कांग्रेस ने हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा के सियासी रथ को रोकने की ठोकी ताल
महाराष्ट्र में बीते दो दशक से गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रहने वाली कांग्रेस पहली बार एनसीपी को बराबर सीटें देने पर मजबूर हुई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के एलान के साथ ही कांग्रेस ने भले ही पूरे दमखम से दोनों सूबों में भाजपा के सियासी रथ को रोकने की ताल ठोक दी है। मगर हकीकत में इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस नाजुक सियासी संकट के दौर का सामना कर रही है। इसीलिए उम्मीदवारों के एलान में पार्टी भले भाजपा से आगे निकलने का संदेश देने की कोशिश करे मगर चुनावी मैदान में उसकी राह कठिन है।
कांग्रेस ने चुनावी बिगुल बजने से पहले ही महाराष्ट्र के करीब 70 उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं। वहीं हरियाणा के उम्मीदवारों के चयन की गति तेज करने के लिए अगले हफ्ते केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक होगी।
हरियाणा में कांग्रेस का भाजपा से सीधा मुकाबला
हरियाणा में कांग्रेस का भाजपा से भले लगभग सीधा मुकाबला है मगर पार्टी की चुनावी तैयारियों की शुरूआत ही बहुत देर से हुई है। अंदरूनी कलह के कारण अशोक तंवर को हटाने का फैसला अभी दो हफ्ते पहले ही हुआ है। नई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने अभी कमान ही संभाली है और विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मिलकर प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी खत्म होने का संदेश दे रही हैं। मगर बीते पांच सालों की गुटबाजी से सूबे में पार्टी का संगठन कमजोर हुआ है और चुनावी ऐलान होने के बाद तो इन्हें दुरूस्त करने के लिए समय ही नहीं बचा है।
ऐसे में कांग्रेस हाईकमान का फोकस अब सूबे में बेहतर उम्मीदवारों के जरिए भाजपा को चुनौती देने की है। उम्मीदवार चयन की पार्टी की चुनौती भी कम गंभीर नहीं है क्योंकि अभी स्क्रीनिंग कमिटी में चर्चा की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। हालांकि अगले तीन-चार दिन में स्क्रीनिंग का काम पूरा कर अगले हफ्ते के अंत तक केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में उम्मीदवारों के नाम तय किए जाने के संकेत दिए गए हैं।
खट्टर सरकार धनबल के सहारे प्रचार का शोर कर रही
हरियाणा में कांग्रेस की चुनाव तैयारियों पर उठाए जा रहे सवाल का जवाब देते हुए पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि खट्टर सरकार धनबल के सहारे प्रचार का शोर कर रही है। मगर कांग्रेस मुद्दों के सहारे जनता के बीच जा रही है और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ तथा राजस्थान के चुनाव में हमने ऐसा करके दिखाया भी है। भले पवन का इन तीन सूबों को लेकर किया गया दावा सही हो, लेकिन सच्चाई यह भी है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद पार्टी के सियासी स्थिति और कमजोर हुई है। इस राजनीतिक हालत का ही असर है कि कांग्रेस को एक बार फिर सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाना को बाध्य होना पड़ा है।
महाराष्ट्र में कांग्रेस की सियासी हालत खस्ता
महाराष्ट्र में पार्टी की सियासी हालत हरियाणा से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने करीब 70 उम्मीदवार तय कर दिए हैं और सोमवार को बाकी प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगाए जाने की संभावना है। मगर प्रत्याशी चयन की पहल में भाजपा से आगे दिखाने की कांग्रेस की यह कसरत चुनावी जमीन पर कमजोर मानी जा रही है।
कांग्रेस पहली बार एनसीपी को बराबर सीटें देने पर मजबूर
लोकसभा चुनाव के समय से लेकर अभी तक महाराष्ट्र में कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख दिग्गज पार्टी छोड़ भाजपा या शिवसेना में शामिल हो चुके हैं। पार्टी का संगठनात्मक ढांचा छिन्न-भिन्न हो गया है और हकीकत यही है कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार के सहारे कांग्रेस चुनावी मुकाबले में दम लगा रही है।
राजनीतिक जमीन पर कांग्रेस की कमजोर पकड़
राजनीतिक जमीन पर कांग्रेस की कमजोर हुई पकड़ का सबसे बड़ा प्रमाण कांग्रेस और एनसीपी का 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमत होना है। बीते दो दशक से गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रहने वाली कांग्रेस पहली बार एनसीपी को बराबर सीटें देने पर मजबूर हुई है।