पत्नी संग जर्मनी के राष्ट्रपति जामा मस्जिद देखने पहुंचे

जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रेंक वाल्टर स्टेनमायर ने अपनी पत्नी एल्क बुडनबर्ग के साथ आज दिल्ली की प्रसिद्ध जामा मस्जिद का दौरा किया।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Fri, 23 Mar 2018 09:51 AM (IST) Updated:Fri, 23 Mar 2018 10:28 AM (IST)
पत्नी संग जर्मनी के राष्ट्रपति जामा मस्जिद देखने पहुंचे
पत्नी संग जर्मनी के राष्ट्रपति जामा मस्जिद देखने पहुंचे

नई दिल्ली (जेएनएन)। जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रेंक वाल्टर स्टेनमायर ने  अपनी पत्नी एल्क बुडनबर्ग के साथ आज दिल्ली की प्रसिद्ध जामा मस्जिद का दौरा किया। अपने पांच दिवसीय भारत दौरे पर आए वाल्टर ने गुरुवार का दिन काशी में बिताया।

जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रेंक वाल्टर स्टेनमायर विभिन्न जाति, धर्म और संप्रदाय वाले भारत में आपसी सौहार्द की वजहों को जानने की उत्कंठा के साथ गुरुवार को आध्यात्मिक नगरी काशी पहुंचे थे। वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं से ऐसे तमाम सवालों के साथ रूबरू हुए। उनका पहला सवाल भी यही था कि आखिर इतनी धार्मिक विविधता के बीच शांति और सौहार्द कैसे कायम रहता है, जबकि उनके अपने देश सहित दुनिया के विभिन्न राष्ट्र में ऐसी चुनौतियां रहती हैं। महामना की बगिया के मेधावी विद्यार्थियों ने फ्रेंक की जिज्ञासा को समुचित तर्कों के साथ शांत किया।

जर्मन राष्ट्रपति गुरुवार शाम करीब साढ़े चार बजे बीएचयू के केंद्रीय कार्यालय के समिति कक्ष में विद्यार्थियों के बीच थे। उनके पहले सवाल का जवाब दिया महिला महाविद्यालय से स्नातक कर रही छात्रा अमिषा पाठक ने-'भारत में बचपन से ही अनेकता में एकता की सीख दी जाती है।' प्रबंधन की पढ़ाई कर रही एक अन्य छात्रा शायंतिका ने जवाब दिया- 'हमारे यहां की सामाजिक शिक्षा सुदृढ़ है। इसकी वजह से सौहार्द कायम रहता है।' फ्रेंक ने राजनीति विज्ञान की पढ़ाई करने वाले छात्र कुमार अभिषेक से पूछा कि आपके समाज में विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं, कई बार हिंसा की भी नौबत आती होगी तो कैसे सामना करते हैं उस माहौल से। जवाब- 'ऐसा कोई भी माहौल भारत में सर्वत्र व्याप्त भाईचारे के आगे कमतर साबित होता है। सर्वधर्म सद्भाव की प्रवृत्ति हमारे देश में प्रबल है।'

जर्मनी के राष्ट्रपति ने राजनीतिक विज्ञान की एक अन्य छात्रा भूमिका से जानना चाहा कि हिंदू और मुसलमान के बीच यदि विवाद होता है तो उसे किस रूप में देखते हैं? जवाब मिला कि जब भी कोई ऐसी नौबत आती है तो पूरा देश और सभी जाति-धर्म के लोग एक साथ खड़े होकर एकता का परिचय देते हैं और माहौल बिगड़ने से बचाते हैं। इसी क्रम में सवाल आया कि ऐसे माहौल में मीडिया की भूमिका कैसी होती है? भूमिका ने बताया कि सांप्रदायिक मामलों में मीडिया बेहद सकारात्मक तौर पर संवेदनशील भूमिका का निर्वहन करती है।

फ्रेंक यहीं नहीं रुके, उन्होंने एक और सवाल किया कि जब कभी भारत में बीफ या धार्मिक विवाद का मामला आता है तो हमारे यहां की मीडिया में भी वह खूब दिखाया जाता है, ऐसा क्यों होता है। इसका उत्तर था- 'यहां ऐसी घटनाएं बेहद कम होती हैं, बल्कि सकारात्मक संदेश वाली तमाम गतिविधियों से भारत भरापूरा है।' स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही नसरीन वारसी से पूछा गया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नाम में हिंदू शब्द क्यों है, क्या यहां सिर्फ हिंदू पढ़ते हैं। नसरीन ने बताया- 'मैं मुस्लिम हूं और यहां की एक विद्यार्थी के रूप में आपके सामने हूं।' नसीन ने विस्तार पूर्वक समझाया कि देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी जाति-धर्मों के छात्रों को यहां दाखिला मिलता है और कहीं कोई भेदभाव नहीं होता है।

देखी बुद्ध की उपदेश स्थली, किया नौका विहार

जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रेंक बनारस पहुंचने के साथ ही दोपहर में भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ गए। वहां उन्होंने संग्रहालय के अलावा धमेख स्तूप व पुरातात्विक खंडहर परिसर का अवलोकन किया। शाम को फ्रेंक ने अस्सी से दशाश्वमेध घाट तक नौका विहार कर गंगा के पक्के घाटों की छटा निहारी। दशाश्वमेध घाट पर भव्य गंगा आरती देख अभिभूत हुए।

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