घोर विरोधी भी जिनका आलोचक न हो पाया, ऐसे थे एनडी तिवारी

वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य, लिखते हैं कि घोर आलोचना पर भी कभी एनडी तिवारी ने पलट कर हमला नहीं किया।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Thu, 18 Oct 2018 05:32 PM (IST) Updated:Thu, 18 Oct 2018 05:32 PM (IST)
घोर विरोधी भी जिनका आलोचक न हो पाया, ऐसे थे एनडी तिवारी
घोर विरोधी भी जिनका आलोचक न हो पाया, ऐसे थे एनडी तिवारी

नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और यूपी-उत्तराखंड के सीएम रहे एनडी तिवारी का निधन हो गया है। उन्होंने दिल्ली के साकेत अस्पताल में अंतिम सांस ली। तिवारी की छवि विकासपुरुष और सौम्य स्वभाव के नेता की है। वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य उनके बारे में काफी कुछ बताते हैं और लिखते हैं कि तिवारी का स्वभाव कुछ ऐसा था कि घोर विरोधी भी उनका कभी आलोचक नहीं बन पाया। 

राजनाथ लिखते हैं, 'मैंने नारायण दत्त तिवारी को सबसे पहले 1957 में आरएसएस के शिविर के समापन में मुख्य अतिथि के रूप में देखा था। उस समय वे यूपी विधानसभा में विपक्षी दल प्रजा समाजवादी के उपनेता थे। उनके संघ के कार्यक्रम में आने पर काफी बवेला मचा था। दो बार लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद 1962 में वे चुनाव हार गए थे।

कुछ दिनों के लिए अमेरिका में स्वयं सेवी संगठन के कार्यकर्ता के रूप में भाग लेने के बाद वे जब पुन: स्वदेश लौटे तो कांग्रेस में शामिल हो गए। अशोक मेहता से उनकी निकटता थी जो उस समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे। वे विदेश राज्य मंत्री दिनेश सिंह के सानिध्य में युवक कांग्रेस का काम देखने लगे थे। वे 1967 का चुनाव भी नहीं जीत सके। 1969 में वे विधानसभा में आये और चन्द्रभानु गुप्त के मंत्रिमंडल में शामिल हुए।

उनकी निष्ठा कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार के साथ सदैव बनी रही, लेकिन न केवल अलग हुई कांग्रेस के नेताओं अपितु विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी सदा सौहार्द पूर्ण व्यवहार रहा। कठोर से कठोर आलोचना के बाद भी उन्होंने कभी पलटकर हमला नहीं किया। कई बार अवसर आये जबकि विधानसभा में विपक्ष के सदस्यों के हमले का उत्तर देने में उलझने के बजाय वे चुपचाप बैठ जाते थे।

उनकी दृष्टि सदैव विकास पर टिकी रहती थी। चाहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या विपक्ष के नेता या उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, वे सदैव विकासोन्मुख नीतियों को आगे बढ़ाने में लगे रहे। राजनीतिक विरोधियों के प्रति सौहार्दपूर्ण भावना रखने का एक उदाहरण मैं उस समय का दे सकता हूूं, जब वे आपातकालीन स्थिति में मुख्यमंत्री थे।

उन्होंने मुझे बुलाकर चंद्रशेखर जो जेल में थे, उनके भाई कृपा शंकर जो मेरे आवास पर ठहरे थे को आर्थिक सहायता की पेशकश की थी। ये बात अलग है कि कृपा शंकर ने उसे अस्वीकार कर दिया था। इसी प्रकार से अन्य अनेक पीड़ित लोगों के परिवारों की सहायता किया करते थे। उनके लंबे राजनीतिक जीवनकाल में एक अवसर ऐसा भी आया था जब नैनीताल लोकसभा से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल करने के घंटे भर पूर्व राजीव गांधी ने उन्हें रोक दिया था। फिर भी वे कांग्रेस में बने रहे थे।

नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल मेें वे एक बार अर्जुन सिंह के साथ अलग होकर तिवारी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व संभालने पर कांग्रेस में लौट गए। विरोधाभासी चर्चाओं के बीच सर्वग्राही और सर्वस्पर्शी स्वभाव उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही। घोर विरोध करने वाला व्यक्ति भी कभी उनका कटु आलोचक नहीं बन पाया। वे विकासपुरुष के रूप में स्मरण किये जाते रहेंगे।'

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