नागरिकता संशोधन बिल: मेघालय हाईकोर्ट ने एक साल पहले की थी ऐसे ही कानून की वकालत

जस्टिस सेन ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है। इसे आगे धर्म के आधार पर नहीं बाटा जाना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 10 Dec 2019 02:25 AM (IST) Updated:Tue, 10 Dec 2019 02:25 AM (IST)
नागरिकता संशोधन बिल: मेघालय हाईकोर्ट ने एक साल पहले की थी ऐसे ही कानून की वकालत
नागरिकता संशोधन बिल: मेघालय हाईकोर्ट ने एक साल पहले की थी ऐसे ही कानून की वकालत

माला दीक्षित, नई दिल्ली। जिस नागरिकता संशोधन कानून पर इतना शोरशराबा हो रहा है मेघालय हाईकोर्ट ने ठीक एक साल पहले ऐसे ही कानून की वकालत की थी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह कानून बनाए जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जैंता और गारो समुदाय को बिना किसी सवाल और दस्तावेज के भारत की नागरिकता दी जाए।

भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था

हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसआर सेन ने 10 दिसंबर 2018 को स्थानीय निवास प्रमाणपत्र के एक मामले में दिये गए फैसले में भारत के इतिहास और विभाजन की विभीषिका का जिक्र किया था और विभाजन के दौरान सिख, हिंदू बंगाली आदि पर हुए अत्याचारों का हवाला देते हुए कहा था कि पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक देश घोषित किया, जबकि भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था उसे भी हिंदू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष बना रहा।

पाक, बांगलादेश और अफगान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार- कोर्ट

उस फैसले में कोर्ट ने कहा है कि आज भी पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जैंता और गारो पर अत्याचार हो रहे हैं और उनके पास ऐसी कोई जगह नहीं है जहां वे चले जाएं, जो हिंदू बंटवारे के दौरान भारत में घुस आए उन्हें आज भी विदेशी माना जाता है जस्टिस सेन ने कहा था कि मेरी समझ में यह बिल्कुल अतार्किक, गैर-कानूनी और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। बंगाली हिंदू इस देश के निवासी हैं। उनके अधिकारों को नकार कर हम उनके साथ अन्याय कर रहे हैं।

कोर्ट ने पीएम, गृहमंत्री, कानून मंत्री से कानून बनाने का किया था अनुरोध

उस फैसले में कोर्ट ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, कानून मंत्री और सांसदों से ऐसा कानून बनाने का अनुरोध किया था जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिन्दू सिख जैन बौद्ध पारसी, ईसीई, खासी जैंता और गारो को सम्मान से शांति पूर्वक भारत में रहने की इजाजत हो। उनके लिए कोई कट आफ डेट न हो उन्हें बिना किसी सवाल और दस्तावेज के नागरिकता दी जाए। यही सिद्दांत विदेशों से आने वाले भारतीय मूल के हिंदू और सिखों के लिए भी अपनाया जाए। हालांकि इसके साथ ही जस्टिस सेन ने यह भी कहा था कि वह भारत में पीढि़यों से रह रहे और यहां के कानून का पालन कर रहे मुसलमान भाई बहनों के खिलाफ नहीं है, उन्हें भी शांतिपूर्वक रहने की इजाजत होनी चाहिए।

फैसले में कहीं भी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा गया

इस फैसले में भारत के हिंदू राष्ट्र बनने के संदर्भ पर काफी हंगामा हुआ था जिसके चार दिन बाद जस्टिस सेन ने 14 दिसंबर को स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा था कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है। इसे आगे धर्म जाति वर्ण समुदाय या भाषा के आधार पर नहीं बाटा जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया था कि उनके 10 दिसंबर के फैसले में कहीं भी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा गया है। उस फैसले में नरेन्द्र मोदी की सरकार के बारे में कहने के आशय में बाकी माननीय मंत्री और दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सांसद भी शामिल हैं। तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जो जिक्र किया है उसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को उसमें शामिल नहीं माना है।

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