आइएसआइ चीफ के काबुल दौरे ने दिए संकेत, काबुल में चलेगा पाक का सिक्का, जानें विशेषज्ञों की राय

पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ और तालिबान के बीच रिश्ते अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अब किसी से छिपे नहीं हैं लेकिन शनिवार को आइएसआइ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद अचानक काबुल पहुंच कर इस बारे में जो भी थोड़ी पर्देदारी थी उसे भी खत्म कर दिया।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 04 Sep 2021 10:02 PM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 01:06 AM (IST)
आइएसआइ चीफ के काबुल दौरे ने दिए संकेत, काबुल में चलेगा पाक का सिक्का, जानें विशेषज्ञों की राय
आइएसआइ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद अचानक काबुल पहुंच कर दुनिया को बड़े संकेत दिए हैं।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ और तालिबान के बीच रिश्ते अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अब किसी से छिपे नहीं हैं लेकिन शनिवार को आइएसआइ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद अचानक काबुल पहुंच कर इस बारे में जो भी थोड़ी पर्देदारी थी उसे भी खत्म कर दिया। पाकिस्तान व अफगानिस्तान की मीडिया की तरफ से बताया गया है कि लेफ्टिीनेंट जनरल फैज हमीद की यात्रा का मकसद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक व कारोबारी क्षेत्र में संभावनाओं को तलाशना है।

तालिबान में गतिरोध खत्‍म करने के लिए दौरा 

जानकार मानते हैं कि काबुल में सरकार बनाने को लेकर जिस तरह का गतिरोध तालिबान के बीच उभरा है, उसे खत्म करने के लिए ही यह यात्रा हुई है। भारतीय कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि आइएसआइ प्रमुख की यह यात्रा भारत समेत तमाम दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश है कि अफगानिस्तान में फिलहाल उसी का सिक्का चलेगा।

पाकिस्‍तानी दूतावास में बढ़ी हलचल 

शनिवार को सुबह फैज हमीद के साथ पाकिस्तान खुफिया एजेंसी के दूसरे कई वरिष्ठ अधिकारी भी काबुल स्थित पाकिस्तानी दूतावास पहुंचे। पाकिस्तान काबुल में दुनिया का एकमात्र दूतावास है जो मौजूदा संकटकाल में भी पूरी तरह से खुला रहा। वैसे तो चीन व रूस के दूतावास भी खुले हुए हैं लेकिन वहां कुछ दिनों से काम-काज काफी सीमित है।

तालिबान नेताओं को साधने की कवायद 

मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक हमीद की शनिवार शाम को अलग अलग हिस्सों में तालिबान के शीर्ष नेताओं व दूसरे समर्थकों से बात होनी है। आइएसआइ प्रमुख से पहले 15 अगस्त, 2021 के बाद काबुल की यात्रा पर सिर्फ कतर के विशेष प्रतिनिधि अल कहतानी और सीआइए निदेशक विलियम बर्नस पहुंचे हैं। वैसे वर्ष 1996 में जब तालिबान ने सत्ता संभाली थी तब तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ पूरे दल बल के साथ काबुल पहुंचे थे।

काबुल में अफरातफरी का माहौल 

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में अभी भी काफी अफरातफरी का माहौल है। सत्ता मिलने के बावजूद तालिबान आर्थिक रूप से कंगाल देश को किस तरह से चलाएगा, किस तरह से पुरानी सरकार के लोगों व सैन्यकर्मियों को रखा जाएगा, इसको लेकर काफी अस्पष्टता है। इसके साथ ही यह सूचना भी है कि सरकार के गठन को लेकर तालिबान को समस्या है।

तालिबान नेताओं में मतभेद 

सत्ता मिलने की स्पष्टता होते हुए गनी बरादर, हक्कानी और मुल्ला जाकिर के समर्थकों के बीच कई मुद्दों पर गहरे मतभेद सामने आ रहे हैं। तालिबान नेताओं ने शुक्रवार को बताया था कि शनिवार को उनकी तरफ से गठित होने वाली सरकार के सभी सदस्यों का नाम बता दिया जाएगा। लेकिन शनिवार देर शाम तक इस तरह की कोई सूचना नहीं मिली।

पंजशीर में सेना भेज सकता है पाकिस्‍तान 

माना जाता है कि फैज हमीद तालिबान के नेताओं से पंजशीर के हालात पर भी चर्चा करेंगे। पंजशीर में तालिबान को भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह भी खबर है कि अगर जरूरत पड़ी तो पाकिस्तान वहां गोपनीय तरीके से विशेष सैन्य बल भेजने को भी तैयार है।

ये रिश्‍ता बहुत पुराना है 

पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत शरत सभरवाल का कहना है कि तालिबान और पाकिस्तान की सेना व खुफिया एजेंसी आइएसआइ के बीच रिश्ता कोई नया नहीं है लेकिन आइएसआइ प्रमुख का यह दौरा पूरी तरह से दूसरे देशों को संकेत देने के लिए है कि अफगानिस्तान में किसका सिक्का चलता है।

अब कोई पर्देदारी नहीं 

पाकिस्तान की यह रणनीति है कि उसे तालिबान के साथ रिश्तों को लेकर अब कोई पर्दादारी नहीं करनी है। जिस तालिबान को उसने नब्बे के दशक से ही पालापोसा है। ऐसे में आइएसआइ प्रमुख का काबुल जाना कोई अचंभे की बात नहीं है।

सरकार गठन को लेकर कसरत 

दूसरी तरफ अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत विवेक काटजू इस यात्रा को तालिबान सरकार के गठन से जोड़ कर देखते हैं। काटजू का कहना है कि अफगानिस्तान की स्थिति संभालने में किस तरह से पाकिस्तान मदद करेगा, यह यात्रा इसी को तय करने के लिए है।

असली विजेता साबित करने की कोशिश 

भारत के एक प्रमुख रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि आइएसआइ चीफ का काबुल में होना इस बात का संकेत है कि अफगानिस्तान से जुड़े पूरे प्रकरण में असली विजेता कौन है। पाकिस्तान ने वर्ष 1947 के बाद से ही भारत के खिलाफ हमेशा युद्ध की जो रणनीति बनाई है उसकी वजह से ही आज काबुल में एक आतंकवादी संगठन सरकार बनाने के करीब पहुंचा है। 

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