1982 एशियन गेम्स ने बदल दी थी रेसलर सुशील कुमार के 'गुरू जी' की ज़िंदगी, जानिए कैसे
पहलवान महाबली सतपाल को लगता है कि 1982 में जीते स्वर्ण पदक ने उनके करियर और जिंदगी को बदल दिया।
नई दिल्ली, जेएनएन। 1982 एशियन गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता भारतीय दिग्गज पहलवान महाबली सतपाल को लगता है कि उस स्वर्ण पदक ने उनके करियर और जिंदगी को बदल दिया और उनकी कुश्ती को नई ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया। सतपाल से उनके स्वर्ण पदक की यादें और जकार्ता में होने वाले एशियन गेम्स को लेकर योगेश शर्मा ने खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
सवाल- एशियन गेम्स में तीन पदक और आखिर पदक स्वर्ण। कैसी रही आपकी यह यात्र?
जवाब- 1982 में हम अपने देश में खेल रहे थे और कुश्ती के मैच नई दिल्ली में अंबेडकर स्टेडियम में थे। मैंने स्वर्ण पदक जीत लिया था लेकिन मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि यह पदक मेरे करियर और जिंदगी दोनों को बदल देगा। इस पदक के आने के बाद मेरा करियर, मेरी जिंदगी सब कुछ बदल गई। यह पदक मेरी कुश्ती को नई ऊंचाईयों पर ले गया। यह मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। गेम्स के दौरान मेरे दायें घुटने के लिंगामेंट में चोट लग गई थी और सभी यह मान रहे थे कि सतपाल नहीं खेलेगा। मेरे गुरु हनुमान जी ने भी मना कर दिया लेकिन मैं यह मौका नहीं छोडऩा चाहता था क्योंकि हम अपने घर में खेल रहे थे और यहां सभी की उम्मीदें मुझसे जुड़ी थी। मैं टीम का कप्तान था और अन्य पहलवान हार चुके थे। अब बस सब यहीं चाह रहे थे कि एक स्वर्ण तो आना चाहिए। मुझे अंदर से लग रहा था कि मैं स्वर्ण पदक जीत सकता हूं। मैं 100 किग्रा में खेला था और 16 या 18 पहलवान यहां आए थे।
सवाल- मंगोलियाई पहलवान को धूल कैसे चटाई?
जवाब- मैं उस दौरान खेल गांव में रहता था। पहले राउंड में मुझे बाई मिला और दूसरे राउंड में मैंने ईरानी पहलवान को एक मिनट में चित कर दिया। अगला मुकाबला जापानी पहलवान से था जो पिछली बार का स्वर्ण पदक विजेता था। उसे 10-0 से हराया। फिर कोरियाई पहलवान को 16-4 से हराया। मंगोलिया का पहलवान गंतोक अच्छा था और मैं उसे फाइनल में भिड़ा। उसी दिन भारत- पाकिस्तान का हॉकी फाइनल था और हम हार गए थे। मेरे मुकाबले के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आईं तो एक अन्य भारतीय पहलवान हार गया और इंदिरा को लगा कि उनके आने से पहलवान दबाव में आ रहे हैं लेकिन किसी ने उनसे कहा कि आप सतपाल की कुश्ती जरूर देखिए। जैसे ही मेरी कुश्ती की घोषणा हुई तो मुझे इतनी खुशी थी कि पूरा देश मुझसे उम्मीद लगाए बैठा है। मैंने उसे 4-0 से हराया था।
सवाल- 1982 गेम्स के लिए एक साल का कैंप लगा था और आप एक भैंस ही कैंप में लेकर आ गए थे?
जवाब- यह मुझे याद है। यह पटियाला में एशियन गेम्स के लिए एक साल के लिए कैंप दौरान हुआ। यहां मुझे ठीक तरह से डाइट नहीं मिल पा रही थी तो मैंने एक भैंस वहां बांध दी जो 10 लीटर दूध देती थी जिसमें से मैं आठ लीटर दूध पी जाता था लेकिन मेरा एक लक्ष्य था कि स्वर्ण लाना है तो लाना है। उस दौरान मुझे एक सीनियर पहलवान ने जापानी दांव बकड़ा पछाड़, हाथी चिंघाड़ दांव सिखाए थे और मैं इनका मास्टर था। अगर इसमें कोई फंस गया तो मैं चित करता ही था। बकड़ा पछाड़ लगाकर मैं मंगोलियाई पहलवान की टांग पकड़कर उसे अंदर लाया था जिसके बाद मैं उसके ऊपर बैठ गया।
सवाल- स्वर्ण आने के बाद किस तरह का माहौल बन गया?
जवाब- कुश्ती के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुझसे कहा कि आपने देश की लाज बचाई। छह-सात दिन से पदक तालिका एक जगह रुकी हुई थी और मेरे पदक के बाद यह आगे बढ़ पाई। पूरी दिल्ली जश्न मना रही थी। घोड़े और तांगे पर मुझे घुमाते रहे। दो लाख लोगों ने बवाना में मेरा स्वागत किया। मैंने लगातार तीन पदक एशियन गेम्स में जीते थे। तेहरान में 1974 में कांस्य, 1978 बैंकॉक में रजत और फिर स्वर्ण अपने नाम किया था।
सवाल- 1974 और 1978 में गेम्स के दौरान आपके साथ क्या हुआ?
जवाब- 1974 में मैं 18 साल का था और मुझे बाहर का अनुभव नहीं था। 1978 में मैं बैंकॉक में गुरुद्वारे से लंगर मंगाकर अपनी डाइट पूरी करता था।
सवाल- जकार्ता में टीम जा रही है तो इससे क्या उम्मीद है और कितने स्वर्ण आप कुश्ती में देख रहे हैं
जवाब- यह टीम अच्छी है। स्वर्ण के दावेंदारों सुशील, बजरंग, विनेश, साक्षी, ढांडा हैं। मैं कोच होने के नाते यहीं कहूंगा कि सभी देश के लिए पदक जीतकर लाएं लेकिन तीन या चार स्वर्ण मैं देख रहा हूं। यह टीम अच्छी है जिसमें अनुभव और युवाओं का मिश्रण है। इस खेल में आप निश्चित नहीं कर सकते कि कौन पदक लेकर ही आएगा क्योंकि उस समय किसका दिन होगा और वहां मौजूद कोच क्या सलाह दे रहा होगा यह बहुत महत्वपूर्ण है।