कुचिपुड़ी बन गया पहला प्यार

दक्षिण भारत के कुचेलापुरम गांव में महान विद्वानों और कलाकारों द्वारा पोषित कुचिपुड़ी नृत्य की परंपरा को सांस्कृतिक दुनिया की नृत्यांगना मीनू ठाकुर भी बढ़ा रही हैं।वैश्विक पटल पर भी इस नृत्य कला को ख्याति मिल रही है।

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2016 01:02 PM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2016 01:14 PM (IST)
कुचिपुड़ी बन गया पहला प्यार

दक्षिण भारत के कुचेलापुरम गांव में महान विद्वानों और कलाकारों द्वारा पोषित कुचिपुड़ी नृत्य की परंपरा को सांस्कृतिक दुनिया की नृत्यांगना मीनू ठाकुर भी बढ़ा रही हैं।वैश्विक पटल पर भी इस नृत्य कला को ख्याति मिल रही है। दूरदर्शन के जमाने में टीवी कार्यक्रमों से नृत्य सीखा और वक्त बढ़ते-बढ़ते कुचिपुड़ी मीनू का पहला प्यार बन गया।

मां को बचपन से शौक था डांस का, लेकिन वक्त और परिस्थितियों ने कभी मौका नहीं दिया। जब मैं छोटी थी तो उस वक्त दूरदर्शन चैनल पर अखिल भारतीय नृत्य- संगीत कार्यक्रम आता था उसमें नृत्य देखना अच्छा लगता। हम बहनें और सहेलियां उसमें से देखकर अपने कमरे में चुपके-चुपके डांस किया करते थे। जब पांचवी क्लास में थी मां से डांस को लेकर इच्छा जताई, मां की रजामंदी मिल गई सिलसिला शुरू हो गया। पहले कथक सीखना शुरू किया फिर आगे चलकर 12 क्लास पहुंचते-पहुंचते कुचिपुड़ी नृत्य ने खासा आकर्षित किया। मूलरूप से

राजस्थान की रहने वाली मीनू ठाकुर बताती हैं कि स्कूल के वक्त से ही नृत्याचार्या स्वप्नसुंदरी व पसुमूर्ति सितारमैया से कुचिपुड़ी की शिक्षा लेनी शुरू की।

प्रशिक्षण से आगे बढ़ स्टेज का सिलसिला शुरू हो गया जो निरंतर चल रहा है।

-कलाम साहब ने कहा आपका फैन हो गया: हाथ-पांव व आंखों को एक लय में

भाव-भंगिमा पूर्ण कुचिपुड़ी प्रस्तुत करना बेहद कठिन होता है। एक साथ स्त्री-पुरुष के भावों को अभिव्यक्त करना जो इस नृत्य की विशेषता है मीनू ठाकुर की प्रस्तुतियों में यह खास झलकता है। अपनी खास प्रस्तुतियों को याद करते हुए मीनू बताती हैं कि सबसे अधिक गौरव तब महसूस हुआ जब महामहिम पूर्व राष्ट्रपति स्व. एपी जे अब्दुल कलाम के समक्ष राष्ट्रपति भवन में प्रस्तुति दी। मन उस वक्त और प्रफुल्लित हो उठा जब कलाम साहब ने प्रस्तुति के बाद धीरे से आकर कान में कहा कि मैं तो तुम्हारा फैन हो गया। इससे खुशी तो मिली ही नृत्य की इस दुनिया में आगे बढऩे का हौसला और भी बढ़ गया है।

ऐसा ही कुछ एक बार यूरोप में हजारों विदेशी दर्शकों के बीच मोहना राग आधारित कृष्ण शब्दम प्रस्तुति पर भी दर्शकों ने भाव-विभोर यादगार प्रशंसा की थी। कैदियों को सकारात्मक सोच व माहौल का एहसास कराने के लिए पहली बार किसी कुचिपुड़ी नृत्यांगना द्वारा तिहाड़ जेल में भी प्रस्तुति दी गई थी। इस प्रस्तुति ने भी एक अलग ही अनुभव कराया था।

ताकि परंपरा चलती रहे : मन को आकर्षित कर देने वाले और ठहराव देने वाले इस नृत्य को जीवंत रखने के लिए जहां हमारे गुरुओं ने नित प्रयास संघर्ष किया वहीं अब आगे हम भी इस नई पीढ़ी को अपनी संगीत-कला संस्कृति के प्रति स्नेह को बनाए रखने के लिए उन्हें इसके आकर्षण से रूबरू करा रहे हैं। मीनू बताती हैं हालांकि अब बच्चों में पहले जैसा क्रेज इस कला के प्रति नहीं है लेकिन फिर भी बहुत बच्चे इसे अपने परंपरा से इतर भी अपना रहे हैं। सुरमैया संगीत स्कूल में अभी तकरीबन 50 बच्चे इस संगीत कला का प्रशिक्षण ले रहे हैं। कई बार तो लड़के भी इस नृत्य को सीखने के लिए आते हैं। इस नृत्य कला में परिपक्वता व नयापन सिर्फ हर दिन रियाज से ही आता है। इसलिए मीनू खुद भी हर दिन नृत्य जरूरत करत हैं।

-संगीत के साथ पर बनी शादी की बात:

आज मां जब भी प्रस्तुति देखती हैं तो यही कहती हैं कि कभी इस कला का साथ मत छोडऩा। मीनू

परिवार से मिले सहयोग के बारे में बताती हैं कि शादी इसी सहयोग पर की गई थी भविष्य में नृत्य के लिए

कोई बाधा न रहे और ऐसा सहयोग मिला कि पति तो साथ देते ही हैं सेकेंड क्लास में पढऩे वाली बेटी भी

पूरा साथ देती है। सीखने की भी इच्छा जताती है।

-प्रस्तुति : मनु त्यागी, नई दिल्ली

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