अपने नीतिगत निर्णयों के माध्यम से एक बड़ी लकीर खींचने में जुटे हेमंत सोरेन

Ranchi News चुनाव में झामुमो 30 सीटें हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। आरंभ में ऐसा लग रहा था कि गठबंधन की इस सरकार में कांग्रेस झामुमो पर हावी रहेगी। पूर्व के अनुभव कुछ ऐसे ही थे

By Madhukar KumarEdited By: Publish:Fri, 31 Dec 2021 05:56 PM (IST) Updated:Fri, 31 Dec 2021 05:56 PM (IST)
अपने नीतिगत निर्णयों के माध्यम से एक बड़ी लकीर खींचने में जुटे हेमंत सोरेन
अपने नीतिगत निर्णयों के माध्यम से एक बड़ी लकीर खींचने में जुटे हेमंत सोरेन

रांची, (प्रदीप सिंह)। झारखंड में 2014 के विधानसभा चुनाव के पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल से इन्कार कर दिया था। उस वक्त इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला, जो पहली दफा मजबूती से सत्ता के करीब पहुंच गई। रही-सही कसर उस समय बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के विधायकों ने पूरी कर दी थी। झाविमो के आठ में से छह विधायक पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए।

काम आई गठबंधन की नीति

झामुमो के लिए इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण सबक यह था कि झारखंड की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में समान विचारधारा वाले दलों संग तालमेल किए बगैर सत्ता के दहलीज तक पहुंचने की उसकी डगर आसान नहीं। पिछले चुनाव की गलतियों से सीख लेकर 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने गठबंधन का दांव आजमाया। इस बार कांग्रेस और राजद के साथ चुनावी गठबंधन कर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उम्मीद से काफी बेहतर प्रदर्शन किया।

एक बड़ी लकीर खींचने की कोशिश कर रहे हैं हेमंत सोरेन

चुनाव में झामुमो 30 सीटें हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। आरंभ में ऐसा लग रहा था कि गठबंधन की इस सरकार में कांग्रेस झामुमो पर हावी रहेगी। पूर्व के अनुभव कुछ ऐसे ही थे, लेकिन हेमंत सोरेन के एक के बाद एक लिए गए नीतिगत फैसलों से लेकर राजनीतिक निर्णयों को देख अब ऐसा लग रहा है कि वे बगैर किसी दबाव के वह बड़ी लकीर खींच रहे हैं।

सरना धर्म कोड से गया व्यापक संदेश

इस वर्ष की शुरुआत में कांग्रेस ने राज्य में योजनाओं की निगरानी के लिए बनी 20 सूत्री कमेटियों में हिस्सेदारी का मसला उठाया तो ऐसा लगा था कि एक माह में इसका निपटारा हो जाएगा, लेकिन अब एक साल बीतने के बाद भी यह मामला नहीं सुलझा है। इससे पहले सबको चौंकाते हुए हेमंत सोरेन ने सरना धर्म कोड को वर्ष 2021 की जनगणना में शामिल कराने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया तो इसका व्यापक संदेश गया।

जनजातीय समुदाय में मजबूत हुई झामुमो की पैठ

इस फैसले से जनजातीय समुदाय में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का आधार और मजबूत हुआ। जब मोर्चा की सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला उठाया तो इसे भी हेमंत ने लपक लिया और जनजातीय समुदाय तथा अनुसूचित जाति का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने की भी वकालत की। इन फैसलों से हेमंत सोरेन ने उन जाति-समुदायों को भी अपनी ओर आकर्षित किया, जो कांग्रेस के करीबी माने जाते रहे हैं।

मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून भी सरकार के लिए फायदेमंद रहा

पिछले कुछ वर्षो में भीड़ की हिंसा के लिए झारखंड की बड़े पैमाने पर बदनामी हुई थी। ज्यादातर घटनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय इस तरह की हिंसा का शिकार हुआ। इस तरह की हिंसा रोकने के लिए हेमंत सरकार माब लिंचिंग निवारण विधेयक लेकर आई, जिसमें दोषियों के लिए सजा के कड़े प्रविधान किए गए हैं। हालांकि कई प्रविधानों और नियमों पर भाजपा ने आपत्ति जताई है। राजनीतिक तौर पर भाजपा का यह विरोध भी हेमंत के पक्ष में ही जाता दिख रहा है।

राजद-कांग्रेस खुलकर नहीं कर पाई विरोध

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने दबाव बनाने की कोशिश नहीं की। कुछ माह पहले दबे मुंह कुछ विधायकों ने इसके लिए मुहिम चलाई, लेकिन वे औंधे मुंह गिरे और सफाई देने लगे। खुद कांग्रेस के ही एक विधायक ने पुलिस में इसकी शिकायत की। सरकार बनाने के बाद विधानसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में गठबंधन की सरकार को कामयाबी मिली तो इसका श्रेय हेमंत सोरेन को गया। यही नहीं, एक कदम आगे बढ़कर हेमंत सोरेन ने मधुपुर विधानसभा उपचुनाव का परिणाम आने के पहले ही वहां से चुनाव लड़ रहे अपने दल के प्रत्याशी को सरकार में मंत्री बना दिया। बाद में हफीजुल अंसारी चुनाव जीते भी। कांग्रेस और राजद में भितरखाने इसे लेकर खलबली मची, लेकिन कोई भी खुलकर सामने नहीं आया।

हेमंत सोरेन की फिल्डिंग से घिरी भाजपा

हेमंत सोरेन ने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की भी तगड़ी घेराबंदी की है। अभी तक नेता प्रतिपक्ष के पद पर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को विधानसभा से मान्यता नहीं मिल सकी है। इसकी वजह तकनीकी है। बाबूलाल मरांडी विधानसभा चुनाव झारखंड विकास मोर्चा के चिह्न पर लड़े थे। बदली राजनीतिक परिस्थितियों में उन्होंने मोर्चा का विलय भाजपा में कर दिया, लेकिन विधानसभा में मान्यता नहीं मिलने के कारण वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में मुखर नहीं हो पा रहे हैं। इसकी सुनवाई झारखंड हाई कोर्ट के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में चल रही है। कानूनी पेंच में उलझी भाजपा ने सरकार की घेराबंदी आरंभ की है, लेकिन इसमें बड़े नेताओं की अलग-अलग खेमेबंदी नजर आ रही है।

कुल मिलाकर हेमंत सोरेन अपने सहयोगी दलों को जहां काबू में रखने में सफल रहे हैं, वहीं विपक्ष का बिखराव भी उन्हें मजबूती दे रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में अनुकूल राजनीतिक परिस्थितियों से वह बढ़त बनाए दिख रहे हैं।

प्रदीप सिंह

राज्य ब्यूरो प्रमुख, झारखंड

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