Suhas LY Interview: सिल्वर मेडलिस्ट डीएम बोले- हमेशा अपनी प्राथमिकता तय करनी होती हैं

Suhas L Yathiraj Interview टोक्यो पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले नोएडा के डीएम सुहास एल वाई ने कहा है कि उनको हमेशा अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होती हैं। उन्होंने कोरोना के दौरान डीएम के तौर पर अच्छा कार्य किया था।

By Vikash GaurEdited By: Publish:Mon, 06 Sep 2021 08:00 AM (IST) Updated:Mon, 06 Sep 2021 08:00 AM (IST)
Suhas LY Interview: सिल्वर मेडलिस्ट डीएम बोले- हमेशा अपनी प्राथमिकता तय करनी होती हैं
Suhas L Yathiraj ने दैनिक जागरण को Interview दिया (फोटो साई मीडिया)

 गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी सुहास एल यतिराज ने टोक्यो पैरालिंपिक में शानदार प्रदर्शन कर रजत पदक जीता है। प्रशासकीय कार्य के साथ पैरालिंपिक के लिए अभ्यास में उन्होंने जमकर पसीना बहाया। वैश्विक महामारी कोरोना में जिले में बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन के साथ उन्होंने खेल के लिए समय निकाला। उनकी सफलता ने करोड़ों देशवासियों को गौरवान्वित किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सफलता पर बधाई दी। पैरालिंपिक में मिली जीत के बाद दैनिक जागरण संवाददाता मनीष तिवारी ने सुहास एल यतिराज से फोन पर बात की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :

-बैडमिंटन खेलने की शुरुआत कैसे हुई?

--मुझे बचपन से ही खेलों का शौक था। पिताजी को अक्सर खेलता देखकर मैं भी खेलने लगा। मेरे पिताजी बाल बैडमिंटन खेलते थे। शुरुआत में मैंने बैडमिंटन के साथ-साथ दूसरे खेल भी खेले। बाद में बैडमिंटन की ओर रुझान बढ़ गया। 2016 में आइएएस अकादमी में बैडमिंटन खेलने की पेशेवर शुरुआत हुई। अकादमी के कोचों से खेल की बारीकियां सीखीं। धीरे-धीरे पूरी तरह खुद को बैडमिंटन में समíपत कर दिया।

-पहला गुरु किसे मानते हैं ?

--यह कहना थोड़ा मुश्किल होगा, क्योंकि पग-पग पर गुरु मिलते रहे, जिनसे कुछ न कुछ सीखने को मिला। हालांकि मेरे पिता मेरे पहले गुरु रहे, जिन्होंने मुझे खेल के लिए प्रेरित किया और आत्मविश्वास दिया। अनुशासन का पाठ मैंने अपनी बुआ पद्मावत अम्मा से सीखा। पेशे से शिक्षिका बुआ अनुशासन में बेहद सख्त थीं। उनके दिए संस्कार आज भी मेरे काम आ रहे हैं। लखनऊ व इंडोनेशिया के कोच से बहुत सीखने को मिला। अपनी तैनाती के दौरान भी मैंने वहां के खिलाड़ियों व कोच से सीखा व अभ्यास किया।

-जिलाधिकारी कार्यालय व खेल में सामंजस्य बैठाना कितना चुनौतीपूर्ण था?

--देखिए, हमेशा अपनी प्राथमिकता तय करनी होती हैं। सरकार ने जो जिम्मेदारी दी है वह हमेशा मेरी प्राथमिकता है, लेकिन खेल मेरा जुनून है। जब भी समय मिला, मैंने उसका उपयोग खेलने में किया। परिवार को भी इस वजह से समय नहीं दे पाया। नियमित डेढ़ से दो घंटे का अभ्यास किया। तन्मयता से अभ्यास किया जाए तो इतना समय पर्याप्त है।

-कोरोना काल में तैयारी कैसे जारी रखी?

--कोरोना काल का समय बेहद चुनौतीपूर्ण था। एक ओर लोगों को वैश्विक महामारी से बचाने की चुनौती थी तो वहीं अभ्यास के लिए समय निकालना जरूरी था। आत्मविश्वास, समय प्रबंधन व परिवार के सहयोग से मैं यह करने में सफल रहा।

-ओलिंपिक की अपेक्षा पैरालिंपिक में भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा, इसे किस रूप में देखते हैं?

--दोनों ही उच्च कोटि के खेल आयोजन हैं। खिलाड़ी जीतने के लिए अपना पूरा प्रयास करता है। यह बात सही है कि ओलिंपिक की अपेक्षा पैरालिंपिक में देश का अच्छा प्रदर्शन रहा है। खिलाड़ियों को इससे प्रेरणा लेकर जीत के लिए और प्रयास करने चाहिए। मेरा पूरा विश्वास है कि पेरिस में होने वाले ओलिंपिक व पैरालिंपिक में भारत का प्रदर्शन अच्छा होगा। पदक तालिका में देश बढ़त बनाएगा।

-अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रदर्शन सुधारने के लिए सरकार द्वारा संसाधन व प्रशिक्षण कितने मददगार साबित हुए?

--इसका बहुत फायदा मिला। सरकार की टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम का मैं भी खिलाड़ी सदस्य हूं। हमें जो प्रशिक्षण मिला वह पैरालिंपिक में अच्छा प्रदर्शन करने में काफी काम आया।

-पैरालिंपिक में ग्रामीण पृष्ठभूमि के खिलाड़ी पदक जीतने में आगे रहे हैं, क्या कारण मानते हैं?

--खिलाड़ी, खिलाड़ी होता है। जीत के लिए हर कोई प्रयास करता है। ग्रामीण पृष्ठभूमि के खिलाड़ियों में जुझारूपन अधिक होता है। मेरा मानना है कि खेल के लिए आत्मविश्वास व जुझारूपन होना बेहद जरूरी है।

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