लंबित मुद्दों का समाधान निकालने पर होगा विदेश मंत्रालय का जोर
विदेश मंत्री जयशंकर ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए वाणिज्यिक फ्लाइट का इस्तेमाल कर उन्होंने अपने सहयोगियों को साफ संकेत दिया है कि परंपरा तोड़ने का यह माकूल वक्त है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। एस जयशंकर संभवत: ऐसे पहले विदेश मंत्री हैं जिन्हें आफिस संभालने के बाद मंत्रालय के विभिन्न विभागों से अलग अलग ब्रीफिंग की जरूरत नहीं पड़ी। जब हर विभाग से बैठकों का दौर शुरू हुआ तो उसमें सीधे तौर पर उस विभाग की विभिन्न योजनाओं की समीक्षा की गई।
अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए वाणिज्यिक फ्लाइट का इस्तेमाल कर उन्होंने अपने सहयोगियों को यह साफ संकेत दिया है कि परंपरा तोड़ने का यह माकूल वक्त है। संकेत यह भी है कि अब लंबित मुद्दों का स्थाई समाधान निकालने पर जोर होगा।
विदेश मंत्री का जोर इस बात पर भी है कि विदेश मंत्रालय अन्य सभी मंत्रालयों के साथ मिलकर समस्या समाधान करे। विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने पहले सार्वजनिक भाषण में भी यह स्पष्ट किया है कि विदेश मंत्रालय को भी मोदी सरकार के दूसरे मंत्रालयों की तरह ही नतीजों पर ज्यादा ध्यान देना होगा।
परियोजनाओं की निगरानी की जो व्यवस्था दूसरे मंत्रालयों में की गई है वैसी ही व्यवस्था विदेश मंत्रालय में भी करनी होगी। साथ ही यह अब अपने आपको विशेष मान कर अलग थलग नहीं रह सकता बल्कि इसे दूसरे मंत्रालयों के साथ बेहतर तालमेल बिठाना होगा और समग्र तौर पर समाधान निकालना होगा।
डोकलाम संकट के समय चीन के साथ और उसके पहले परमाणु करार के दौरान अमेरिका के साथ जिस स्तर का कूटनीतिक बुद्धिमता का प्रयोग जयशंकर ने दिखाया था उसे अब दूसरे मुद्दों के साथ आजमाने की तैयारी है।
अगले कुछ दिनों के भीतर जब अमेरिका के विदेश सचिव माइकल पाम्पिओ के साथ द्विपक्षीय वार्ता के लिए उनके सामने होंगे। फिर इसी महीने समूह 20 देशों के विदेश मंत्रियों के साथ वह मुलाकात करेंगे तो पूरी बातचीत का एजेंडा जयशंकर का ही बनाया होगा। इसी तरह से अक्टूबर में चीन के साथ होने वाली बैठक में चीनी प्रतिनिधिमंडल के कई सदस्यों के साथ जयशंकर की व्यक्तिगत केमिस्ट्री है।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप