एयर स्ट्राइक ने बदला पश्चिमी क्षेत्र का चुनावी मिजाज, जाट प्रत्याशियों से परहेज पड़ सकता है भारी

उत्तर प्रदेश में पहले चरण की जिन आठ सीटों पर चुनाव होने जा रहा है उनसे कैराना को छोड़कर बाकी सीटों पर भाजपा का कब्जा है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Tue, 12 Mar 2019 09:57 PM (IST) Updated:Tue, 12 Mar 2019 09:57 PM (IST)
एयर स्ट्राइक ने बदला पश्चिमी क्षेत्र का चुनावी मिजाज, जाट प्रत्याशियों से परहेज पड़ सकता है भारी
एयर स्ट्राइक ने बदला पश्चिमी क्षेत्र का चुनावी मिजाज, जाट प्रत्याशियों से परहेज पड़ सकता है भारी

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा संभवत: जाट प्रत्याशी नहीं उतार रही हैं। जाट बहुल क्षेत्र में जाट नेतृत्व से परहेज करना भारी पड़ सकता है। गठबंधन में रालोद के शामिल होने के बाद इन दोनों दलों की प्राथमिकता में लगता है कि अन्य जाट नेता नहीं हैं। क्या जाट मतदाताओं पर इन दलों का भरोसा नहीं है? इन पार्टियों में जाट नेतृत्व उभर नहीं पाया, जैसे तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब लोकसभा चुनाव के दौरान उनसे मांगा जा सकता है।

पहले चरण में जिन आठ सीटों पर चुनाव होने जा रहा है, वहां के संभावित प्रत्याशियों में मुजफ्फरनगर से चौधरी अजित सिंह और बागपत से जयंत चौधरी का नाम पहले से ही घोषित है। बाकी छह सीटों पर किसी जाट प्रत्याशी को उतारने की संभावना लगभग न के बराबर ही है। पिछले चुनाव में भी केवल सपा ने गाजियाबाद से सुदन रावत को मैदान में उतारा था। जाट बहुल पश्मिी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है।

लोकसभा और विधानसभा के पिछले चुनाव में खेती-किसानी में उन्नत इस क्षेत्र के जाटों का रालोद से मोहभंग हो गया था। तभी तो पिछले दो-तीन चुनावों में चौधरी अजित सिंह और उनके पूरे कुनबे को यहां के लोगों ने हाशिये पर डाल दिया था। इस पूरे क्षेत्र में सपा का कोई परंपरगत वोट बैंक नहीं रहा है। जबकि बसपा को अपने परंपरागत दलित मतों पर भरोसा रहा है। बसपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक भी सीट पर जीत भले न मिली हो, लेकिन 18.50 फीसद वोट जरूर मिला था। जबकि मुस्लिम मतों के भरोसे सपा को यहां की इन सीटों पर कुल 17.8 फीसद वोट ही मिले। जबकि भाजपा को पहले चरण की इन सीटों पर 50 फीसद से भी अधिक मत प्राप्त हुए थे।

प्रदेश के पहले चरण के मतदान के साथ ही प्रदेश में चुनावी बयार जोर पकड़ेगी। इसी चरण में रालोद के चौधरी अजित सिंह और उनके सुपुत्र जयंत के भाग्य का फैसला हो जाएगा। सपा-बसपा के लिए अहम इस चरण के चुनाव पांव जमाने की कोशिश करेंगी। लेकिन जाट नेतृत्व को नजरअंदाज कर इन दलों का प्रदर्शन कैसे सुधरेगा, इस सवाल का जवाब तो फिलहाल इन दलों के नेतृत्व के पास होगा। जबकि भाजपा अपने पूर्व के प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश में जुटेगी। गन्ने की खेती से जुड़े यहां के लोगों को लुभाने के लिए भाजपा ने उनके गन्ने का भुगतान कराने का हरसंभव प्रयास किया है। इसका लाभ उसे मिल सकता है।

भाजपा से निपटने के लिए विपक्षी दल रणनीति बदल कर उतरने की कोशिश में हैं। सपा व बसपा चुनावी गठजोड़ कर भाजपा के समक्ष चुनौती पेश करने वाली है। विपक्षी दल अपने चुनावी गठबंधन के भरोसे जातिगत मतों को एकजुट करने की कोशिश में हैं। लेकिन पाकिस्तान के बालाकोट में घुसकर हुई भारत की एयर स्ट्राइक के बाद हालात बदले हैं। भाजपा इसका लाभ उठाने की कोशिश करेगी। इसी वजह से विपक्षी दलों को प्रत्याशियों के चयन में जातिगत संतुलन बनाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। लेकिन चौधरी अजित सिंह और उनके सुपुत्र को ही जाट नेतृत्व का पर्याय मान लिया है। क्या इतने भरे से जाट अथवा अन्य समुदाय संतुष्ट हो जाएगा। यह सवाल चुनाव के दौरान उठना लाजिमी है।

उत्तर प्रदेश में पहले चरण की जिन आठ सीटों पर चुनाव होने जा रहा है, उनसे कैराना को छोड़कर बाकी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। गाजियाबाद व कैराना जैसे अहम संसदीय क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी होंगे। कैराना सीट को सपा ने उप चुनाव में भाजपा से छीना था, जहां से तबस्सुम सांसद हैं। इस बार भी सपा उन्हें या उनके बेटे को प्रत्याशी बनाकर उतार सकती है। जबकि गाजियाबाद से पार्टी गूजर या वैश्र्व प्रत्याशी को उतारने की तैयारी में है। बसपा के लिए पहले चरण का चुनाव काफी खास है। सूत्रों के मुताबिक उसके हिस्से में आई चार संसदीय सीटों में से गौतमबुद्ध नगर से गूर्जर प्रत्याशी होगा। जबकि पार्टी बिजनौर, सहारनपुर और मेरठ से पार्टी मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है।

प्रदेश के पहले व दूसरे चरण का चुनाव मूलत: जाट बहुल क्षेत्र में होगा, जहां पिछले दो चुनावों से भाजपा का दबदबा रहा है। पाकिस्तान के बालाकोट में भारतीय वायुसेना के घुस कर हमला करने के बाद यह क्षेत्र राष्ट्रवाद से ओतप्रोत हुआ है। भाजपा इसका लाभ उठाना चाहेगी। मतों को गोलंबद करने में कोई राजनीतिक दल पीछे नहीं रहना चाहता है।

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