अतीत के आईने से : जब पहली बार बना 'महागठबंधन', कांग्रेस को मिली पहली हार

आज देश में तमाम विपक्षी पार्टियां मिलकर एक महागठबंधन बनाने की कोशिश में हैं। क्या आप जानते हैं कि देश में पहला महागठबंधन 1977 में बना था जिसने इंदिरा गांधी को हरा दिया।

By Digpal SinghEdited By: Publish:Mon, 18 Mar 2019 12:02 PM (IST) Updated:Mon, 18 Mar 2019 12:04 PM (IST)
अतीत के आईने से : जब पहली बार बना 'महागठबंधन', कांग्रेस को मिली पहली हार
अतीत के आईने से : जब पहली बार बना 'महागठबंधन', कांग्रेस को मिली पहली हार

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। सचमुच लोकतंत्र में जनता जनार्दन होती है। आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर पांचवें लोकसभा चुनाव तक केंद्र और राज्यों में एक छत्र शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी को 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में पहला और बड़ा झटका लगा। पहली बार इस पार्टी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला। इस तरह करीब ढाई दशक बाद पहले गैर कांग्रेस प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई को देश की कमान मिली।

कब हुए चुनाव
16 से 20 मार्च 1977

किसको कितनी सीट
जनता पार्टी गठबंधन
सीट - 345
मत प्रतिशत - 51.89

कांग्रेस गठबंधन
सीट - 189
मत प्रतिशत - 40.98

आपातकाल का दंश
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लोकतंत्र को निलंबित कर देश पर थोपे गए आपातकाल के खात्मे के साथ ही छठे लोकसभा चुनाव का आगाज हुआ। लोगों में कांग्रेस के प्रति गुस्सा चरम पर था। आपातकाल की पीड़ा लोगों से भुलायी नहीं जा रही थी।

कांग्रेस का सूपड़ा साफ
छठे लोकसभा चुनाव में लोगों ने आपातकाल के अपने गुस्से का इजहार कांग्रेस के खिलाफ वोट के इस्तेमाल में किया। कांग्रेस को करीब 200 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। कांग्रेस पार्टी के खिलाफ लहर का अंदाजा आप इस तरह से लगा सकते हैं कि इस चुनाव में अपनी परंपरागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हार गईं। उनके ताकतवर पुत्र संजय गांधी का भी यही हश्र हुआ।

कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष एक
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक आपातकाल के दौरान तमाम नागरिक अधिकारों को निलंबित रखा गया। राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था। बढ़ते दबाव के बीच आखिरकार 23 जनवरी 1977 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चुनाव कराने की घोषणा की। जेल से निकले सभी विपक्षी दलों के नेता कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिएलामबंद हुए। लिहाजा चारों विपक्षी दलों (कांग्रेस (ओ), जनसंघ, भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी) ने जनता गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ने पर सहमति जताई। इस गठबंधन ने भारतीय लोकदल को आवंटित चुनाव चिह्न को अपना निशान बनाया। 16 से 19 मार्च तक चुनाव हुए।

दिग्गज कांग्रेसियों ने बदले पाले
कांग्रेस को नतीजों का भान पहले से ही था। चुनाव के दौरान विपक्षी गठबंधन ने आपातकाल को ही सबसे बड़े मुद्दे की तरह पेश किया। नसबंदी और राजनेताओं को जेलों में बंद करने की बातें वे अपनी हर जनसभा में करके जनता के घाव को कुरेदते रहे। लोकतंत्र या तानाशाही के नारे फिजाओं में गूंजते रहे। कांग्रेसी दिग्गजों में हार का ऐसा भय घर किया कि उन्होंने पाला बदलने में देर नहीं की। तत्कालीन कृषि और सिंचाई मंत्री बाबू जगजीवन राम ने फरवरी के पहले हफ्ते में ही पार्टी को अलविदा कह दिया। हेमवतीनंदन बहुगुणा और नंदनी सत्पथी भी इसी राह पर चलते दिखे।

उत्तर में ज्यादा नुकसान
कांग्रेस पार्टी को वैसे तो पूरे देश में नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन मजबूत किले उत्तर प्रदेश, बिहार सहित उत्तर भारत के सभी राज्यों में खासा नुकसान झेलना पड़ा। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की रिकॉर्ड कम सीटें आईं। इनकी तुलना में तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में इसका प्रदर्शन ठीक रहा।

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