श्रीमंदिर में 328 साल पहले इसी तरह का लगा था अघोषित क‌र्फ्यू

महाप्रभु श्री जगन्नाथ का दर्शन करने के लिए हर दिन देश-दुनिया से भारी संख्या में भक्त आते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 21 Mar 2020 09:17 PM (IST) Updated:Sun, 22 Mar 2020 06:14 AM (IST)
श्रीमंदिर में 328 साल पहले इसी तरह का लगा था अघोषित क‌र्फ्यू
श्रीमंदिर में 328 साल पहले इसी तरह का लगा था अघोषित क‌र्फ्यू

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर

महाप्रभु श्री जगन्नाथ का दर्शन करने के लिए हर दिन देश-दुनिया से भारी संख्या में भक्त आते हैं। करोड़ों ओड़िया लोगों के आराध्य देवता हैं महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी। हर दिन बड़दांड (श्रीजगन्नाथ धाम के सामने वाला चौड़ा रास्ता) भक्तों की चहल कदमी से चंचल रहता था। लेकिन कोरोना वायरस को लेकर शासन-प्रशासन की तरफ से जारी किए गए दिशा-निर्देश के बाद बड़दांड आज पूरी तरह से भक्त शून्य हो गया है। श्रीमंदिर में भक्तों के दर्शन पर रोक लगा किए जाने से ऐसा लग रहा है मानो बड़दांड में अघोषित क‌र्फ्यू लग गया है। 328 साल के बाद भक्त महाप्रभु के दर्शन करने से वंचित हो रहे हैं। उस समय एक्राम खां के हमले के कारण भक्त महाप्रभु के दर्शन करने से वंचित हुए थे। राज्य सरकार की तरफ से जारी की गई एडवाइजरी के बाद से बड़दांड में ना ही कोई भक्त दिख रहा है और ना ही कोई दर्शनार्थी।

सोलहवीं शताब्दी में एक्राम खां ने किया था श्रीमंदिर पर हमला

इतिहासकार सुरेंद्र मिश्र के अनुसार, सन 1692 ºिष्टाब्ध में औरंगजेब के निर्देश पर एकाम्र खां तथा उसके भाई जमा उल्ला ने श्रीमंदिर पर हमला किया था। इस संदर्भ में महाप्रभु के सेवकों को पता चलने के बाद सेवकों ने श्रीमंदिर के चारों द्वार को बंद कर दिया और महाप्रभु को विमला मंदिर के पीछे छिपा दिया। एकाम्र खां बाहरी भंडार में लूटपाट किया और सेवकों ने उसे नकद 30 हजार रुपये दिए थे। इसके अलावा सेवकों ने उसे महाप्रभु की 3 नकली मूíत भी बना कर दी थीं। एकाम्र खां जब यहां से गया तब सिंहद्वार गुम्बद के किनारे को तोड़ दिया था और नकली महाप्रभु की मूíत को चमड़े की रस्सी में बांधकर बड़दांड में घसीटते हुए ले गया था। उसके जाने के बाद सेवकों ने विमला मंदिर के पीछे छिपाई गई महाप्रभु की मूíत को लाकर रत्न सिंहासन पर अवस्थापित किया। महाप्रभु को रत्न सिंहासन पर विराजमान कराने के बाद सेवकों ने चारों द्वार बंद रखकर गुप्त रूप से महाप्रभु की सेवा एवं नीति किया। पालिया सेवकों ने दक्षिण द्वार गुप्त दरवाजे से श्रीमंदिर के अंदर पहुंचकर महाप्रभु की नीति की।

नहीं बजायी जाती थी घंटी

मादला पांजी बताते हैं कि उस समय घंटी नहीं बजाई जा रही थी। रुकमणि हरण एकादशी नीति का पालन नहीं किया गया। स्नान पूíणमा नीति बाहर पोखरी में की गई। महादीप मंदिर के ऊपर नहीं उठाया गया तथा उस साल रथयात्रा भी विधि के मुताबिक नहीं की गई। उस समय भी भगवान से भक्त अलग हो गए थे। तब भगवान और भक्तों के बीच का बाधक एकाम्र खां बना था। लुटेरे के कारण भक्तों से भगवान अलग हो गए थे। अब एक बार फिर 328 साल के बाद उसी घटना की पुनरावृत्ति हुई है। हालांकि इस बार भक्त एवं भगवान को अलग करने में कोरोना वायरस वजह बना है।

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