Revoke Article 370: कश्मीर पर मंडराते दोहरे खतरे देख लिया दो टूक फैसला

क्या दो हफ्ते पहले वाशिंगटन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान पीएम इमरान खान के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता ने भारत को कश्मीर को लेकर बड़ा फैसला करने पर मजबूर कर दिया?

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Mon, 05 Aug 2019 09:41 PM (IST) Updated:Mon, 05 Aug 2019 09:41 PM (IST)
Revoke Article 370: कश्मीर पर मंडराते दोहरे खतरे देख लिया दो टूक फैसला
Revoke Article 370: कश्मीर पर मंडराते दोहरे खतरे देख लिया दो टूक फैसला

 जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। क्या दो हफ्ते पहले वाशिंगटन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान पीएम इमरान खान के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता ने भारत को कश्मीर को लेकर बड़ा फैसला करने पर मजबूर कर दिया? इस बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि पीएम मोदी ने उन्हें कश्मीर में मध्यस्थता करने को कहा है, इसे भारत ने एक सिरे खारिज कर दिया था। हालांकि दस दिनों बाद ट्रंप ने अपनी बात फिर दोहरायी थी।

जानकारों की मानें तो अफगानिस्तान से बाहर निकलने की राह खोज रहे ट्रंप प्रशासन ने जिस तरह से पाकिस्तान के साथ नए समीकरण बैठाने शुरू किए हैं, उससे भारत को अपनी रणनीतिक सुरक्षा को लेकर कई तरह की चुनौतियां पैदा होती दिख रही हैं।

एक तरफ कश्मीर मुद्दे का नये सिरे से अंतरराष्ट्रीकरण होने का खतरा तो दूसरी तरफ सीमा पार आतंक का खतरा। इन भावी चुनौतियों की वजह से ही भारत ने कश्मीर पर दो टूक फैसला करने में अब देरी नहीं करने का फैसला किया।

भारत और अमेरिका के रिश्तों पर नहीं पड़ेगा कोई असर: ब्रह्मा चेलानी
देश के प्रमुख रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि, 'ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान से आग्रह किया था कि वह उन्हें अफगानिस्तान से निकाले। ऐसा करके वह कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के आक्रामक रवैये को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि इससे भारत व अमेरिका के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।'

चेलानी ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की तरफ से रविवार को भी राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से कश्मीर में मध्यस्थता की अपील को दोहराने के संदर्भ का भी जिक्र किया है। यह दस दिनों में दूसरा मौका है जब पाकिस्तान सरकार की तरफ से ट्रंप के प्रस्ताव को कश्मीर मसले को सुलझाने के एक रास्ते के तौर पर पेश किया गया है।

हर कीमत पर अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी चाहते हैं ट्रंप
जानकारों की मानें तो आगामी चुनाव को नजदीक आते देख राष्ट्रपति ट्रंप हर कीमत पर अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी करना चाहते हैं। यह बात पाकिस्तान को भी बखूबी मालूम है और वह अपनी तरफ से ट्रंप के इस काम को सफलतापूर्वक पूरा करने का आश्वासन दे रहा है। लेकिन इसके बदले वह चाहता है कि कश्मीर पर उसके हितों का अमेरिका ख्याल रखे।

ट्रंप की तरफ से दो बार मध्यस्थता के प्रस्ताव की बात को भारत इसी संदर्भ में देख रहा है। यही नहीं, भारत को इस बात की आशंका है कि अफगानिस्तान से अमेरिका के बाहर निकलते ही पाकिस्तान और चीन के गठबंधन की वजह से भविष्य में नियंत्रण रेखा को लेकर उसकी चुनौतियां बढ़ सकती हैं। तालिबान की मदद से पाकिस्तान कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को और खतरनाक मोड़ दे सकता है।

पूर्व में भी जब अफगानिस्तान में पाकिस्तान समर्थित तालिबान शासन में था तब वहां भारत विरोधी गतिविधियों को खूब बढ़ावा दिया गया। जैश-ए-मुहम्मद के मुखिया मौलाना मसूद अजहर को भारतीय जेल से रिहा करवाने में तालिबान की अहम भूमिका रही।

भारत के पक्ष में भू-राजनीतिक हालात
जानकारों की मानें तो अभी जो भू-राजनीतिक हालात हैं उसने भी भारत सरकार को इतना बड़ा फैसला लेने की ताकत दी है। अमेरिका अभी एकमात्र बड़ी ताकत नहीं है और राष्ट्रपति ट्रंप तमाम प्रमुख देशों को अलग-अलग मुद्दे पर नाराज कर चुके हैं। ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय ताकतें और रूस ब्रेक्जिट, आर्थिक मंदी समेत अन्य समस्याओं में उलझे हैं।

चीन की अपनी समस्या है लेकिन भारत लगातार उसके साथ अपने रिश्ते को सुधारने में जुटा है। कश्मीर पर नजर रखने वाले इस्लामिक देशों के संगठन (ओआइसी) के अधिकांश देशों के साथ भारत सरकार ने हाल के वर्षो में करीबी रिश्ते बनाए हैं। ये सारे देश पूर्व में कश्मीर मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाते रहे हैं।

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