सिर्फ चेहरा बदले जाने से क्‍या कांग्रेस को मिल जाएगी संजीवनी बूटी या पार्टी की राह बनी रहेगी मुश्किल

कांग्रेस को नया अध्‍यक्ष देने की प्रक्रिया अब शुरू हो गई है। लेकिन इससे कितना फायदा आने वाले समय में पार्टी को मिलेगा इस पर बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है। पार्टी लगातार अपना जनाधार खोती जा ही है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 22 Sep 2022 12:05 PM (IST) Updated:Thu, 22 Sep 2022 01:50 PM (IST)
सिर्फ चेहरा बदले जाने से क्‍या कांग्रेस को मिल जाएगी संजीवनी बूटी या पार्टी की राह बनी रहेगी मुश्किल
कांग्रेस लगातार खो रही है अपना जनाधार

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। कांग्रेस के लिए नए अध्‍यक्ष को लेकर कवायद अब तेज होती दिखाई दे रही है। पार्टी नेतृत्‍व को दोबारा संभालने के लिए राहुल गांधी तैयार नहीं हैं। राजस्‍थान के सीएम अशोक गहलोत भी इसके लिए मना कर चुके हैं। अब नए चेहरे की तलाश की जा रही है। इसके लिए कुछ नाम भी सामने आए हैं। पार्टी अध्‍यक्ष के लिए प्रियंका गांधी के नाम की भी आवाजें उठती रही हैं। लेकिन, इन सभी के बीच एक सबसे बड़ा सवाल है कि क्‍या केवल चेहरा बदलने से पार्टी को संजीवनी बूटी मिल जाएगी। एक ऐसा सवाल है जिसको जानना इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि देश में सबसे अधिक समय तक सत्‍ता में रहने वाली ये पार्टी अब अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है।

सोनिया गांधी को पार्टी में लेकर आए थे सीताराम केसरी

गौरतलब है कि सीताराम केसरी, सोनिया गांधी पार्टी में लेकर भी आए थे। पार्टी अध्‍यक्ष का पद संभालने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी को कुछ मजबूती दी जिसकी बदौलत कांग्रेस ने फिर सत्‍ता का सुख भोगा था। लेकिन उनकी तबियत खराब होने के बाद पार्टी की हालत लगातार खराब होती चली गई है। पार्टी के कई नेताओं की मांग के बाद राहुल गांधी ने इसकी कमान संभाली थी, लेकिन पार्टी की दुगर्ति होती ही चली गई। राहुल को न तो पार्टी ने ही एक अध्‍यक्ष के तौर पर स्‍वीकार किया न ही पार्टी समर्थकों को ही वो अपने साथ मिलाए रखने में कामयाब हो सके। इसकी बदौलत पार्टी का दायरा सिमटता चला गया। मौजूदा समय में पार्टी के वल गिने-चुने राज्‍यों तक ही सिमट कर रह चुकी है।

पार्टी छोड़कर जाने वालों की बढ़ रही संख्‍या

पार्टी नेतृत्‍व के खिलाफ बगावत के तौर पर जी-23 ग्रुप ने रही सही कसर भी पूरी कर दी है। पार्टी छोड़कर जाने वालों की फहरिस्‍त लगातार बढ़ती जा रही है। पार्टी को एक नया चेहरा देने की कवायद ऐसे समय में चल रही है जब उसकी घुर विरोधी और सत्‍ताधारी पार्टी भाजपा अगले आम चुनाव की तैयारी कर रही है। ऐसे में पार्टी को संभालने वाला नया अध्‍यक्ष इसको कितना ऊर्जावान बना सकेगा ये भी अभी सवालों के घेरे में है।

पार्टी का सिमटता जनाधार

वरिष्‍ठ राजनीतिक विश्‍लेषक कमर आगा का मानना है कि पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन खो बैठी है। जनाधार लगातार कम हो रहा है और समर्थकों की संख्‍या लगातार कम हो रही है। पिछले आम चुनाव में राहुल गांधी के अमेठी लोकसभा सीट से पलायन करने के बाद समर्थकों में बुरी तरह से निराशा कायम है। समर्थकों के जहन में ये बात घर कर चुकी है कि जब पार्टी का बड़ा चेहरा मानने वाले राहुल ही स्मिृति इरानी के सामने सीट छोड़कर हार के डर से भाग सकते हैं जो फिर वो किसके लिए कांग्रेस का झंडा संभालकर रखें।

गांधी परिवार का करीबी होगा नया अध्‍यक्ष 

आगा के मुताबिक इंदिरा गांधी के समय में पार्टी का जनाधार जमीनी हकीकत और निचले तबके से जुड़ा हुआ था। मौजूदा समय में वही जनाधार खत्‍म हो चुका है। निजी हितों के सामने पार्टी नेताओं ने समर्थकों की अनदेखी कर इस खाई को और खोदने का काम किया है। मौजूदा समय में जनहित के मुद्दों को उठाने में भी पार्टी विफल रही है। 

जमीनी बदलाव की मांगों पर खामोशी 

पार्टी के अंदर बने विरोधी गुट ने काफी समय पहले जिस बदलाव को लेकर बात कही थी, पार्टी लगातार उसको नजरअंदाज कर रही है। कांग्रेस के कवल चंद लोगों के एक परिवार के रूप में सिमट गई है। आम आदमी या निचले तबके के उसके समर्थकों से वो कट चुकी है। ऐसे में नए चेहरे से उसको कोई संजीवनी बूटी भी नहीं मिल सकेगी। अब तक जिन लोगों के नाम सामने आए हैं वो ऐसे नहीं हैं जो जमीनी संघर्ष कर आगे आए हों।  

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