भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने को सामने आए चंद्र बाबू नायडू, जानिए कितना दम है इस आइडिया में?

भले आज नायडू एनडीए से मोहभंग का कोई भी कारण देते हों, लेकिन सच ये है कि वे मोदी और शाह विरोधी एक मोर्चा या गठबंधन तैयार करने की जुगत में जरूर नजर आ रहे हैं।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Fri, 02 Nov 2018 03:24 PM (IST) Updated:Sat, 03 Nov 2018 12:24 PM (IST)
भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने को सामने आए चंद्र बाबू नायडू, जानिए कितना दम है इस आइडिया में?
भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने को सामने आए चंद्र बाबू नायडू, जानिए कितना दम है इस आइडिया में?

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। एक वक्त कांग्रेस के विरोधी और भाजपा से विशेष लगाव रखने वाले चंद्रबाबू नायडू ने अब पाला बदल लिया है। अब वे विशेष रूप से भाजपा विरोधी मोर्चे के गठन के प्रयास में जुटे नजर आ रहे हैं। उनके इस प्रयास में कितना दम है, इस बारे में हमने भारतीय राजनीति की नब्ज पकड़ने वाले दो पत्रकारों से बात की।

वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता को जहां नायडू के इस प्रयास में दम नजर आ रहा है, वहीं प्रदीप सिंह के मुताबिक चंद्र बाबू नायडू अपनी राजनीतिक जमीन बचाने में लगे हैं क्योंकि मोदी-शाह की भाजपा ने उन्हें खास अहमियत नहीं दी। प्रदीप सिंह ये भी कहते हैं कि खुद चंद्र बाबू नायडू ने कांग्रेस के विरोध पर रखी गई टीडीपी की नींव और एनटीरामाराव के सिद्धांतों को एक तरह से शीर्षासन करवा दिया है। उनके लिए अपने समर्थकों को भी समझाना देखने वाली बात होगी।

नायडू के एंटी बीजेपी फ्रंट बनाने के प्रयास में कितना दम है? 
वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता को नायडू के भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के प्रयास दम नजर आता है। हालांकि वे कहते हैं कि ये प्रयास कितना सफल हुआ ये तो 2019 के चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। क्योंकि अगर एनडीए को बहुमत नहीं मिलता है और स्थानीय राजनीतिक दल एनडीए को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने को तैयार नहीं होते हैं, तो गठबंधन की सरकार में एक दावेदार नायडू भी हो सकते हैं। हालांकि नाम और भी हैं। भले आज नायडू एनडीए से मोहभंग का कोई भी कारण देते हों, लेकिन सच ये है कि वे मोदी और शाह विरोधी एक मोर्चा या गठबंधन तैयार करने की जुगत में जरूर नजर आ रहे हैं।

ठाकुरता कहते हैं कि ये सही है कि चंद्रबाबू नायडू का एक वक्त पर कांग्रेस से भी जबरदस्त विरोध रहा है। चाहे 2004 की बात हो या 2009 के चुनावों की। लेकिन अब वे राहुल से मिलने के बाद कहते हैं कि पुरानी राजनीतिक दुश्मनी को भुला दिया है। ठाकुरता के मुताबिक अभी भी बहुत लोगों का मानना है कि शायद 2019 के बाद मोदी की सत्ता में वापसी न हो और इसीलिए भाजपा विरोधी मोर्चे की तैयारी कर रहे हैं। भले ही नायडू के बारे में कहा जा रहा हो कि चंद्र बाबू कांग्रेस विरोधी रहे हैं लेकिन अब नायडू ने साफ कर दिया है कि वे भाजपा विरोधी मोर्चे में खड़े हैं। ठाकुरता के मुताबिक लोग भूल जाते हैं एक समय ऐसा भी था जब आपातकाल में चंद्रबाबू नायडू ने संजय गांधी को समर्थन दिया था।

राहुल गांधी क्यों ऐसा प्रयास करते नहीं दिखते ?
इस सवाल पर ठाकुरता कहते हैं कि अभी ये किसी को नहीं पता कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी। 2014 में तो 44 मिली थीं, लेकिन 2019 में ये आंकड़ा कितना होगा ये अभी पता नहीं। उनके मुताबिक आने वाले 6 महीनों में पीएम कोशिश करेंगे कि आगामी चुनाव मोदी बनाम राहुल दिखे लेकिन विपक्षी दलों का ये प्रयास होगा कि ऐसा न हो। इसके लिए वो पीएम मोदी के 2014 में किए वादों के अलावा बेरोजगारी, नोटबंदी, राफेल आदि मुद्दों पर सरकार को घेरेंगे। ऐसे में 2019 के चुनाव परिणाम के बाद ही साफ होगा कि सरकार किसकी बनेगी।


नायडू के भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने में कितना दम? 
इस बारे में जब वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह से पूछा गया तो उन्हें नायडू के भाजपा विरोधी मोर्चा के प्रयास में ज्यादा दम नजर नहीं आता। प्रदीप सिंह कहते हैं कि तेलुगु देशम पार्टी का गठन ही कांग्रेस के विरोध में हुआ था। एनटी रामाराव ने तेलुगु विद्या का नारा दिया। आरोप लगाया गया कि कांग्रेस पार्टी तेलुगु लोगों का अपमान कर रही है। कल जो चंद्रबाबू नायडू ने किया है, उससे उन्होंने एनटी रामराव की कांग्रेस विरोधी विरासत को एक तरह से शीर्षासन करवा दिया है। चंद्र बाबू का राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड भी एक तरह से चुनाव से पहले गठबंधन बदलने का रहा है। 1998 से 2004 तक वे वाजपेयी की सरकार में रहे। चूंकि भाजपा अल्पमत में थी और गठबंधन की सरकार थी तो इस दौरान नायडू ने समर्थन वापस लेने की बात कहकर वाजपेयी पर दबाव बनाया और आंध्र के लिए पैकेज लेते रहे। फिर 2004 का चुनाव वे और भाजपा दोनों हार गए।

इस हार का ठीकरा उन्होंने भाजपा पर फोड़ा और एनडीए से अलग हो गए। 2014 तक वे भाजपा को कोसते रहे। फिर उन्हें लगा कि अब भाजपा की सरकार बन रही है तो एनडीए में फिर से शामिल हो गए। प्रदीप सिंह कहते हैं कि यहां भी उन्होंने वाजपेयी सरकार के दौरान दबाव की राजनीति का दांव चलने की कोशिश की लेकिन वो ये भूल गए कि अब भाजपा मोदी और अमित शाह की पार्टी है और दूसरी बात ये कि भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला है। जिससे कि उनका दबाव की राजनीति का प्रयास सफल नहीं हुआ। इसके बाद जिस तरह से जगन मोहन रेड्डी ने उनकी राजनीतिक घेराबंदी कि तो उनके पास मोदी सरकार के खिलाफ स्टैंड लेने के अलावा कोई रास्त नहीं बचा है।

प्रदीप कहते हैं कि अब नायडू के सामने राजनीति बचाए का रखने का सवाल है। आंध्र में वाइएसआर कांग्रेस का जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। तो उनको खतरा है कि अगले चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी उन्हें हरा सकती है लेकिन लगता नहीं कि बहुत ज्यादा सफलता मिलने वाली है। क्योंकि ये देखने वाली बात होगी कि वे कैसे अपने समर्थकों के बीच कांग्रेस विरोधी छवि और इतिहास पर जवाब देंगे। क्योंकि वे एनडीए से अलग होने के बाद भी नायडू कांग्रेस के साथ नहीं गए थे।

महागठबंधन के प्रयास में राहुल आगे क्यों नहीं आते ? 
प्रदीप सिंह कहते हैं कि इसकी वजह ये है कि स्थानीय पार्टियां राहुल गांधी को नेता मानने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने वर्किंग कमेटी में राहुल को पीएम उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव पास किया मगर वापस लेना पड़ा। हाल ही में चिदंबरम ने इस बात की पुष्टि भी कि पार्टी ने कभी तय ही नहीं किया राहुल पीएम के उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस को लगता है कि महागठबंधन के रास्ते में राहुल का नेतृत्व सबसे बड़ी बाधा बन सकता है। इसीलिए भाजपा विरोधी पार्टियां भी एक साथ नजर नहीं आती। ममता बनर्जी फेडरल फ्रंट की बात करती हैं। तेलंगाना के के. चंद्रशेखर राव नहीं हैं, नवीन पटनायक नहीं हैं, एआइडीएमके लोग भी इस महागठबंधन में नहीं दिखे हैं।

असल बात तो ये है कि कांग्रेस के विरोधी भी मौजूदा राजनीतिक हालात में भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के प्रयास कर रहे हैं और ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मोदी की सत्ता में वापसी न हो। हालांकि, इस प्रयास में कितना दम है ये तो चुनावों के बाद ही पता चलेगा। जो भी हो 2019 का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने वाला है।

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