भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई में फंस सकती है देवेगोड़ा परिवार की राजनीति, कर्नाटक में त्रिकोणीय संघर्ष का इतिहास

कांग्रेस ने 36 और जदएस ने 11 सीटों पर बढ़त बनाई थी। भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी को भी सात सीटों पर बढ़त मिली थी। लोकसभा की स्थितियां विधानसभा की तुलना में अलग होती हैं। ऐसे में इस आधार पर विधानसभा चुनाव का आकलन नहीं किया जा सकता है।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Tue, 21 Mar 2023 08:35 PM (IST) Updated:Tue, 21 Mar 2023 08:35 PM (IST)
भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई में फंस सकती है देवेगोड़ा परिवार की राजनीति, कर्नाटक में त्रिकोणीय संघर्ष का इतिहास
इस बार आप की अति सक्रियता पर सबकी नजर

नई दिल्ली, अरविंद शर्मा। कर्नाटक विधानसभा के अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव के लिए इस बार कांग्रेस और भाजपा ने पूरा जोर लगा रखा है। ऐसे में एचडी देवगोड़ा की पार्टी जनता दल (एस) की राजनीति फंसती नजर आ रही है। पिछली बार जदएस ने देवगोड़ा के पुत्र कुमारस्वामी के नेतृत्व में कर्नाटक की 224 सीटों में से 37 सीटें जीतकर कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।

भाजपा और कांग्रेस की तैयारियों का आकलन

किंतु 14 महीने के भीतर ही आपरेशन लोटस में सत्ता हाथ से चली गई। तभी से भाजपा और कांग्रेस ने सूबे की सियासत को आमने-सामने की लड़ाई बनाने के लिए जोर लगा रखा है। ऐसे में देवगौड़ा परिवार के लिए यह चुनाव मुश्किल और निर्णायक साबित हो सकता है। भाजपा और कांग्रेस की तैयारियों का आकलन इसी आधार पर किया जा सकता है कि राहुल गांधी तीन दिनों के लिए कर्नाटक के दौरे पर हैं।

पिछले संसदीय चुनाव के आंकड़े

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी उन्होंने कर्नाटक में काफी समय दिया था। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले एक वर्ष के दौरान कर्नाटक का सात बार दौरा कर लिया है। इसी हफ्ते उनका एक और दौरा प्रस्तावित है। गृहमंत्री अमित शाह को भी 23-24 मार्च को कर्नाटक में रहना है। पिछले संसदीय चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को विधानसभा की 170 सीटों पर बढ़त मिली थी।

कांग्रेस ने 36 और जदएस ने 11 सीटों पर बढ़त बनाई थी। भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी को भी सात सीटों पर बढ़त मिली थी। लोकसभा की स्थितियां विधानसभा की तुलना में अलग होती हैं। ऐसे में इस आधार पर विधानसभा चुनाव का आकलन नहीं किया जा सकता है। कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में तीन दशकों से भाजपा, कांग्रेस और जदएस की त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति रही है। वैसे इस बार आम आदमी पार्टी (आप) भी जोर लगाने की कोशिश कर रही है और उसने 80 प्रत्याशियों की घोषणा भी कर दी है। हालांकि आप ने पिछले विधानसभा चुनाव में 28 सीटों पर भाग्य आजमाया था मगर परिणाम अच्छे नहीं आए थे।

बड़े दलों को दिखाना होगा अपना दम

कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा की भी परंपरा रही है। वर्ष 2004, 2008 और 2018 के चुनावों में किसी भी दल ने सरकार बनाने भर आंकड़ा नहीं ला पाया था। इसलिए राज्य में सक्रिय तीनों बड़े दलों को पता है कि बहुमत के आंकड़ों के आसपास पहुंचने से ही काम नहीं चलने वाला है। सरकार बनानी है तो अपने दम पर ही बहुमत की संख्या जुटानी पड़ेगी। अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति आती है तो कुमारस्वामी की भूमिका बड़ी हो जाएगी। जदएस को लगभग 18 से 20 प्रतिशत तक वोट मिलते रहे हैं और सत्ता में भागीदारी के लिए उसे किसी भी दल से परहेज नहीं रहा है। कुमारस्वामी अतीत में भाजपा और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना चुके हैं।

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