कांग्रेस नेता खड़गे के 'गुरूर' पर PM ने लोकसभा में दिया जवाब 'सूरज को नहीं डूबने दूंगा'

लोकसभा में बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और विपक्ष पर जमकर हमला बोला, साथ ही एक कवि की रचना भी पढ़ी।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 08 Feb 2019 06:24 PM (IST) Updated:Fri, 08 Feb 2019 07:21 PM (IST)
कांग्रेस नेता खड़गे के 'गुरूर' पर PM ने लोकसभा में दिया जवाब 'सूरज को नहीं डूबने दूंगा'
कांग्रेस नेता खड़गे के 'गुरूर' पर PM ने लोकसभा में दिया जवाब 'सूरज को नहीं डूबने दूंगा'

नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। लोकसभा में बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ और विकास के समर्थन में अपने मजबूत इरादे फिर से जाहिर किए। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के साथ समूच विपक्ष को आईना दिखाती और आत्मविश्वास व संकल्प को जगाती सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता की पंक्तियां पढ़ीं। इसी बहाने पीएम मोदी ने कांग्रेस नेता मणिकार्जुन खड़गे को जवाब भी दिया। 

ये पंक्तियां हैं,

सूरज जाएगा भी तो कहां

उसे यहीं रहना होगा

यहीं हमारी सांसों में

हमारी रगों में

हमारे संकल्पों में

हमारे रतजगों में

तुम उदास मत होओ

अब मैं किसी भी सूरज को नहीं डूबने दूंगा।

दरअसल, नरेंद्र मोदी ने यह कविता विपक्ष के नेता और कांग्रेस के सांसद मल्लिकार्जुन खड़के की कविता के जवाब में पढ़ी थी। हुआ यूं कि लोकसभा में भाषण के दौरान मल्लिकार्जुन खड़गे ने कर्नाटक के समाज सुधारक वासवन्ना की एक कविता की पंक्ति 'हुस्न-ओ-आब तो ठीक है लेकिन गुरूर क्यों तुमको इस पर है, मैंने सूरज को हर शाम इसी आसमान में ढलते देखा है।' इस पंक्ति से खड़गे ने पीएम मोदी पर निशाना साधा था। जिस पर कांग्रेस सांसदों ने खूब तालियां बजाईं।

इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस के 55 सालों के कामों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि आखिर खड़गे को कविता में 'हुस्न' वाली बात ही क्यों याद आई? पीएम ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि मुझे नहीं समझ नहीं आता, खड़गे को 'हुस्न' वाली ही बात क्यों याद आई? उन्हें आगे की लाइनें क्यों नहीं याद आईं। इसके बाद पीएम मोदी ने भी उस कविता के आगे अंश को पढ़ा। 

जब कभी झूठ की बस्ती में सच को तड़पते देखा है?
तब मैंने अपने भीतर किसी बच्चे को सिसकते देखा है?
अपने घर की चारदिवारी में अब लिहाफ में भी सिहरन होती है।
जिस दिन से किसी को गुरबत में सड़कों पर ठिठुरते देखा है।

भाषण के आखिरी में भी पीएम मोदी ने हिंदी के मशहूर कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता का अंश पढ़ा जो कुछ इस तरह से है।

अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा
देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिए हैं
मुट्ठियां मजबूत कर ली हैं 
और ढलान पर एड़ियां जमाकर
खड़ा होना मैंने सीख लिया है।
घबराओ मत
मैं क्षितिज पर जा रहा हूूं।
सूरज ठीक जब पहाड़ी से लुढ़कने लगेगा
मैं कंधे अड़ा दूंगा
देखना वह वहीं ठहरा होगा।
अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा।
मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो
तुम्‍हें मैं उतार लाना चाहता हूं
तुम जो स्‍वाधीन की प्रतिमा हो
तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्‍यार हो
तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हें मैं उस रथ से उतार लाना चाहता हूं।
रथ के घोड़े
आग उगलते रहें
अब पहिये टस से मस नहीं होंगे
मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिये है।

कौन रोकेगा तुम्हें
मैंने धरती बड़ी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से
मैं तुम्हें सजाऊंगा
मैंने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतो में मैं तुम्हे गाऊंगा
मैंने दृष्टि बड़ी कर ली है
हर आंखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊंगा।
सूरज जाएगा भी तो कहां
उसे यहीं रहना होगा
यहीं हमारी सांसों में
हमारी रगों में
हमारे संकल्पों में
हमारे रतजगों में
तुम उदास मत होओ
अब मैं किसी भी सूरज को
नही डूबने दूंगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये पंक्तियां संबल देती हैं। संकल्प को दिखाती हैं। आपको पता है, ये पंक्तियां हैं सूरज नहीं डूबने दूंगा कविता की। इस कविता के रचयिता हैं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना। वहीं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जो खुद से विद्रोह करते हैं और रचते हैं ये पंक्तियां-

मैं जहां होता हूं

वहां से चल पड़ता हूं

अक्सर एक व्यथा

एक यात्रा बन जाती है।

यहां पर बता दें कि कवि, लेखक, नाटककार और पत्रकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को उनके कविता संग्रह 'खूंटियों पर टंगे लोग' के लिए वर्ष 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 15 सितंबर 1927 को उनका जन्म हुआ था। उनकी प्रमुख रचनाएं 'खूंटियों पर टंगे लोग', 'पागल कुत्तों का मसीहा' (लघु उपन्यास), बकरी (नाटक), बतूता का जूता (बाल साहित्य), एक सूनी नाव (काव्य), कोई मेरे साथ चले (काव्य), सोया हुआ जल (लघु उपन्यास), महंगू की टाई (बाल साहित्य) हैं।

1964 में जब दिनमान पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ तो वह साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन 'अज्ञेय' के बुलावे पर दिल्ली में इस पत्रिका से जुड़े। देश, समाज और साहित्य को अनमोल निधि देने वाले इस साहित्यकार का निधन 23 सितंबर 1983 को दिल्ली में हुआ।

अपनी खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली रचनाओं के जरिये साहित्य जगत में अलग पहचान बनाने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना दरअसल, इस धरती पर लोगों द्वारा बनाई गई विषमता के विरोधी थे। उनकी कविता का यह नमूना उनके इसी पक्ष को उजागर करता है। 

‘मेरे दोस्तों!
तुम मौत को नहीं पहचानते
चाहे वह आदमी की हो,
या किसी देश की
चाहे वह समय की हो
या किसी वेश की
सब कुछ धीरे धीरे ही होता है
धीरे धीरे ही बोतलें ख़ाली होती हैं
गिलास भरता है
धीरे धीरे ही
आत्मा ख़ाली होती है
आदमी मरता है।

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