Haryana Congress: पार्टी भटकी या हुड्डा तलाश रहे नई राह, पुरानी है ये सियासी जंग

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक में परिवर्तन महारैली से कई मोर्चे साधने का प्रयास किया। उनकी रैली एक भार फिर संकेत है कि पार्टी में सबकुछ सही नहीं चल रहा।

By Amit SinghEdited By: Publish:Mon, 19 Aug 2019 02:57 PM (IST) Updated:Mon, 19 Aug 2019 03:48 PM (IST)
Haryana Congress: पार्टी भटकी या हुड्डा तलाश रहे नई राह, पुरानी है ये सियासी जंग
Haryana Congress: पार्टी भटकी या हुड्डा तलाश रहे नई राह, पुरानी है ये सियासी जंग

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) में करारी शिकस्त, हार की जिम्मेदारी को लेकर रस्साकसी और अब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने पर कांग्रेस में मतभेद खुलकर सामने आ चुके हैं। रविवार को रोहतक में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने परिवर्तन महारैली कर एक बार फिर साफ कर दिया कि पार्टी में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। उन्होंने महारैली के मंच से सार्वजनिक तौर पर कहा पार्टी रास्ता भटक चुकी है। पहले भी हरियाणा कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री बगावती राह अपना चुके हैं। आइये जानते हैं- हुड्डा के इस बयान के क्या हैं सियासी मायने?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक में परिवर्तन महारैली के जरिए एक साथ कई राजनीतिक मौर्चों को साधने का प्रयास किया है। कांग्रेस रास्ते से भटकी हुई है इसमें कोई संदेह नहीं। इसका दूसरा पहलू ये भी है कि महारैली में ताकत दिखा हुड्डा अपने लिए नई राह तलाश रहे हैं, जिसमें उनका व उनके बेटे का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित हो। हुड्डा, हरियाणा के बड़े जाट नेताओं में शामिल हैं। महारैली में जुटी अप्रत्याशित भीड़ और मंच पर एकत्र राज्य के कई विधायक व पूर्व विधायक इसका सबूत है।

तीन साल से चल रही आंतरिक कलह
राज्य में बड़े जाट नेता और जनसमर्थन के बावजूद तीन साल से पार्टी की आंतरिक कलह ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा की राह मुश्किल कर रखी है। हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर से उनका मनमुटाव जगजाहिर है। अशोक तंवर, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। राहुल ने पार्टी में सक्रियता बढ़ते ही अशोक तंवर को कमान सौंप दी थी। हुड्डा, प्रदेश अध्यक्ष का पद अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा के लिए चाहते थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। हुड्डा के लगातार विरोध के बावजूद अशोक तंवर प्रदेश अध्यक्ष बने रहे।

इसलिए राहुल गांधी से दूर हो गए हुड्डा
अशोक तंवर के अध्यक्ष बनने के बाद से ही हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी शुरू हुई। नतीजा ये हुआ कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की राहुल गांधी से भी बिगड़ गई। राहुल गांधी, हुड्डा की नाराजगी से वाकिफ थे। इसलिए उन्होंने रणदीप सुरजेवाला पर हाथ रख दिया। राहुल गांधी ने बड़ी उम्मीद से जींद विधानसभा उपचुनाव में रणदीप सुरजेवाला को प्रत्याशी बनाया। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। अगर राहुल का ये दांव सही पड़ जाता और सुरजेवाला चुनाव जीत जाते तो हरियाणा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री का नाम सामने आ चुका होता। जाहिर है कि, वो भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो नहीं ही होते। इस तरह से हुड्डा परिवार को काफी समय से राजनीति की मुख्य धारा में बने रहने के लिए भी लगातार संघर्ष करना पड़ा है।

बनते-बिगड़ते हुड्डा वा सोनिया के रिश्ते
पार्टी से मन-मुटाव की वजह से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक की परिवर्तन महारैली में अपने खेमे के नेताओं के अलावा, राज्य की पार्टी इकाई या राष्ट्रीय कांग्रेस के किसी नेता को नहीं बुलाया। एक समय था जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा, सोनिया गांधी के बहुत करीबी माने जाते थे। 2005 की शुरुआत में सोनिया गांधी ने ही भजनलाल को किनारे कर, भूपेंद्र सिंह हुड्डा को राज्य में सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। 2014 तक हुड्डा ने सोनिया गांधी के सिपहसालार बन इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। अब इनके रिश्तों में भी तनाव आ गया है। इसकी वजह 2016 में कांग्रेस के राज्यसभा प्रत्याशी आरके आनंद को हुड्डा द्वारा समर्थन देने से मना करना था। 

लोकसभा चुनाव 2019 की हार
केंद्र की सत्ता से बेदखल होते ही पार्टी में मनमुटाव खुलकर सामने आने लगे थे। 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी चाहते थे, पार्टी नेता सामने आकर खुद जिम्मेदारी स्वीकार करें। उन्होंने इसके लिए नाराजगी भी जताई। बावजूद, जिम्मेदार नेताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उल्टा दबी जुबान पार्टी की हार के लिए राहुल गांधी और शीर्ष नेतृत्व को ही जिम्मेदार ठहराया जाने लगा। इससे नाराज होकर राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। इसके बाद फिर से पार्टी में एकजुट दिखने और शीर्ष नेतृ्त्व पर भरोसा जताने का सिलसिला शुरू हुआ और पार्टी में इस्तीफों की झड़ी लग गई। बावजूद कुछ नेताओं की शीर्ष नेतृ्त्व से नाराजगी बरकरार रही। नतीजा ये हुआ कि कई पुराने और बड़े क्षेत्रीय नेताओं ने कांग्रेस छोड़ भाजपा या किसी अन्य राजनीतिक पार्टी का हाथ थाम लिया।

मतभेद की वजह से इन नेताओं ने छोड़ी पार्टी
अब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म करने को लेकर भी कांग्रेस के भीतर बड़े पैमाने पर मतभेद सामने आ चुके हैं। एक तरफ पार्टी राज्यसभा व लोकसभा में सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध कर रही है। दूसरी तरफ, पार्टी के कई बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, कर्ण सिंह, मिलिंद देवड़ा, जनार्दन द्विवेदी आदि ने पार्टी लाइन के विपरीत जाकर अनुच्छेद-370 खत्म करने का समर्थन किया।

राज्यसभा सांसद भुवनेश्वर कलीता ने तो पार्टी के रुख से नाराज होकर इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। सरकार के इस फैसले का खुलकर समर्थन करने वालों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा व उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी शामिल हैं। मतभेदों की वजह से ही राज्यसभा सांसद संजय सिंह व उनकी पत्नी अमिता सिंह ने भी पिछले दिनों पार्टी से इस्तीफा दे भाजपा ज्वाइन कर ली थी। कांग्रेस छोड़ने वाले बड़े नेताओं में पूर्व राज्यसभा सांसद शांतिउज कुजूर, गौतम रॉय और झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार का भी नाम शामिल है।

हुड्डा को लेकर अटकलों का दौर जारी
रविवार को परिवर्तन महारैली में शक्ति प्रदर्शन करने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लेकर पिछले काफी समय से अटलकों का दौर चल रहा है। राज्य में उनके करीबी नेता रैली से पहले लगातार किसी बड़े परिवर्तन का दावा करते रहे थे। रैली से ठीक पहले उनके एक नेता ने दावा किया था कि रविवार को हुड्डा कांग्रेस का साथ छोड़ देंगे। हालांकि, इससे ठीक पहले कांग्रेस हाईकमान सतर्क हो गया और सोनिया गांधी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बात कर मामले को संभालने का प्रयास किया है।

इसके बाद हुड्डा ने अपनी रैली में पार्टी के खिलाफ असंतोष तो व्यक्त किया, लेकिन कोई नई घोषणा नहीं की। इससे पहले माना जा रहा था कि राज्य में होने वाले चुनाव से पूर्व हुड्डा नई पार्टी बना सकते हैं। उनके शरद पवार की पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) ज्वाइन करने की भी अटकलें लगाई जा रहीं थीं। वहीं  कुछ लोग हुड्डा के भाजपा में शामिल होने की भी अटलकें लगा रहे थे। इसके पीछे वजह ये है कि हुड्डा ने पिछले सप्ताह दो बार पीएम मोदी से थोड़ी-थोड़ी देर के लिए मुलाकात की थी। भाजपा को भी हरियाणा में किसी बड़े जाट नेता की जरूरत है।

अमरिंदर की राह पर हुड्डा
हरियाणा में हुड्डा कोई नया काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनसे पहले भी कई पुराने नेता ये रास्ता अख्तियार कर चुके हैं। हरियाणा के तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी अपने दौर में इसी तरह की राजनीति कर चुके हैं। इनमें कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल, चौधरी देवी लाल और बंसी लाल का नाम प्रमुख है।

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