छह लोग एक साल के लिए गुम्बद में बंद
अमेरिकी राज्य हवाई के बंजर इलाके में शनिवार को एक अनूठे प्रयोग की शुरुआत हुई। इसके तहत अमेरिकी अंतरिक्ष नासा के छह सदस्यों ने एक साल के लिए खुद को एक गुम्बद में बंद कर लिया।
वाशिंगटन। अमेरिकी राज्य हवाई के बंजर इलाके में शनिवार को एक अनूठे प्रयोग की शुरुआत हुई। इसके तहत अमेरिकी अंतरिक्ष नासा के छह सदस्यों ने एक साल के लिए खुद को एक गुम्बद में बंद कर लिया।
एजेंसी का यह अब तक का सबसे लंबा एकांत प्रयोग है। यह कदम नासा के मंगल मिशन का हिस्सा है। गुम्बद में खुद को बंद करने वालों में एक फ्रांसीसी एस्ट्रोबॉयोलॉजिस्ट, एक जर्मन भौतिकशास्त्री और चार अमेरिकी जिनमें पायलट, आर्किटेक्ट, पत्रकार और एक मृदा वैज्ञानिक शामिल हैं।
व्यास 11 मी., लंबाई 6 मी.
गुम्बद हवाई के मउना लोआ में हैं। इसका व्यास 11 मीटर और लंबाई छह मीटर है। इस इलाके में नाममात्र के पेड़-पौधे हैं और जानवर एक भी नहीं है। ऐसी बंजर जमीन पर बने गुम्बद में पुरुष और महिलाओं के लिए छोटे-छोटे कमरे हैं। उनके सोने के लिए छोटी सी खाट और एक डेस्क रखी है। पाउडर्ड चीज और डिब्बाबंद टूना खाकर ये लोग 12 महीने गुजारेंगे।
...इसलिए प्रयोग
नासा की मौजूदा तकनीक फिलहाल लाल ग्रह पर रोबोटिक मिशन को आठ महीने में भेज सकती है। लेकिन, इंसानों को वहां पहुंचने में एक से तीन साल लग सकते हैं। ऐसे में बिना ताजा हवा, पानी, भोजन और निजता के रहना बहुत मुश्किल है।
इन्हीं मुश्किलों को करीब से समझने के लिए नासा ने मंगल की ओर बढ़ने से पहले हवाई स्पेस एक्सप्लोरेशन एनालॉग एंड सिमुलेशन (एचआइएसईएएस) नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है। नासा को उम्मीद है कि 2030 के दशक में वह मंगल पर अपना झंडा लहराने में कामयाब रहेगा।
लाखों डॉलर का निवेश
नासा की अहम जांचकर्ता किम बिन्सटेड के अनुसार एचआइएसईएएस में काफी निवेश किया जा चुका है। आगे भी इस मिशन पर करीब 10 लाख डॉलर खर्च करने की योजना है।
उन्होंने बताया कि कि किसी भी स्पेस मिशन पर जाने से पहले ऐसे प्रयोग करना काफी अच्छा है। इससे गलतियों की गुंजाइश कम हो जाती है। वैसे भी इस तरह के प्रयोग पर होने वाला खर्च स्पेस मिशन के गलत हो जाने की लागत से काफी कम ही है।
इतनी सी ख्वाहिश
गुम्बद में बंद होने से पहले शैना गिफॉर्ड ने अपने ब्लॉग पर लिखा,"यह उन छह लोगों की टीम है जो दुनिया बदलना चाहते हैं और इसके लिए इस जगह को छोड़ने का इरादा रखते हैं।"
वहीं, आर्किटेक्ट ट्रिस्टन का कहना है कि गुम्बद में रहकर वह वास्तुकला से संबंधित कुछ ऐसे तरीके सीखना चाहते हैं जिससे आने वाले वक्त में धरती और दूसरी दुनिया के कठोर हालात में भी हमारे जीने की क्षमता बढ़ सके।