केंद्र में अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य की सहमति को दरकिनार करने पर विरोध, हेमंत सोरेन ने जताई आपत्ति

Ranchi News वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार की सहमति का प्रविधान है। बंगाल समेत कई राज्य पहले से ही इस ड्राफ्ट के विरोध में है। अब झारखंड ने भी विरोध कर दिया है। केंद्र में फिलहाल उपसचिव निदेशक एवं संयुक्त सचिव स्तर के कई

By Madhukar KumarEdited By: Publish:Sat, 22 Jan 2022 08:54 PM (IST) Updated:Sat, 22 Jan 2022 08:54 PM (IST)
केंद्र में अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य की सहमति को दरकिनार करने पर विरोध, हेमंत सोरेन ने जताई आपत्ति
केंद्र में अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य की सहमति को दरकिनार करने पर विरोध, हेमंत सोरेन ने जताई आपत्ति

रांची, राज्य ब्यूरो। केंद्र में बड़े पैमाने पर केंद्रीय सेवा के अधिकारियों की कमी को देखते हुए केंद्रीय कार्मिक विभाग एक संशोधन की तैयारी में है। इसके तहत राज्य में तैनात केंद्रीय सेवा के अधिकारियों (आइएएस, आइपीएस, वन सेवा समेत अन्य) की प्रतिनियुक्ति सीधे केंद्रीय स्तर पर की जा सकती है। इसके ड्राफ्ट पर झारखंड सरकार ने 12 जनवरी को अपनी आपत्ति दर्ज करवा दी थी। इसके बाद एक बार और संशोधित प्रस्ताव का ड्राफ्ट राज्य सरकार को मिला है। अब इस ड्राफ्ट पर आपत्ति दर्ज कराते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। पत्र में सोरेन ने लिखा है कि संशोधित ड्राफ्ट के प्रविधान पहले से भी अधिक कठोर हैं।

कई राज्य कर रहे ड्राफ्ट का विरोध

वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार की सहमति का प्रविधान है। बंगाल समेत कई राज्य पहले से ही इस ड्राफ्ट के विरोध में है। अब झारखंड ने भी विरोध कर दिया है। केंद्र में फिलहाल उपसचिव, निदेशक एवं संयुक्त सचिव स्तर के कई आईएएस अधिकारियों के पद रिक्त पड़े हुए हैं। इस परिस्थिति में केंद्र सरकार चाहती है कि राज्यों में तैनात केंद्रीय सेवा के अधिकारियों को वापस बुलाने का अधिकार केंद्र के पास हो। वर्तमान व्यवस्था में इसके लिए राज्य सरकार की सहमति अनिवार्य है। अब नए ड्राफ्ट के अनुसार केंद्र सरकार अपनी जरूरतों को देखते हुए किसी भी अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है।

संशोधन से बढ़ेंगी परेशानियां

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि प्राथमिक तौर पर यह बात समझ में नहीं आ रही है कि केंद्र सरकार किन परिस्थितियों में ऐसा बाध्यकारी कदम उठाने की कोशिश कर रही है, जसके तहत राज्य में सेवा दे रहे अधिकारियों को उनकी और राज्य सरकार की सहमति के बगैर वापस केंद्र बुलाना पड़े। जहां तक केंद्र में अधिकारियों की कमी का मामला है तो मैं यह बताना चाहूंगा कि राज्य में भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा और वन सेवा के अधिकारियों की ही संस्तुति यूपीएससी के माध्यम से होती है जबकि 30 अन्य प्रकार की सेवाओं से संबंधित अधिकारियों की संस्तुति सीधे केंद्र सरकार को की जाती है।

झारखंड में अधिकारियों की कमी

सीएम ने लिखा है कि झारखंड में पहले से ही अधिकारियों की कमी है। 215 आइएएस अधिकारियों के स्वीकृत पदों के विरोध में झारखंड में महज 140 (65 प्रतिशत) मौजूद हैं। इसी प्रकार आइपीएस अधिकारियों की संख्या 95 है (स्वीकृत पदों के हिसाब से 64 प्रतिशत)। वन सेवा के अधिकारियों के संदर्भ में भी ऐसी ही स्थिति है। कई अधिकारियों को एक से अधिक पदों पर काम करना पड़ रहा है। अचानक तबादलों से ना सिर्फ राज्य को नुकसान होगा, बल्कि ऐसे अधिकारियों को परिवार और बच्चों की शिक्षा की ङ्क्षचता हमेशा सताएगी। अधिकारियों की कार्यक्षमता भी प्रभावित होगी। इतना ही नहीं राज्य और केंद्र के बीच विवादित मुद्दों पर ऐसे अधिकारी स्पष्ट मंतव्य देने से बचेंगे। मुख्यमंत्री ने अंत में लिखा है कि इस कदम से राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप बढ़ेगा और जहां केंद्र से अलग पार्टी की सरकार राज्य में है वहां कठिनाइयां बढ़ेंगी। ऐसे में इस प्रस्ताव पर तत्काल रोक लगाने की आवश्यकता है।

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