जानिए किन कारणों से फरीदाबाद के MP कृष्णपाल गुर्जर से दूर हुई BJP अध्यक्ष की कुर्सी

बताया जा रहा है कि भाजपा में गैर जाट की राह पर आगे बढ़ती देखकर हरियाणा के तमाम जाट नेता एक हो गए। वहीं कृष्णपाल गुर्जर केंद्रीय मंंत्री का पद और अध्यक्ष पद दोनों चाह रहे थे

By JP YadavEdited By: Publish:Sun, 19 Jul 2020 09:07 PM (IST) Updated:Mon, 20 Jul 2020 07:28 AM (IST)
जानिए किन कारणों से फरीदाबाद के MP कृष्णपाल गुर्जर से दूर हुई BJP अध्यक्ष की कुर्सी
जानिए किन कारणों से फरीदाबाद के MP कृष्णपाल गुर्जर से दूर हुई BJP अध्यक्ष की कुर्सी

नई दिल्ली/रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। केंद्रीय मंत्री व फरीदाबाद के सांसद कृष्णपाल गुर्जर का हरियाणा भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा था, मगर समय से पहले उनके नाम का उछलना उनकी राह रोकने का सबसे बड़ा कारण रहा। फरीदाबाद लोकसभा सीट से लगातार 2 बार जीते कृष्णपाल गुर्जर का हरिणाया भाजपा का अध्यक्ष बनना तय गया था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के एक राष्ट्रीय महामंत्री बाकायदा ट्वीट करके कृष्णपाल गुर्जर को बधाई तक दे चुके थे, मगर अचानक सक्रिय हुई जाट लाबी ने उनकी राह रोक दी।

जाट नेताओं की एकजुटता ने बिगाड़ा कृष्णपाल गुर्जर का खेल

बताया जा रहा है कि भाजपा में गैर जाट की राह पर आगे बढ़ती देखकर हरियाणा के तमाम जाट नेता एक हो गए। हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष पद के 2 प्रमुख दावेदार धाकड़ जाट नेता ओपी धनखड़ और सरकार में मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के बीच भी अंडरस्टैंडिंग बन गई थी। दोनों आपसी टकराव छोड़कर दिल्ली दरबार को यह बात समझाने में कामयाब रहे कि हरियाणा में जाटों की अनदेखी की जाएगी तो उनकी राजनीति का औचित्य क्या रह जाएगा?

केंद्रीय मंत्री का पद भी साथ रखना चाहते थे कृष्णपाल

वहीं, बताया जा रहा है कि दरअसल, कृष्ण पाल गुर्जर केंद्रीय राज्यमंत्री रहते हुए हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालना चाहते थे। इसके बाद उनकी इस शर्त के विरोध में कई नेता खड़े हो गए। कृष्णपाल गुर्जर का प्रदेश अध्यक्ष की बजाए केंद्रीय राज्यमंत्री पद को तवज्जो देना भी उनके नाम की घोषणा रोकने में अहम कारण बना।

वहीं, हरियाणा के जाट नेता हाईकमान को यह समझाने में कामयाब रहे कि अगर मुख्यमंत्री गैर जाट और प्रदेश अध्यक्ष जाट की परंपरा तोड़ी गई तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अधिक ताकतवर बनकर उभरेंगे तथा पहले से ही भाजपा से विमुख चल रहे जाट और अधिक दूर हो जाएंगे। जाटों को अध्यक्ष पद देकर भाजपा दूर हुए बड़े जाट समुदाय को पार्टी के निकट ला सकेगी। यह समझदारी भरा कदम होगा। अगर जाटों की उपेक्षा की गई तो भाजपा फिर से बैसाखी के सहारे चलने वाली पार्टी बनकर रह जाएगी। यही तर्क हाईकमान के गले उतर गया और कृष्ण पाल गुर्जर की जगह ओमप्रकाश धनखड़ की लाटरी खुल गई। ओपी धनखड़ का संघ की पृष्ठभूमि से होना, किसान नेता की छवि व जाट होना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निकटता होना और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से याराना होना चौधर दिलाने का प्रमुख कारण रहा।

यहां पर बता दें कि हरियाणा में संख्या बल के हिसाब से जाटों को हर राजनीतिक दल में बोलबाला है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुष्यंत चौटाला प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं और वह बड़े जाट नेताओं में शुमार होते हैं। इससे पहले देवीलाल, उनके सुपुत्र ओम प्रकाश चौटाला, भूपेंद्र सिंह और बंसी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने, जो जाट समुदाय से आते हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने भी सोचसमझकर जाट नेता पर दांव लगाया है। अगले कुछ महीने में सोनीपत की बरोदा विधानसभा सीट पर चुनाव होना है, ऐसे में भाजपा को जाट अध्यक्ष का फायदा मिल सकता है।

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