदस्य हूबहू एक दूसरे जैसे नहीं हो सकते। यह पूछने पर कि क्या लवासा की असहमति से जुड़े विवाद को चुनाव के दौरान टाला जा सकता था, उन्होंने कहा, 'मैंने विवाद शुरू नहीं किया, मैंने कहा था कि चुप रहना हमेशा मुश्किल होता है।

लेकिन गलत समय पर विवाद पैदा करने की जगह चुनाव प्रक्रिया नजर रखना कहीं अधिक जरूरी था। मैंने यही कहा था और मैं इसी पर कायम हूं।'लंबी चुनाव प्रक्रिया और उसपर लगातार उठे विवादों पर सुनील अरोड़ा ने बताया कि आयोग को कानूनी सलाहकार एसके मेहंदीरत्ता से मिली कानूनी राय के अनुसार, चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतें अर्धन्यायिक मामलों की श्रेणी में नहीं आती हैं। उन्होंने कहा कि यह देश का कानून है। पार्टियों के चुनाव चिह्न से जुड़े मामले और राष्ट्रपति एवं राज्यपाल से मिले संदर्भ अर्धन्यायिक होते हैं। दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व वकीलों द्वारा किया जाता है।

अरोड़ा ने कहा कि तीनों आयुक्तों की राय हमेशा फाइलों में दर्ज की जाती हैं। उन्होंने कहा, जब हम फैसले को औपचारिक तौर पर बताते हैं, चाहे यह 2:1 से बहुमत का फैसला हो या सर्वसम्मति से, हम उसको आदेश पर नहीं लिखते हैं।मुख्य चुनाव आयुक्त ने संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) का उदाहरण देते हुए कहा कि यूपीएससी भी बहु सदस्यीय संस्था है। जब वह किसी उम्मीदवार को पास या फेल करता है, तो वह सिर्फ नतीजे के बारे में सूचना देता है।

इसका उल्लेख कभी नहीं करता कि किस सदस्य ने क्या लिखा है। गौरतलब है कि चुनाव प्रचार के दौरान मोदी और शाह के भाषणों से जुड़ी शिकायतों पर उन्हें दी गई चुनाव आयोग की सिलसिलेवार 'क्लीन चिट पर लवासा ने असहमति जताई थी। प्रधानमंत्री मोदी और शाह से जुड़ी चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों के निपटारे में चुनाव आयोग की धीमी गति से काम करने के विपक्ष के आरोपों और इस विषय में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बारे में अरोड़ा ने कहा कि शीर्ष कोर्ट ने कुछ प्रतिकूल टिप्पणी की थी। लेकिन जब आयोग ने शिकायतों पर फैसला लेना शुरू किया, तब शीर्ष कोर्ट ने इस मुद्दे पर और जोर नहीं दिया।

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