बिहार चुनाव: टिकट बंटवारे में सगे-संबंधियों की भरमार से कांग्रेस में नाराजगी

कांग्रेस पर कई इलाकों में निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का आरोप। कांग्रेस के खाते में आई सीटों पर मुफीद उम्मीदवार नहीं देने को लेकर भी उठ रहे सवाल। टिकट बंटवारे से नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं ने किए कई दावे।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Fri, 16 Oct 2020 08:47 PM (IST) Updated:Fri, 16 Oct 2020 08:47 PM (IST)
बिहार चुनाव: टिकट बंटवारे में सगे-संबंधियों की भरमार से कांग्रेस में नाराजगी
टिकट बंटवारे में सगे-संबंधियों की भरमार से कांग्रेस में नाराजगी।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बिहार में चुनावी पारा जहां अब चरम पर पहुंचने लगा है, वहीं कांग्रेस में टिकट बंटवारे में हुई गड़बड़ी के खिलाफ अंदरूनी आक्रोश भी कम नहीं है। कई इलाकों में निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर नेता के सगे-संबंधियों को टिकट दिए जाने के खिलाफ नाराजगी सामने आ रही है। पार्टी के रणनीतिकारों पर हाईकमान को गुमराह कर नेता संतानों को तवज्जो देने से लेकर राजद के दबाव में घुटने टेक देने के आरोप लगाए जा रहे हैं।

चुनाव प्रचार के बीच कार्यकर्ताओं की नाराजगी पार्टी के लिए मुसीबत बन सकती है। इसे देखते हुए बिहार कांग्रेस के प्रभारी महासचिव शक्ति सिंह गोहिल टिकट से वंचित कार्यकर्ताओं और नेताओं को समझाने का प्रयास कर रहे हैं। पार्टी सूत्रों ने कहा कि कुछ एक घटनाओं को छोड़कर टिकट बंटवारे पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी हालांकि सड़क पर नहीं आई है। लेकिन, पार्टी चैनलों के जरिये हाईकमान तक उम्मीदवारी तय करने में कथित खेल की बात पहुंचाई जा रही है। उम्मीदवारों के चयन में विशेष जिम्मेदारी निभाने वाले पार्टी के सचिवों अजय कपूर और वीरेंद्र सिंह राठौर की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।

टिकट बंटवारे से नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं का दावा है कि कांग्रेस को मिली 70 में कम-से-कम 30 सीटों पर उम्मीदवार तय करने में हेरफेर किया गया है। इनमें दर्जनभर से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जिन पर उतारे गए प्रत्याशी जीत की बेहतर संभावना वाली सीट से टिकट मांग रहे थे। मगर उन्हें गठबंधन की वजह से दूसरी सीट दे दी गई है। मसलन भागलपुर से सियासत करने वाले प्रवीण कुशवाहा को पटना साहिब, बांकीपुर से चुनाव लड़ने के दावेदार युवा कांग्रेस के अध्यक्ष गुंजन पटेल को नालंदा और पटना के नागेंद्र पासवान को रोसड़ा से उम्मीदवार बनाया जाना कुछ एक उदाहरण हैं।

सबसे ज्यादा रोष इस बात को लेकर है कि वर्षो से कांग्रेस का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ताओं की जगह करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर नेताओं के सगे-संबंधियों को टिकट दिए गए हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद यादव के बेटे शुभानंद मुकेश, पूर्व मंत्री अवधेश सिंह के पुत्र शशि शेखर सिंह, कृष्णा शाही की बहन उषा सिन्हा के बेटे अनुनय कुमार सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत अब्दुल गफूर के पोते आसिफ गफूर, निखिल कुमार के भतीजे राकेश कुमार उर्फ पप्पू सिंह से लेकर कीíत आजाद के साले मिथिलेश चौधरी जैसे नाम कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।

इसी तरह आखिरी वक्त में शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा और शरद यादव की बेटी सुहासिनी को उम्मीदवार बनाए जाने से भी कांग्रेस कार्यकर्ता बेहद क्षुब्ध हैं। बिहार कांग्रेस के नेता किशोर कुमार झा कहते हैं कि अपने लंबे राजनीतिक जीवन में हमलोगों ने कार्यकर्ताओं की ऐसी अनेदखी नहीं देखी थी। जाहिर तौर पर कार्यकर्ताओं में इसको लेकर निराशा है। झा यह भी कहते हैं कि गठबंधन में सीट बंटवारे की आखिर में हुई आपाधापी के चलते सीटों का समायोजन सही नहीं हुआ है। तेजस्वी यादव ने हर बार की तरह कई कमजोर सीटें कांग्रेस के खाते में डाल दी हैं।

हालांकि, बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह कार्यकर्ताओं की नाराजगी को चुनाव प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा करार देते हुए कहते हैं कि गठबंधन की राजनीति में कई दफा समझौते करने पड़ते हैं। इसी वजह से कांग्रेस को कई ऐसी सीटें नहीं मिल पाई, जो वह चाहती थी। समीर सिंह ने कांग्रेस में सब कुछ ठीक रहने और पूरी ताकत से कार्यकर्ताओं के चुनाव में जुटे होने की बात कही, मगर यह भी कहा कि गठबंधन की राजनीति में दूसरे दल का भाव भी देखना पड़ता है। इसकी वजह से कई वास्तविक दावेदार टिकट से वंचित रह गए। इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान के प्रति पूरी निष्ठा रखते हुए कार्यकर्ता पार्टी और गठबंधन की जीत के लिए मेहनत करने मैदान में उतर रहे हैं।

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